यह सही है कि जब तक वैसीन नहीं बन जाती, तब तक शारीरिक दूरी और लॉकडाउन ही एकमात्र विकल्प है। यह भी अच्छा है कि देश के भीतर अब कोरोना संक्रमण के मामले दस दिन में डबल हो रहे हैं। यह संकेत भी आश्वस्त करती है कि कुछ कंपनियां कोरोना के लक्षणों पर शोध को बढ़ावा दे रही हैं। जब तक सही निदान नहीं मिलता, टुकड़ों में ही सही, इससे निपटने की रणनीति पर काम हो रहा है। लॉकडाउन के दूसरे दौरे में ही यह सवाल जेहन में कौंधने लगा था कि औद्योगिक दुनिया की दूसरी विकसित अर्थव्यवस्थाओं ने भी इसी दिशा में आगे बढऩा शुरू कर दिया है। महीनों कोई भी देश आखिर कब तक आर्थिक चुनौतियों से अपना राजस्व स्रोत ठप करके जूझ सकता है? फिर भारत जैसे विशाल आबादी वाले देश के लिए तो यह कुएं में कूदने जैसा है। यह अच्छा संकेत है कि केन्द्र सरकार तमाम राज्यों के मुयमंत्रियों से चर्चा के बाद 17 मई से देश के सभी कारखानों को सशर्त खोलने की अनुमति दे रही है। अर्थव्यवस्था का पहिया घूमना जरूरी है।
उद्योगपतियों ने भी इसके लिए सरकार पर जोर डाला था। मैकेंजी की रिपोर्ट कहती है कि करोड़ों की नौकरियां जा चुकी हैं और मौजूदा स्थिति बनी रही तो इतने ही लोग और बेरोजगार हो सकते हैं। सरकार का भी कोष धीरे-धीरे खत्म ही हो रहा है। एक बड़े राहत पैकेज की मांग चौतरफा उठ रही है लेकिन विवशता भी साफ है, उससे इनकार नहीं किया जा सकता। यही वजह है कि राज्य सरकारें भी केन्द्र पर अपने हिस्से का जीएसटी बकाया मांग रही हैं लेकिन केन्द्र की तरफ से अब तक कोई आश्वासन नहीं मिला है। आरबीआई की भी तो अपनी एक सीमा है। इस पर एक विसंगति यह भी है कि हाल ही में पता चला है कि एक और कारोबारी चार सौ करोड़ की चपत देकर विदेश भाग चुका है। वहां से उसने ट्वीट किया है कि वह दीवालिया हो चुका है, इसलिए देनदारी नहीं चुका सकता। मामले का निपटारा होने के बाद ही स्वदेश लौटेगा। इसे ही कहते हैं गरीबी में आटा गीला। यह सच है कि सरकार बैंक करप्सी कानून बनाकर इसी मामले से जूझती आ रही है।
बैंकों के मर्जर की बड़ी वजह यह भी है कि तर्क भले ही इसके विपरीत दिया जाये। अब प्रस्तावित नई व्यवस्था में उपलब्धियों से लेकर कर्मचारी तक शारीरिक दूरी, मास्क और सेनिटाइजर तक के नियमों को स्वत: निभाया है ताकि एक हफ्ते बाद कोरोना संक्रमण के मामले ना बढ़ें कि फिर से मजबूरन सरकार को लॉकडाउन का आश्रय लेना पड़े। जहां उत्पादन होता है, वहां स्वाभाविक है सतर्कता बरते जाने की जरूरत है। कुछ सेटर ऐसे हैं,जहां वर्क फ्राम होम यानि घर बैठे सेवाएं देने को बढ़ावा दिया जा सकता है। यूपी की योगी सरकार इस मामले में पहले से संकेत हैं। कई ऐसी कंपनियों में घर से अधिकतम काम हो रहा है और इस तरह कार्यालयों में स्वयं ही कम स्टाफ के बीच एहतियात बरते जाने का परिवेश तैयार हो जाता है। प्रवासी मजदूरों के मामले में भी योगी सरकार गंभीर है। मजदूरों की दक्षता का आंकड़ा जुटाया जा रहा है ताकि उन्हें उनके जनपदों में समायोजित किया जा सके। वक्त की मांग भी यही है कि यूपी सरकार अपने वर्क फोर्स को काम लगाकर अर्थव्यवस्था को रफ्तार दे सके। केन्द्र ने भी इस संबंध में आगे बढ़कर ठप अर्थव्यवस्था में उम्मीद जगाई है।