जब साथियों के लिए मजदूरों ने छोड़ दी अपनी सीटें

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जब घर जाने के लिए सफर शुरू होने वाला हो, अपनों से मिलने का फासला बस कुछ घंटों का रह गया हो, ऐसे में खुद गाड़ी से उतरकर दूसरों को घर जाने देना अपने आप में बड़ी कुर्बानी है। पलामू के रहने वाले दो मजदूर भाई विनोद और निरंजन यादव उन दो साथियों की ऐसी ही कुर्बानी को ताउम्र याद रखेंगे जिन्होंने गुमनाम रहकर उनकी मदद की। दरअसल, आकाशीय बिजली की चपेट में आकर विनोद और निरंजन की प्यारी बहन की मौत हो गई थी। मौत से दुखी दोनों भाई घर जाना चाहते थे लेकिन श्रमिक स्पेशल ट्रेन में पैसेंजर लिस्ट न नाम न मिलने पर मायूस हो गए। मदद के लिए इधर-उधर भटकने लगे। उन्होंने अधिकारियों के सामने मदद के लिए हाथ जोड़े और बताया कि उनका घर जाना बहुत जरूरी है।

उन्होंने अधिकारियों से कहा कि घर पर सभी को उनकी जरूरत है लेकिन अधिकारी भी दोनों की मदद के लिए असहाय नजर आए। इसके बाद अधिकारियों ने दूसरे यात्रियों से अपील की और पूछा कि अगर कोई अपनी सीट दे सकता हो तो। तब जाकर दो मजदूर सामने आए जिन्होंने अपनी सीटें उन भाइयों के लिए छोड़ दी। दोनों मजदूरों का घर जाने का इंतजार और लंबा हो गया लेकिन उन्होंने इतनी बड़ी मदद के बाद भी अपना नाम जाहिर करने से इनकार कर दिया। अधिकारियों ने भी उन दोनों मजदूरों की पीठ थपथपाई। गुमनाम रहकर उन्होंने जिस तरह से मदद की जिसको सब लेटे हैं पटरी पर दोनों भाई हमेशा याद रखेंगे।

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