अनुभव कराता है वास्तविक जीवन का अहसास

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अनुभव एक ऐसा भाव होता है जिसके आधार पर व्यति जीवन की हकीकत को समझता है साथ ही इससे सच्चे रिश्तों का महत्व पता चलता है। एक लड़का अपने परिवार के साथ रहता था। उसके पिता जौहरी थे। एक दिन उसके पिता बीमार पड़ गए, धीरेधीरे उनकी हालत बिगड़ती गई और अंत में उनका निधन हो गया। पिता के निधन के बाद परिवार पर आर्थिक संकट आ गया। ऐसे में मां ने घर चलाने के लिए बेटे को अपना एक कीमती हार दिया और कहा कि इसे अपने चाचा की दुकान पर दिखा देनाए वे भी एक जौहरी हैं। इसे बेचकर जो पैसे मिलेंगे वह ले आना। लड़के ने अपने चाचा को जब यह हार दिखाया, तो चाचा ने हार को अच्छे से देखा और कहा कि अभी बाजार बहुत मंदा है, इसे थोड़ा रुककर बेचना, तो अच्छे दाम मिल जाएंगे। फिलहाल तो तुम मेरी दुकान पर नौकरी कर लो, वैसे भी मुझे एक भरोसेमंद लड़के की जरूरत है। लड़का अगले दिन से दुकान का काम सीखने लगा। वहां उसे हीरों व रत्नों की परख का काम सिखाया गया।

अब उस लड़के के घर में आर्थिक समस्या नहीं रही। धीरे-धीरे रत्नों की परख में उसका यश दूरदराज के शहरों तक फैलने लगा। दूर-दूर से लोग उसके पास अपने गहनों की परख करवाने आने लगे। एक बार उसके चाचा ने उसे बुलाया और कहा कि जो हार तुम बेचना चाहते थे, उसे अब ले आओ। लड़के ने घर जाकर मां का हार जैसे ही हाथ में लेकर गौर से देखा तो पाया की वह हार तो नकली है। वह तुरंत दौड़कर चाचा के पास पहुंचा और उनसे पूछा कि आपने मुझे तभी सच यों नहीं बताया, जब मैं इस हार को बेचने आया था। इस पर चाचा ने कहा कि अगर मैं तुहें उस समय सच बताता तो तुहें लगता कि संकट कि घड़ी में चाचा भी तुहारे कीमती हार को नकली बता रहे हैं, और तुहें मुझ पर यकीन नहीं होता, लेकिन आज जब तुहें खुद ही गहनों को परखने का ज्ञान हो गया है, तो अब तुम खुद असली-नकली की पहचान कर सकते हो। इस कथा का सार यही है कि जीवन को अनुभव के आधार पर परखना चाहिए।

-एम. रिजवी मैराज

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