इंसान को सदैव ईश्वर का आभार जताना चाहिए

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कुछ लोग जरा सी विपदा में ईश्वर को कोसने लगते हैं। उन्हें ये लगता है कि ईश्वर उनके साथ नाइंसाफी कर रहा है तथा दूसरों के साथ इंसाफ कर रहा है। जबकि इंसान को विपात्ति में भी ईश्वर को दोष नहीं देना चाहिए। वह इसका धैर्य के साथ इसका मुकाबला करे और ईश्वर का आभार जताता रहे। तभी मुश्किले स्वत: समाप्त हो जाएगी। इस बारे में एक कथा यूं प्रचलित है। एक गरीब आदमी का किसी बात को लेकर अपने शहर के धनी आदमी से मुकदमा चल रहा था। गरीब आदमी अदालत की दी हुई तारीख जाकर अपने दावे की पैरवी कर रहा था। अदालत भी उसे हर बार नई तारीख दे दिया करती थी।

जबकि धनी सेठ कभी अदालत में जाता तो कभी नहीं जाता और पेशकार से बिना जाए तारीख ले लिया करता था। गरीब आदमी अदालत की दी जा रही तारीखों से उकता गया था। एक दिन जब वह अदालत में पैरवी के लिए जा रहा था तो सोच रहा था कि इन तारीखों ने उसके जीवन को नर्क बना दिया। हर बार जाने में उसका धन और समय खर्च होता है। लेकिन उसे अभी इंसाफ नहीं मिलता दिख रहा है। दुनिया की अदालतें भी धनी लोगों को ही इंसाफ देती हैं। इसी सोच में वह एक पेड़ के नीचे बैठ गया। पेड़ पर छोटे-छोटे कच्चे पक्के गूलर लदे थे। पास के खेत में बेलों पर तरबूज लदे हुए थे। गरीब को लगा इतने बड़े पेड़ पर इतना छोटा फल है इतनी छोटी बेल पर इतना बड़ा फल है।

उस लगा जब कुदरत के यहा इंसाफ नहीं है तो दुनिया की अदालतों से क्या शिकायत करें। इसी सोच-विचार में वह उसी पेड़ के नीचे सो गया। थोड़ी देर के बाद पेड़ से एक गूलर आकर उसके सिर लगा जिससे वह अचानक हड़बड़ाकर उठ गया। वह सोच रहा था कि कुदरत ने वास्तव में हर चीज सही सोच समझ बनाई है एक गूलर लगने से जब उसे इतना दर्द हुआ कि उसकी आंख खुल गई यदि इस पेड़ पर तरबूज जैसा फल उसके ऊपर गिरता तो उसकी जान चली जाती। अत: इंसाफ सभी को समय पर मिलता है।

एम. रिजवी मैराज

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