अस्तित्व में आने के बाद से ही चांद धरती पर शीतलता बिखेरता रहा है। यह सूरज की प्रचंड किरणों को सोखकर उससे न केवल खुद रोशनी लेता है बल्कि रात के अंधेरे में पृथ्वी को दूधिया चांदनी प्रदान करता है। रात में टिमटिमाते तारों भरे अनंत आकाश में चांद से सुंदर कुछ नहीं होता। इसलिए चांद सभ्यता के उदय काल से ही मनुष्य की कल्पना को रोमांचित क रता रहा है। दुनिया भर की तमाम भाषाओं के कवियों ने पूर्णिमा की चांदनी वाले मनोहरी रूप पर अपनी-अपनी तरह से कितनी ही कविताएं लिखी हैं। तब भला आम आदमी चांद और उसकी चांदनी का मुरीद क्यों न हो! मगर चांद का सिकुडऩा! यह तो हैरान करने वाली बात है। भले यह बात हमें अजीब लग रही हो, मगर हाल ही अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा के वैज्ञानिकों ने चांद के सिकुडऩे के नए प्रमाण सामने आने के बाद यह बात कही है।
दूसरे शब्दों में हम चाहें तो इसी बात को ऐसे समझ सकते हैं कि चांद बूढ़ा हो रहा है, उसके चेहरे पर यानी चन्द्रमा की सतह पर झुर्रियां पड़ रही है। इसी 13 मई को ‘नेचर जिओसाइंस’ में नासा के स्मिथसोनियन नेशनल एयर एंड स्पेस सेंटर के वरिष्ठ वैज्ञानिक थॉमस वॉटर्स और उनके साथियों द्वारा प्रकाशित एक नए शोधपत्र से यह पता चला है कि जैसे पृथ्वी पर अर्थक्वेक (भूकंप) और मंगल पर मार्सक्वेक आते हैं, वैसे ही चंद्रमा पर भी मूनक्वेक (चंद्रकंप) आते हैं। 1960 और 1970 के दशक के अपोलो अभियानों के दौरान चंद्रमा की सतह पर रखे गए सिस्मोमीटर के डेटा और नासा के टोही कृत्रिम उपग्रह लूनर रेकॉन्सेन्स ऑर्बिटर (एलआरओ) द्वारा खींची गई 12 हजार से अधिक तस्वीरों का उपयोग करते हुए वैज्ञानिकों ने चंद्रमा के उन क्षेत्रों का पता लगाया है, जहां मूनक्वेक्स हो रहे हैं। ये कंपन छोटे- मोटे नहीं हैं।
वैज्ञानिक रिक्टर स्केल पर इसकी तीव्रता कम से कम 5 बता रहे हैं। इतनी तीव्रता का भूकंप धरती पर आपकी खिड़कियां तोडऩे और फर्नीचर हिलाने में सक्षम है। वैज्ञानिक मानते हैं कि चंद्रमा अपने निर्माण के शुरुआती दौर में बेहद गर्म था। जैसे-जैसे यह ठंडा हुआ, इसका आकार सिकुड़ता गया। वैज्ञानिकों का आकलन है कि चन्द्रमा का व्यास 200 मीटर तक घटा है। सामान्य तौर पर चंद्रमा का औसत व्यास 3,474 कि लोमीटर बताया जाता है। हालिया स्टडी से पता चलता है कि चंद्रमा के ठंडे होने की प्रक्रिया अभी भी चल रही है। इससे इसकी सतह पर दबाव पड़ रहा है और दरारें पैदा हो रही हैं। इसी कारण चंद्रमा की सतह छुहारे या किशमिश की तरह झुर्रीदार हो रही है। हालांकि वैज्ञानिक कहते हैं कि यह कोई चिंता की बात नहीं है। क्योंकि चंद्रमा के सिकुडऩे की यह गति बहुत धीमी है।
इस अध्ययन में पाया गया है कि चंद्रमा के उत्तरी ध्रुव के पास ‘मारे फ्रिगोरिस’ बेसिन में दरार पैदा हो रही है। गौरतलब है कि मारे फि्रगोरिस चंद्रमा के विशाल बेसिनों में से एक है। इसे भूवैज्ञानिक नजरिए से अब तक एक मृतस्थल माना जाता रहा है। पृथ्वी की तरह चंद्रमा के नीचे विवर्तनिक प्लेटें (टैक्टोनिक प्लेटस) नहीं पाई जाती हैं। इसके बावजूद चंद्रमा पर टैक्टोनिक गतिविधियों के पाए जाने से वैज्ञानिक हैरत में हैं। हालांकि अभी तक चंद्रमा के ठंडे होने का सही कारण पता नहीं लग पाया है, लेकिन सिकुडऩे की प्रक्रिया चंद्रमा के ठंडा होते जाने की बात साबित करती है। यह नवीनतम खोज भविष्य के रोबॉटिक एक्सप्लोरर्स और ह्यूमन लूनर लैंडिंग साइटों को चिह्नित करने में काफी उपयोगी साबित हो सकती है। भविष्य के चंद्र अभियानों में कई और तरह से भी यह जानकारी मददगार हो सकती है। सबसे बड़ी बात यह कि इस जानकारी ने चंद्रमा के ध्रुवीय क्षेत्रों को लेकर वैज्ञानिकों में नई जिज्ञासा पैदा कर दी है। नतीजे के र प में आने वाले वर्षों में चांद के कई चौंकाने वाले रहस्यों पर से परदा उठे तो आश्चर्य नहीं।
प्रदीप
लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं