अंतिरिक्ष में सुपर एटम

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नासा के वैज्ञानिकों ने गुरुवार को अंतरिक्ष में पदार्थ की पांचवीं अवस्थाकी मौजूदगी दर्ज की है। इसे बोस-आइंसटाइन कन्डेंसेट (बीईसी) भी कहते हैं। और प्रयोगशालाओं में इसकी सूक्ष्म मात्रा न्यूनतम तापमान पर तैयार की जाती है। इस खोज के साथ ही अंतिरिक्ष के कई अनुसुलझे रहस्यों से पर्दा हटने का रास्ता साफ हो जाएगा। पदार्थ की तीन अवस्थाएं ठोस, तरल और गैस को हम जानते हैं। जैसे एक ही चीज के लिए बर्फ ठोस, पानी द्रव्य और भाप गैस अवस्था प्लाज्मा और पांचवीं बीएसई है। अगर गैस से भरे किसी बंद पात्र को इतना तपाया जाए कि उसके इलेक्ट्रॉन अपने ऑरबिट छोड़ने लगें तो उस पात्र में पॉजिटिव आयनों और इलेक्ट्रॉन्स का घालमेल बचा रहेगा जिसे प्लाज्मा कहा जाएगा। पदार्थ की पांचवीं अवस्था की परिकल्पना सबसे पहले 1920 में भारतीय वैज्ञानकि सत्येंद्र नाथ बोस ने की थी।

बाद में आइन्सटीन ने इसे सत्यापित किया और दोनों वैज्ञानिकों के नाम पर इसका नाम बोस- आइन्सटाइन कंडेसेट पड़ा। बाद में तीन वैज्ञानिकों एरिक ए, कॉर्नेल, कार्ल ई वीमन और वुल्फगैंग किटर्ली ने अलग -अलग प्रयोगों के जरिए 1995 में पदार्थ की पांचवीं अवस्था को प्रयोगशाला में प्राप्त किया, जिसके लिए 2001 में उन्हें भौतिकी का नोबेल पुरस्कार मिला था। हवा के लाखवें हिस्से के बराबर घनत्व वाले किसी पदार्थ को अगर एब्सोल्यूट जीरो टेम्परेचर (जिससे कम तापमान हो ही नही सकता) -273.15 डिग्री सेल्सियस पर लाया जाए तो वह पांचवीं अवस्था प्राप्त कर लेता है। इस अवस्था में उसके सारे कण मिलकर एक बड़े कण जैसा व्यवहार करने लगतें हैं नासा ने अपने अंतरिक्षीय प्रक्षणों में ऐसे ही सुपर एटम्स की शिनाख्त की है ।

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