सार्थक बनने पर ही समझ में आता है मनुष्य का महत्व

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अपने प्रतिद्वंद्वी से मुकाबला करते समय सारी ऊर्जा अपनी योग्यता बढ़ाने में लगाना व नजर उसकी कमजोरी पर रखना। ऐसा महाभारत युद्ध में कृष्ण पांडवों को सिखाया करते थे, क्योंकि पांडव व कृष्ण जानते थे कि कौरवों के पास बलशाली व योग्य लोग हैं और मुकाबले में हम कमजोर हैं। हारी हुई बाजी को जिताने में शकुनि माहिर था। लेकिन वह भी कृष्ण के सामने खुद को कमजोर मानता था। शकुनि चाहता था युद्ध से कृष्ण पर प्रतिबंध लग जाए। कृष्ण ने शकुनि के लिए कभी ऐसा कोई प्रतिबंध नहीं चाहा। वे कहा करते थे प्रतिबंध की जगह प्रतिस्पर्धा में योग्यता बढ़ाई जाए। किसी को हटा दो या मिटा दो, यह शोर करने की जगह कुछ ऐसा किया जाए कि हमारी हस्ती इतनी ऊंची हो जाए कि सामने वाला अपने आप ही खुद को हटा हुआ और मिटा हुआ माने। कृष्ण यह भी समझाते थे कि कोई भी मनुष्य अपने जन्म की घड़ी नहीं देख सकता, इसलिए जन्मदिन मनाता है। ऐसे ही मृत्यु की घड़ी भी नहीं देख पाएगा, पर मृत्युदिवस के प्रति जागरुकता अवश्य रखें।

हर जन्मदिन हमें मृत्यु के निकट ले जा रहा होता है, इसलिए अपने जन्म को, अपने मनुष्य होने को सार्थक बनाते हुए मृत्यु तक की यात्रा को इतनी ऊंचाई दे दो कि फिर कैसा भी प्रतिद्वंद्वी सामने हो, विजय आपके ही कदम चूमने को बेताब रहेगी..। भगवान कृष्ण यह भी समझाते थे कि दूसरा या है वह कैसे नष्ट होगा या उसका पतन कैसे होगा? इस पर विचार करने की बजाए इस बात पर ध्यान देना चाहिए कि हम उसकी बराबरी कैसे कर सकते हैं कैसे हम उसका मुकाबला कर सकते हैं। मनुष्य को अपनी ताकत बढ़ाने पर पर ही सारा ध्यान करना चाहिए। उनका कहना था कि यदि हम अपने को शत्रु के बल से अधिक बलशाली बनाने में सफल होंगे तभी हमारी विजय हो सकती है। यह बात आज के वातावरण पर भी निर्धारित होती है कि जब हमारे पड़ौसी शत्रुता का वातावरण बना रहे हैं तो हमें कैसे धैर्य से उनका मुकाबला करने के लिए अपनी ताकत को अर्जित करनी होगी।

पं. विजयशंकर मेहता
(लेखक)

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