सुख कुछ बित्ते की दूरी पर

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वै ज्ञानिक ऑर्थर क्लार्क की किताब के आधार पर एक फिल्म बनी है, जिसका नाम है ‘2002: स्पेस ऑडिसी’। इस फिल्म का एक दृश्य बड़ा ही दिलचस्प है। एक आदिमानव बेंत जैसी हड्‌डी को बड़ी चट्टान पर जोर से पटकता है। उस समय उसे ऐसा लगता है मानों उसके हाथों की ताकत बढ़ गई है। उस हड्‌डी के कारण उसके हाथ की लम्बाई में थोड़ा-सा इजाफा हुआ। इससे वह महाबलशाली बन गया। उसके बाद वह आदिमानव खुश होकर उस छोटी-सी हड्‌डी को हवा में उछालता है, जो ऊपर जाकर अंतरिक्ष यान का रूप धारण कर लेती है। शायद इसे ही इतिहास में टेक्नोलॉजी के आविष्कार की शुरुआत कहा जा सकता है।

आज टेक्नोलॉजी सभी को पूरी तरह से मेहनतमुक्त और तनावमुक्त करने के लिए आतुर है। मानव की जीवन शैली तेजी से बदल रही है। मनुष्य का स्वभाव भी है कि वह कड़ी मेहनत से बचना चाहता है और इसी चाहत ने दुनिया में कई आविष्कारों को जन्म दिया होगा। किसी आदिमानव ने खेत के किनारे-किनारे चलने के बजाय वर्गाकार खेत के केंद्र पर चलना जारी रखा। उससे जो आविष्कार हुआ, उसने पाइथागोरस के भू-मिति के एक महान प्रमेय को जन्म दिया। ऐसे समकोणीय रास्ते पर किनारे-किनारे चलने के बजाय खेत के मध्य से जाने में लगी कम मेहनत आदिमानव को रास आ गई। किसान ऐसे रास्ते को ‘शार्टकट’ कहते हैं। जहां-जहां ऐसे हालात होते हैं, वहां एक अदृश्य पाइथागोरस होता है।

1921-22 में आल्डस हक्सली का उपन्यास ‘ब्रेव न्यू वर्ल्ड’ प्रकाशित हुआ था, जिसमें ऑर्डर के मुताबिक टेस्ट ट्यूब बेबी तैयार करने की कल्पना की गई थी। इच्छानुसार बाल, आंख, नाक, कान और सुंदर चेहरे वाले अर्थात ‘मेड टू ऑर्डर’ वाले बच्चे प्रयोगशाला में तैयार हो सकेंगे। इस उपन्यास के प्रकाशित होने के 10 साल बाद हक्सली का निबंध संग्रह प्रकाशित हुआ, जिसका नाम था ‘ब्रेव न्यू वर्ल्ड – रिविजिटेड’। इस पुस्तक की शुरुआत में ही लेखक ने एक सुंदर बात कही है। वो कहते हैं कि स्वतंत्रता के लिए मरने को तैयार ऐसे युवाओं का सूत्रवाक्य है – गिव मी लिबर्टी ऑर गिव मी डैथ।

टेक्नोलॉजी का नर्क स्वर्ग से अधिक दूर नहीं होता। इंसान समझे तो सुख कुछ बित्ते की दूरी पर है। अज्ञानता के कारण मानव हॉस्पिटल या घर के बिस्तर की शोभा बढ़ाता है। जीवन-मृत्यु की आकाशीय यात्रा के पहले ट्रांजिट लाउंज पर बैठा व्यक्ति विंडो शॉपिंग करता है। उसकी अलमारी में सजी हुई श्रीमद्भगवद्गीता सदैव उसकी प्रतीक्षा करती रहती है कि कब ये अलमारी खुले और वह मुझे पढ़े।

पुरानी चीज़ें एंटीक में बदल गईं

टेक्नोलॉजी द्वारा सृजित किए गए स्वर्ग और नरक के बीच में एक अनपढ़ ‘गंवार’ खड़ा है। कबीर जिस करघे पर कभी सूत काटा करते थे और जिसे बाद में गांधी ने अपनाया, उसकी पहचान अब टेक्सटाइल मिल के रूप में होने लगी है। पानी गरम करने के लिए तांबे के बर्तन अब देखने को नहीं मिलते। पुरानी चीजें अगर मिलती भी हैं तो ‘एंटीक’ के रूप में, क्योंकि एंटीक की कीमत होती है।

गुणवंत शाह
(पदमश्री से सम्मानित वरिष्ठ लेखक और विचारक हैं ये उनके निजी विचार हैं)

 

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