जहां दिखा फायदा वहां छोड़ा कायदा

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सिद्धांत और नैतिकता पर स्वार्थ किस तरह हावी हो गया है इसे हिंदी साहित्य के महान लेखक प्रेमचंद जी इस तरह लिख गए हैं कि विचार और व्यवहार में सामंजस्य का न होना ही धूर्तता है, मकारी हैं। जहां दिखा फायदा वहां छोड़ा कायदा यह हर काल में नासूर बनकर अपना प्रभाव दिखाताआरहा है। वर्तमान काल भी इससे अछूता नहीं है और रंग बदलने के लिए सिर्फ गिरगिट का उदाहरण देकर अपने कर्तव्य की इतिश्री करना फैशन सा हो गया है। रंग बदलने की अति से तो गिरगिट भी शर्मिंदा होने लगे हैं। उन्हें भी गुस्सा आने लगा है, पर नेताओं को इसका कुछ भी मलाल नहीं है। एक प्रेस कांफ्रेंस में गिरगिट समिति के प्रवता ने बताया कि सिर्फ रंग बदलने के गुण के कारण हमारी तुलना पल-पल रंग बदलने वाले नेताओं से होने लगी है, जो गिरगिट जति का घोर अपमान है और इसे बहुत सह लिया है अब और बर्वश्त नहीं करेंगे। यह हमारी प्रजाति की मान हानि है। किसी प्राणी की भांति जब नेता अपना गुण धर्म बदल सकते हैं तो हम यों नहीं? अतिशीघ्र एक महा सम्मेलन कर जो अपने स्वार्थ के खातिर रंग बदलकर हमारी प्रजाति को बदनाम कर रहे हैं।

इसके लिए रंग बदलने के संबंध में एक प्रस्ताव पारित कर कड़ाई से पालन करने की शपथ दिलाई जाएगी और एक उप समिति का गठन कर सभी पर कड़ी नजर रखी जाएगी कि गिरगिट प्रजाति रंग न बदलकर एकता का परिचय देकर नेताओं को अपनी गलती का अहसास कराए। यह खबर सुनते ही राजनीति में हड़कंप मच गया कि गिरगिट प्रजाति अगर ऐसा करेगी तो नेताओं का अपमान होगा और लोग कहेंगे नेता की तरह रंग बदलता है। पर नेताओं में एक से एक बुद्धिजीवी भरे पड़े हैं। उनमें एक जोकि इस कला के सूक्ष्म जानकार थे और जिन्हें बॉस कहा जाता था कहने लगे कि यह उनका कॉपीराइट थोड़े ही है, हम ऐसा नहीं करेंगे तो या करेंगे। अरे समझो राजनीति का यह सिद्धांत है कि जिधर हवा का रुख हो उसी तरफ चलना तो ही जल्दी मंजिल तक पहुंचने में आसानी होगी। यही तो समझदारी है और समय का तबाज भी है। वे कहने लगे जिनके शर्म करना है वो करे, हम तो जिस उद्देश्य के लिए राजनीति में आए है उसे पूरा करेंगे, हमें लोग या कहेंगे का तनिक भी अफ़सोस नहीं होता है। हम तो वो है जो जानते हैं कि ष्जिसने की शर्म उसके फूटे करम के ब्रह्म वाय का पालन मजबूती से करना इस क्षेत्र में जरूरी है और जहां मिले फावव वहां छोड़ो कायद।

तब ही तो टिक पाएंगे इस प्रतिस्पर्धा के दौर में अपने मुंह मियां मिट्ट बनने में महारत होना जरूरी है। तभी उनके मोबाइल की घंटी बजी। वे अपना रुतबा दिखाने के लिए जोश में आकर कहने लगे, ये महाशय अपने आप को राजा हरिशंद्र का वंशज मानते हैं। राजनीति में सुपर लॉप साबित हुए हैं। ये राजनीति में बहुत पुराना, पर बहुत लाचार हैं। दुम हिलाना, चमचागिरी से कोसों दूर हैं। सोचो भला वे आदमी कैसे आगे बढ़ेगा, आखिर उनका फोन रिसीव न करके यह जताने की कोशिश की ऐसे लोगों की हमें कोई परवाह नहीं है। काम होगा तो दस बार लगाएगा। ऐसे तो कई पट्टे पाल रखे हैं। मैं यह सब बड़ा बेबस होकर सुनता रहा। मुझे लग रहा था कि पूरा वातावरण ही इसकी गिरत में है। सिद्धांतहीनता की लहर जब चलती है तो सिद्धांत को मानने वाले भी लहर से प्रभावित तो होते ही हैं। एक दूसरे की शल से घृणा करनेवाले जब एक थाली में खाने लगें, एक दूसरे को गले लगाने लगे तो दिल और दिमाग एक साथ सक्रिय होकर कह उठता है कि जहां दिखा फायदा वहां छोड़ा कायदा।

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