मानव कोशिकाओं जैसे छोटे रोबोट तैयार

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कॉर्नेव यूनिवर्सिटी के मार्क मिस्किन ने अपने सहकर्मी इताई कोहेन, पॉल मैक्वेन और रिसर्चर एलेजेंड्रो कोर्टेस के साथ मिलकर इस नौनोफैब्रिकेशन तकनीक को विकसित किया है। इस रिसर्च को अमेरिकन फिजिकल सोसाइटी की बॉस्टन में हुई मीटिंग में प्रजेंट किया गया है। रिसर्चर मार्क मिस्किन बताते हैं, जब मैं छोटा बच्चा था, बत मैं माइक्रोस्कोप में काफी छुह होते हुए देखता था।

न्यूयार्क की कॉर्नेल यूनिवर्सिटी के रिसर्चर्स ने एक नई नैनोफैब्रिकेशन तकनीक वीकसित की है। इसकी मदद से उन्होंने मानव कोशिकाओं जितने छोटे चलते फिरते रोबोट बनाए हैं। इन रोबोट्स का आकार एक बाल की चौड़ाई जितना है। इन्हें इंजेक्शन के जरिए मानव शरीर में इजेक्ट भी किया जा सकता है। इस नमैफैब्रकिशन तकनीक की मदद से एक 4 इंच के विशेष सिलिकॉन वेफर को कुछ हफ्तों के समय में ही लाखों माइक्रोस्कोपिक रोबोट्स में बदला जा सकता है। कॉर्नेव यूनिवर्सिटी के मार्क मिस्किन ने अपने सहकर्मी इताई कोहेन, पॉल मैक्वेन और रिसर्चर एलेजेंड्रो कोर्टेस के साथ मिलकर इस नौनोफैब्रिकेशन तकनीक को विकसित किया है। इस रिसर्च को अमेरिकन फिजिकल सोसाइटी की बॉस्टन में हुई मीटिंग में प्रजेंट किया गया है। रिसर्चर मार्क मिस्किन बताते हैं, जब मैं छोटा बच्चा था, बत मैं माइक्रोस्कोप में काफी छुह होते हुए देखता था। अब हम जिस तरह की चींजे बना रहे है, उनके जरिए हम ना सिर्फ उस दुनिया को देख सकते हैं, बल्कि उस दुनिया के अंदर खेल भी सकते हैं। मार्क ने बताया कि उन्होंने इस तकनीक को बनाए के लिए सेमीकंडक्टर इंडस्ट्री द्वारा बनाई गई तकनीक ली है, और इसे रोबोट बनाने में इस्तेमाल किया है।

फिलहाल इस रोबोट्स का शुरुआती मॉडल ही बनाया गया है। कॉर्नेल और पेनिनसिल्वेनिया की टीमें रोबोट के स्मार्ट वर्जन पर काम कर रही हैं। इसमें ऑन बोर्ड सेंसर, घड़ी और कंट्रोलर लगाए जाएंगे। टीम के मुताबिक फिलहाल जो ऊर्जा स्रोत इस्तेमाल किया जा रहा है, उससे रोबोट सिर्फ एक नाखुस जितने हिस्से में ही गति कर पाएगा। इसलिए टीम रोबोट के लिए ऊर्जा के अन्य स्त्रोतों का परीक्षण करने की तैयारी में है, जिससे रोबोट पूरे मानव शरीर में यात्रा कर अलग-अलग मेडिकल मिशन पूरे कर सकें। ये रोबोट्स शरीर के आतंरिक अंगों में दवा पहुंचाने और ब्रेन मैपिंग के लिए इस्तेमाल किए जा सकेंगे। नैनोफैब्रिकेशन तकनीक में खए 4 इंच के विशेष सिलिकॉन वेफर को कुछ हफ्तों के समय में लाखों माइक्रोस्कोपिक रोबोट्स में बदला जा सता है। हर एक रोबोट करीब 70 माइक्रोन लंबा होगा। यह एक आम इंसान के बालों की चौड़ाई जितना है। रोबोट के शरीर को बहुत ही पतले कांच के ढांचे से बनाया गया है।

इसके ऊपर सिलिकॉन की एक पतली परत है, जिसमें रिसर्चर्स ने रोबोट के इलेक्ट्रॉनिक कंपोनेंट लगाए हैं। इसी के साथ इसमें दो से चार सोलर सेल भी लगाए गए हैं। हर रोबोट के चार पैर हैं। पैरों को बनाने के लिए प्लेटिनम और टाइटेनियम की दोहरी परत बनाई गई। इसके बाद इस परत से हर रोबोट के लिए 100 परमाणु मोटे पैर अलग किए गए। रिसर्चर्स के अनुसार रोबोट के पैर बहुत मजबूत हैं, रोबोट का हर पैर खुद से करीब एक हजार गुणा मोटा और करीब आठ हजार गुणा ज्यादा वजन उठा सकते हैं। रिसर्चर रोबोट पर लेजर लाइट मारते हैं जिससे रोबोट के सोलर सेल्स को ऊर्जा मिलती है। इस ऊर्जा से पैर का प्लेटिनम वाला हिस्सा अपनी जगह पर बना रहता है। जिससे रोबोट का पैर मुड़ता है। सोलर सेल से रोबोट के आगे और पीछे के पैर सिकुड़ते और फैलते हैं, जिससे रोबोट चल-फिर पाता है।

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