इस्तीफों का शोर

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सत्ता की सियासत में उतार-चढ़ाव आते रहते हैं, कोई जीतता है तो कोई हारता है। पर भाजपा की केन्द्र में प्रचण्ड जीत के साथ वापसी का असर अन्य दलों पर इतना मारक होगा, इसका किसी को भी अंदाजा ना रहा होगा। पहले भी हार-जीत के परिदृश्य सामने आये हैं। खासतौर पर जिन्हें हार मिली उन्होंने आत्मंथन किया और एक वक्त के बाद फिर चुनौती देने लायक बन गये। लेकिन देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस के साथ ऐसा होता नहीं लग रहा। 2014 में हुई करारी हार के बाद 2019 में भी स्थिति कमोवेश वही रहने पर यह सवाल तो उठेगा कि पिछली बार हार से पार्टी ने कोई सबक नहीं लिया। हार से पैदा हुई ताजा परिस्थिति में कांग्रेस जिस तरह राहुल गांधी के इस्तीफे पर ऊहापोह की स्थिति में दिखाई दे रही है, उससे देश भर में फैले पार्टी कार्यकर्ताओं के बीच अच्छा संदेश नहीं जा रहा है।

सीधी-सी बात इस्तीफा देने से दयि तस्वीर बदलने की कोई संभावना है तो उसमें इतना किन्तु-परन्तु क्यों? और वास्तविकता यगि यही है कि गांधी परिवार के हाथ में कमान रहने से ही पार्टी नये सिरे खड़ी हो सकती है तो फिर इस्तीफे की पेशकश क्यों हुई? अच्छा तो यही होता इस बार हार को गंभीरता से लेते हुए पार्टी के भीरत पराजय के कारणों की पड़ताल की जाती और उससे निपटने के लिए नये सिरे-से रणनीति बनती। पर इधर दो-तीन दिनों से सारी कवायद राहुल के इस्तीफे के इर्द-गिर्द होती दिख रही है। वैसे कांग्रेस अध्यक्ष ने पार्टी के लोगों से कह दिया है कि तीन-चार महीने में उनका विकल्प तय कर लें। उसके बाद वह अध्यक्ष नहीं रहेंगे। फिलहाल इस्तीफे का मसला कुछ महीनों के लिए ठंडा पड़ गया है। इस बीच राजस्थान, पंजाब, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश से भी अध्यक्षों के इस्तीफे दिए जाने की खबर चर्चा में रही।

पहले इस्तीफे की पेशकश पर कांग्रेस के भीरत अफरातफरी और उसके बाद तीन-चार महीनों के लिए इस्तीफे को ठंडे बस्ते में डाल देने से पार्टी की छवि संवरने के बजाय सवालों के घेरे में आ गई है। दूसरी पार्टियां, खास तौर पर भाजपा वंशवादी पार्टी बताते हुए कांग्रेस को निशाना बनाती रही है। राहुल के इस्तीफे का शोर फिलहाल थमने से पार्टी क्या हासिल कर पाएगी, पार्टी जाने लेकिन इतना तो साफ है कि राहुल गांधी हार की जिम्मेदारी लेते हुए पद छोड़ना चाहते हैं लेकिन पार्टी के लोग ही नहीं चाहते एक नई शुरुआत हो। पार्टी नेताओं के अलावा जेल में सजा भुगत रहे लालू यादव भी नहीं चाहते राहुल अध्यक्ष पद छोड़े। प्रियंका गांधी वाड्रा ने भी कहा है कि इस्तीफे की कोई जरूरत नहीं है बल्कि पार्टी के भीरत आमूल-चूल परिवर्तन की जरूरत है। इस बीच राष्ट्रीय जनता दल के अध्यक्ष तेजस्वी दायव से भी इस्तीफे की मांग हो रही है। टीएमसी अध्यक्ष ममता बनर्जी ने भी इस्तीफे की पेशकश की थी लेकिन पार्टी ने उसे मंजूर नहीं किया। हार का असर यूपी में भी समीक्षा बैठकों के रूप में दिख रहा है।

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