आजादी के दिन की बधाई, जय श्री राम

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तोताराम ने पूरे जोश-ओ-खरोश से दरवाजा खटखटाते हुए हांक लगाई, जय श्री राम। स्वतंत्रता-दिवस की बधाई हो भाई साहब। हमने दरवाजा खोलते हुए कहा-स्वतंत्रता दिस तो ठीक है लेकिन हमारा दरवाजा तोड़ने की स्वतंत्रता तुझे किसने दी? बोला-देखिये आदरणीय, उत्साह में होश थोड़ा-बहुत इधर-उधर हो ही जाता है।

हमने कहा- इस प्रकार तुम्हारा यह उत्साह देशी दारू के नशे की तरह हो गया कि स्वदेश के नाम पर किसी को भी उल्टा-सीधा कह दो। उत्साह को जोश से अधिक होश की जरूरत होती है। हम राम तो क्या उनके दास हनुमान जी तक के दासानुदास हैं लेकिन आज के दिन हमें तुम्हारा यह नारा भी कुछ अजीब लग रहा है। बोला -तो क्या भारत में जय श्रीराम बोलना भी गुनाह है? भारत में नहीं तो और कहां बोलेंगे जय श्रीराम?

हमने कहा-तोताराम, बिना बात का बतंगड़ मत बना। हमारा कहने का मतलब यह है कि ये दो अलग-अलग बातें है। इन्हें आपस में मिलाने से कन्फ्यूजन हो जाता है। और कृपा करके कन्फ्यूजन को फ्जूनज इनर्जी से जोड़कर हमारी बात का सत्यानाश मत कर देना। आजकल तेरे जैसे उत्साही लोग किसी भी बात को तार्किक ढंग से समझने की बजाय शब्दों और अनुप्रास में उलझाकर हर बात का सत्यानाश करने में ही लगे हुए हैं। बोला-लेकिन इसमें खराबी क्या है?

हमने कहा-खराबी यह है कि स्वतंत्रता- दिवस इस देश के सभी लोगों धर्मों, जातियों और भाषाभाषियों का है जबकि राम को सभी महान मानते हैं लेकिन सबके लिए राम उस तरह से आस्था का विषय नहीं है जैसे देश का झंड़ा और स्वतंत्रता-दिवस, तुझे पता है, कुछ लोग कहते हैं कि भारत पर आक्रमण के समय मुसलमान अपनी सेना के आगे गाय को कर देते थे। गाय हिन्दुओं के लिए अवध्य है। इसलिए वे हथियार नहीं चला सकते थे और मुसलमान जीत जाते थे जैसे कि शिखंडी को आगे करके पांडवों ने भीष्म को मार डाला। इसलिए घालमेल में षड्यंत्र होने की बहुत संभावना रहती है। बोला-तो फिर भाजपा ने बसपा और सपा में रह चुके सेंगर को क्यो स्वीकार कर लिया?

हमने कहा-इसे स्वीकार करना नहीं कहते। यह तो वैसे ही है जैसे अरब देशों में भारतीय मुसलमानों को दोयम दर्जे का माना जाता है। उन्हें नौकर तो रखा जा सकता है लेकिन शादी ब्याह के संबंध नहीं किए जाते। सेंगर को भाजपा में लिया है सत्ता पक्की करने के लिए लेकिन संघ में तो नहीं लिया ना? संघ पवित्र है उसकी पवित्रता बनाए रखने के लिए सबका प्रवेश वहां नहीं है।

बुद्ध ने महिलाओं को संघ में लिया तो क्या हुआ? सबको पता है। संघ यौनापराधों के अड्डे बन गए जैसे चर्च; जहां कुंवारी साध्वियां और वैसे की फादर-ब्रदर रहते हैं। उनकी नाजायज संताने उनके भतीजे-भतीजियां कहलाते हैं और वहीं कान्वेंट में पढ़ते-पलते हैं। यह बात और है कि यहां किसी भी गांव में कोई कान्वेंट खोल कर बैठ जाता है। तभी चर्चों और संघों की तरह ऐसे निजी स्कूलों में शिक्षा भ्रष्ट हो रही है। इसलिए जोर से बोल-जय भारत। तोताराम ने हमसे भी जोर से नारा लगया-जय भारत

रमेश जोशी
लेखक वरिष्ठ व्यंगकार हैं, ये उनके निजी विचार हैं

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