एकै साधे सब सधै

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एक सिरे को पकड़कर सुलझाने लगें तो धीरे-धीरे सारी उलझनें सुलझ जाएंगी। एक काम मन लगाकर शुरू कर दें तो अन्य काम भी होने लगेंगे। शुरुआत में केवल एक लक्ष्य पर फ़ोकस रखें तो अंतत अन्य लक्ष्यों का संधान भी हो जाएगा। एक को पकड़ें और एक की महिमा को अपने जीवन में स्वयं महसूस कर लें। आप उस छात्र के बारे में ज़रूर जानते होंगे, जो किसी दिन संकल्प लेता था कि अब से हर विषय नियमित रूप से पढ़ूंगा। फिर वह बैठकर बड़ी मेहनत से समय-सारणी बनाता, जिसमें सुबह छह बजे उठने से लेकर रात के दस बजे सोने तक, हर घंटे के क्रियाकलाप स्पष्ट रूप से लिखे होते थे। लेकिन अफ़सोस! अगले ही दिन वह पहले की तरह सुबह दस बजे तक सोता रहता और सारी समय-सारणी धरी रह जाती। हम सभी के भीतर वह छात्र थोड़ा-न-थोड़ा होता ही है, जो अपनी कमज़ोरियों के चलते आने वाली मुश्किलों से उकताकर एक दिन सबकुछ बदल डालने का ‘पक्का संकल्प’ लेता है। इसके बाद या होता है यह भी हम अच्छी तरह जानते हैं। सबकुछ तो दूर की बात, अधिकांश मामलों में कुछ भी नहीं बदलता। ऐसी स्थिति में याद आते हैं कवि रहीम, जिन्होंने कहा था- एकै साधे सब सधै सब साधे सब जाय। रहिमन मूलहि सींचिबो, फूलहि फलहि अघाय॥

यानी एक काम (या लक्ष्य) को मन लगाकर करने से बाक़ी सारे काम भी हो जाते हैं, जबकि सारे कामों को एक साथ करने की कोशिश से कुछ भी नहीं हो पाता। जैसे, केवल जड़ को सींचने से भी पेड़ फल-फूल से भरपूर होता है। यहां पर सूत्र है – एक काम या लक्ष्य को पूरा करना। जैसे, दिनचर्या नियमित करने के लिए आवश्यक है सुबह सही समय पर जागना। सुबह पांच या छह बजे बिस्तर छोड़ देने वाला व्यति देर रात तक नहीं जाग सकता, बशर्ते वह अनिद्रा का रोगी न हो। यानी सुबह जल्दी जागने से ठीक समय पर सोने की आदत भी स्वत बन सकती है। इसके अलावा, सुबह जल्दी उठने से कुछ समय बाद नित्य क्रियाओं का क्रम भी नियमित होने लगता है। धीरे-धीरे अन्य क्रियाकलाप भी पटरी पर आने लगते हैं। जादुई असर दिखाएगा कोई भी काम सिफऱ् जल्दी जागना ही यों, आप दिन का कोई काम भी व्यवस्थित कर लीजिए, तो शेष काम भी धीरे-धीरे सही समय पर होने लगेंगे। मसलन, आपने दिन के 12 बजे भोजन शुरू कर दिया तो स्वाभाविक रूप से रात आठ बजे भूख लगने लगेगी और दो घंटे बाद, दस बजे आप आराम से सोने जा सकेंगे। इससे नींद अच्छी आएगी और सुबह पांच-छह बजे तक आसानी से खुल जाएगी। आप तरोताज़ा महसूस करेंगे तो स्वास्थ्यवर्धक गतिविधियां और खानपान आपकी दिनचर्या में शामिल होते जाएंगे।

आपने अपने घर-परिवार या सामाजिक दायरे में देखा होगा कि रोज़ाना नियम से पूजापाठ करने वालों की दिनचर्या बड़ी नियमित होती है। उन्हें पूजा एक निश्चित समय पर करनी होती है और भोग लगाना होता है। ज़ाहिर है, यह सब दोपहर में नहीं हो सकता। सो, उन्हें सुबह निश्चित समय पर जागना ही होता है। चूंकि पूजा करनी होती है, इसलिए वे स्नान आदि नित्य क्रियाओं में भी टालमटोली नहीं कर सकते। पूजा-पाठ की नियमित प्रक्रिया उनके जीवन में एक अनुशासन ला देती है। इसके चलते उनका खानपान संतुलित होता है और वे अपनी उम्र के अनुसार पर्याप्त शारीरिक श्रम भी करते हैं। पूजा-आराधना के मानसिक शांति और सकारात्मक मानसिकता जैसे लाभ तो हैं ही! कहने का मतलब है कि एक सिरा पकड़कर आप सारी उलझनें सुलझा सकते हैं। कई जगहों पर एक साथ कोशिश करने से धागे और उलझते हैं। चीज़ें एक सिरे से सुलझती हैं तो फिर सुलझती चली जाती हैं। एक तरफ़ से आरंभ करने पर ध्यान केंद्रित करने में सरलता होती है।

क्यों होती है एक को पकडऩे की ज़रूरत? कई बार पहला क़दम ही सबसे मुश्किल लगता है। शुरुआत ही नहीं हो पाती। एक काम से शुरुआत करने से पहले क़दम के कामयाब होने की संभावनाएं बढ़ जाती हैं। इससे आत्मविश्वास और उत्साह में इजाफ़ा होता है, जिससे आगे के काम आसानी से होने लगते हैं। जि़ंदगी में जब समस्याओं का अंबार नजऱ आए तो यह सूत्र और भी कारगर हो सकता है। समस्याएं जब ज़्यादा दिखती हैं तो मन नकारात्मक होने लगता है, हौसला घटने लगता है। व्यति हाथ पर हाथ धरकर बैठ जाता है। उसे कोई राह नहीं सूझती। ऐसे में, किसी एक समस्या पर ध्यान केंद्रित कर उसे सुलझाना काफ़ी मददगार हो सकता है। एक छोटी-सी सफलता मन में भरोसा जगा सकती है कि समस्याएं सुलझ सकती हैं। इसके बाद कडिय़ां जुड़ती जाती हैं और एक दिन व्यति का जीवन पूरी तरह बदलकर संवर जाता है। एकै साधे सब सधै। पहला क़दम ही मंजि़ल तक ले जाता है। एक काम को पकडि़ए, एक लक्ष्य को साधिए। एक का कमाल ख़ुद देख लीजिए।

विवेक गुप्ता
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं और काउंसलिंग भी करते हैं,ये उनके निजी विचार हैं)

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