मुझे ज्योतिष व गृह-नक्षत्र ज्ञान तो ज्यादा नहीं है पर हाथ दिखाने का काफी शौक है। मेरे सेलफोन में करीब दर्जन भर पंडितो के नंबर भी है और मैं इनके साथ लगातार संपर्क में रहता हूं। मेरा मानना है कि अच्छा ज्योतिषी तो मानों दर्द निवारक दवा की तरह होता है वह हमारी समस्या को कम कर पाते या नहीं, मगर दर्द निवारक दवा की तरह उसकी बुरी कल्पना व दर्द दूर कर देता है व तनाव के दौर में हमें राहत जरूर मिल जाती है।
अब तक के अपने अनुभवों के आधार पर मैं कह सकता हूं कि ज्यादातर कांग्रेसी नेता मीन राशि के होंगे। जिस तरह से मछली पानी के बिना छटपटाने लगती है वैसा ही इसकी तरह नेताओं के साथ होता है। यह लोग सत्ता के बिना नहीं रह पाते हैं। जब जनता पार्टी बनी तो आपातकाल के कारण अपनी व पार्टी में हार को तय मान बैठे तमाम पार्टी नेता कांग्रेस छोड कर भागने लगे व जनता पार्टी में शामिल होकर लोकतंत्र के स्वयंभू-रक्षक बनकर दोबारा सत्ता में आ गए।
इनमें तत्कालीन रक्षामंत्री जगजीवन राम से लेकर उत्तर प्रदेश जैसे सबसे बड़े राज्य के मुख्यमंत्री रहे हेमवती नंदन बहुगुणा तक शामिल थे। इंदिरा गांधी व संजय गांधी ने अपनी पार्टी के नेताओं की इस सत्ता लोलुपता को पहचाना और उसका लाभ उठाते हुए जनता पार्टी तुड़वा दी। बाद में यह काम राजीव गांधी ने किया। हालांकि बार-बार सरकारे गिराने व बनवाने के कारण कांग्रेस की छवि को बहुत नुकसान पहुंचा और वह सरकार तोड़क दल के रूप में जानी जाने लगी।
सरकार में लोगों ने इसी सत्ता लोलुपता का फायदा उठाते हुए आंध्र प्रदेश में एनटी रामाराव की सरकार व जम्मू कश्मीर की तत्कालीन डा फारूख अब्दुल्ला की सरकार को गिराया व पद लोलुपता का सबसे बड़ा उदाहरण तो मुख्यमंत्री भजनलाल ने पेश किया था। वे मुख्यमंत्री रहते हुए जनता पार्टी के तमाम विधायकों व मंत्रियों के साथ कांग्रेस में शामिल हो गए थे।
मुझे लगता है कि सत्ता के लिए छटपटाना व कुछ भी करने के लिए तैयार रहता तो मानो कांग्रेसियों के डीएनए में शामिल हो गया है। उन पर जिधर दम, उधर हम की कहावत पूरी तरह से लागू होती है। कांग्रेसी सत्ता के बिना पांच साल तक नहीं रह सकते हैं। नरेंद्र मोदी के दोबारा सत्ता में आने के बाद उनकी छटपटाहट और बढ़ गई है। वे तो नवरात्रों में घर पर कन्या भोजन के लिए आने वाली उन बच्चियों की तरह होते हैं जोकि अपने नेता के साथ सदलबदल किसी के घर में जीमने के लिए जाने को तैयार रहते हैं।
पहले मेरा मानना था कि दल-बदल करवाने व सरकार बनाने के मामले में कांग्रेस को महारात हासिल है। मगर नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली भाजपा ने पिछले पांच साल के दौरान ही गोवा से लेकर उत्तर पूर्वी राज्यों तक में अपनी सरकारे जोड़-तोड से बनाकर यह साबित कर दिया है कि अगर कांग्रेस चील है तो वे बाज हैं। पहले मेरा मानना था बाज व गिद्द की तरह दूसरो का शिकार छीन ले जाने वाली कांग्रेस के घोसले से मांस का टुकड़ा उठा पाना असंभव है। पर अब मैं मानने लगा हूं कि यहां तो परभक्षी, घोसले के मालिक ही आक्रांता को अपनी निष्ठा का टुकड़ा देने के लिए आतुर नजर आ रहे हैं।
जब से लोकसभा व विधानसभा चुनाव के नतीजे आए व कांग्रेसी नेताओं को लगने लगा है कि उन्हें अगले पांच साल तक सत्ता के सूखे कासामना करना पड़ेगा तब से उनका दिल व पाला बदलने की घटनाएं तेज हो गई। तेलगू भाषी राज्यों आंध्र प्रदेश व तेलंगाना में कांग्रेस की दुर्दशा शब्दों में व्यक्त नहीं की जा सकती है। तेलंगाना की 120 सदस्यीय विधानसभा में कांग्रेस ने 18 सीटे जीती। इनमें से दो तिहाई 12 विधायको ने टीआरएस में विलय कर लिया व टीआरएस के विधायको की संख्या 103 हो गई।
वहीं पड़ोसी राज्य आंध्र प्रदेश में भी कांग्रेस के विधायकों में से दो -तिहाई विधायक जगनमोहन रेड्डी की वाईएसआर कांग्रेस में शामिल हो गए। इन दोनों ही राज्यों में कांग्रेस के नेताओं को लग रहा था कि उनकी वहां कोई राजनीतिक भविष्य नहीं है। पश्चिम बंगाल के लोकसभा चुनाव में अपनी स्थिति सुधारने के साथ ही भाजपा ने वहां सेंध लगाने का दुस्साहस करना शुरू कर दिया है। तृमूका के 2 विधायक व 50 कारपोरेटर भाजपा में शामिल हो चुके हैं व खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी यह ऐलान कर चुके हैं कि ममता के करीब 50 विधायक भाजपा में आने के लिए तैयार बैठे हैं। महाराष्ट्र में तो कांग्रेसी विपक्ष के नेता राधाकृष्ण पाटिल ने पार्टी छोड़ दी व उनका बेटा सुजोय पाटिल भाजपा में शामिल हो चुका हैं। यहां यह बताना जरूरी हो जाता है कि तदैपा व टीआरएस के नेता भी कांग्रेसी मूल के हैं।
विवेक सक्सेना
लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं,ये उनके निजी विचार हैं…