ये खुलासा चिंता में डालने वाला

0
104

दो बरस पहले नवंबर महीने में पेगासस के जरिये भारत में जासूसी पर चिंताएं प्रकट की गई थीं। यानी ठीक उन्हीं दिनों हमें पता लग गया था, जब यह असंवैधानिक और आपराधिक कृत्य किया जा रहा था। यही नहीं, संसद में यह मामला उठा था। राज्यसभा में 28 नवंबर 2019 को कांग्रेस ने इस पर सरकार से सफाई मांगी थी। तत्कालीन इलेक्ट्रॉनिकी तथा सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री रविशंकर प्रसाद ने सदन में उत्तर दिया था। उस समय भी जासूसी की इन खबरों का आकार विकराल था और आज भी ताजा खुलासे के बाद हमारे अपने तंत्र पर सवाल उठ रहे हैं। अंतर इतना है कि उस समय अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव नहीं हुए थे।

इजरायली सॉफ्टवेयर पेगासस बनाने वाली कंपनी एनएसओ कहती है कि उक्त सॉफ्टवेयर सिर्फ लोकतांत्रिक मुल्कों को उनके राष्ट्रीय हितों की रक्षा के लिए मुहैया कराया गया है। इसका मकसद सिर्फ अपराधियों, कानून तोड़ने वालों, उग्रवादी संगठनों तथा माफिया गिरोहों से निपटने में किया जाना है। कंपनी के इस मासूम तर्क पर क्या कहा जाए। जिस दिन इस सॉफ्टवेयर का जन्म हुआ होगा, उस दिन से ही स्पष्ट है कि यह नकारात्मक हथियार है और हुकूमतें इसका दुरुपयोग विरोधियों से निपटने में करेंगी। समीकरण समझने हों तो कहा जा सकता है कि अमेरिका और इजरायल के रिश्ते छिपे हुए नहीं हैं। सूचनाएं उस दौर की हैं, जब डोनाल्ड ट्रंप गद्दी पर विराजमान थे और हिन्दुस्तान के बड़े प्रिय थे। वाशिंगटन पोस्ट, गार्जियन तथा इस खुलासे में शामिल संस्थानों के वे कट्टर आलोचक रहे हैं। इन संस्थानों की उनसे कभी नहीं बनी। ट्रंप अगले चुनाव के लिए अत्यंत गंभीर मुद्रा में नजर आते हैं तो जो बाइडेन को क्या करना चाहिए? मैं इसका यह अर्थ लगाने के लिए आजाद हूं कि ट्रंप के प्रिय राष्ट्रों की सरकारें बदनाम और अलोकप्रिय हो जाएं और फिर अगले चुनाव तक डोनाल्ड ट्रंप को सहायता नहीं दे सकें- यह भी इस खुलासे का एक अपवित्र उद्देश्य हो सकता है।ऐसे में उस दौर की सूचनाएं उजागर करने का अर्थ यह है कि पेगासस जासूसी प्रसंग का अंतर्राष्ट्रीय फलक बहुत विकराल है। हिन्दुस्तान तो उसमें एक छोटा सा हिस्सा भर है।

भारत के नजरिये से यह खुलासा वाकई चिंता में डालने वाला है। यहां के अनगिनत लोगों की जिंदगी के राज फोन से उजागर होते हैं तो उसके लिए कौन जिम्मेदार है? आम आदमी इजरायल के किसी जासूसी सॉफ्टवेयर का निशाना बन जाए तो नागरिकों के पास मुकाबले के लिए कोई संसाधन और तकनीकी काबिलियत नहीं है। मान लीजिए अगर वह सक्षम भी हो तो इस अपराध से लड़ाई उसे क्यों लड़नी चाहिए। खास तौर पर उस हाल में, जबकि उसने अपने बेहद ताकतवर हथियार यानी वोट के माध्यम से मौलिक अधिकार की रक्षा के लिए अपनी सरकार को ही अधिकृत कर दिया हो।

गंभीर मसला यह नहीं है कि सरकार उस पत्रकार, राजनेता, विचारक या किसी आलोचक के हक की हिफाजत कर पाएगी या नहीं। महत्वपूर्ण तो यह है कि क्या भारतीय सरकारी तंत्र भी इस जुर्म में शरीक है। यदि ऐसा है तो इसकी क्या गारंटी है कि जिस सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल सरकारी तंत्र ने अपने आकाओं के आलोचकों पर शिकंजा कसने के लिए किया है, कल के रोज उस सॉफ्टवेयर का निशाना भारतीय सुरक्षा से जुड़ी संवेदनशील सूचनाओं को समंदर पार भारत के शत्रु देशों तक पहुंचाने में नहीं होगा। एक प्रधानमंत्री, रक्षामंत्री, सेनाप्रमुख और परमाणु कार्यक्रमों से जुड़े विशेषज्ञों की जानकारियां भी सुरक्षित नहीं रहेंगीं। यदि ऐसा हुआ तो सभ्य लोकतंत्र में निर्वाचित हुकूमत के लिए इससे बड़ी नाकामी और कुछ नहीं हो सकती। व्यक्ति के तौर पर एक संपादक अपने मौलिक अधिकारों का कुचला जाना एक बार बर्दाश्त कर सकता है, लेकिन जिस दिन देश कुचला जाएगा, उस दिन कोई हुकूमत भी नहीं बचेगी। कहने में हिचक नहीं कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर इन दिनों जो साजिशें चल रही हैं, उनका मुकाबला करने के लिए भारत की तैयारी अभी अत्यंत कच्ची और कमजोर है।

यक्ष प्रश्न है कि क्या दुनिया भर की सरकारों की तरह भारत सरकार के इशारे पर यह खुफियागीरी कराई गई है? भारतीय लोकतंत्र में यह कोई नई और अनूठी बात नहीं है। अतीत में इसकी कुछ मिसालें हैं। एक प्रधानमंत्री तो इस मुद्दे पर अपनी सरकार ही खो चुके हैं। इस तरह की जासूसी को भारतीय समाज ने कभी भी मान्यता नहीं दी है। जिस सरकार या व्यक्ति ने ऐसा किया, उसे इस हरकत से क्षति पहुंची है। लाभ कुछ नहीं हुआ। भारतीय संविधान इसकी अनुमति नहीं देता कि चुनी हुई सरकार लोगों की जीवन शैली, आस्था, लोक व्यवहार, गुप्त क्रियाओं, धार्मिक स्वतंत्रता और सामाजिक उत्सवों की खुफिया निगरानी करे। यह निहायत जंगली, अभद्र, अशालीन और अमर्यादित आचरण है। भारतीय समाज इसे जायज नहीं मानेगा।

दुनिया के तमाम देश इस पर क्या करते हैं, चर्चा बेमानी है। वैसे भारतीय कानून इस बात की इजाजत तो देता है कि वह किसी की जासूसी अथवा फोन की रिकॉर्डिंग कर सकता है। यदि कोई व्यक्ति या संस्था ऐसे अपराधों में लिप्त है, जो भारतीय अखंडता-एकता को नुकसान पहुंचा सकता है तो उसे उजागर करने से कौन रोकना चाहेगा। यदि कोई आतंकवादी षड्यंत्र का भंडाफोड़ होता है तो उस पर किसे एतराज़ हो सकता है।

भारत के वित्तीय, सामाजिक और राजनीतिक ढांचे को कोई ताकत क्षतिग्रस्त करना चाहे तो उसके खिलाफ सारा देश अपनी सरकार का साथ देगा। लेकिन संदेह की सुई उस तंत्र की ओर इशारा कर रही हो, जो हमारे हित संरक्षण के लिए बनाया गया है तो फिर अंजाम की कल्पना की जा सकती है। इसके बावजूद भारत में जासूसी षड्यंत्र के पीछे के इरादों की जानकारी अवाम को पाने का अधिकार है। मुल्क इस पर केंद्र सरकार से स्पष्टीकरण की मांग करता है। ऐसा नहीं करने पर उसे लोगों की जलती निगाहों का सामना करना पड़ेगा।

राजेश बादल
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं ये उनके निजी विचार हैं)

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here