बजट पर बही खाते का टोटका!

0
440

सरकार ने इस बार बजट को टोटके के साथ रखा। आमतौर पर बजट की बातें, रूटिन में एक जैसी होती हैं। पर ऊपर से कुछ कुछ बदलाव होने से लोगों को लगता है जैसे सरकार ने कुछ नया किया है। जैसे नरेंद्र मोदी की सरकार के आने के बाद 90 साल पुरानी रेल बजट पेश करने की परंपरा खत्म हुई। पहले रेल बजट अलग से पेश होता था अब वह दो मिनट में निपट जाता है। ऐसे ही बजट पेश करने की 28 फरवरी की तारीख को भी सरकार ने बदल दिया है। इस बार चमड़े के ब्रीफकेस में बजट पेपर लाने की परंपरा को बदल कर उसकी जगह लाल कपड़े की एक थैली में बजट पेपर लाने का चलन शुरू हुआ है। और इसे वित्त मंत्री और मुख्य आर्थिक सलाहकार ने देश का बही खाता बतला दिया।

सरकार ने कहा की ब्रीफकेस में बजट पेपर लाना अंग्रेजों की परंपरा थी। यानी गुलामी का प्रतीक थी। उससे इस बार सरकार ने देश को मुक्ति दिला दी। सो कह सकते है कि अंग्रेजों से आजादी की लड़ाई में शामिल नहीं होने के आरोपों का भाजपा ने ऐसे जवाब दिया है! हालांकि बजट पढ़ा गया अंग्रेजी में ही और वह भी अंग्रेज ही लेकर आए थे, वह कोई प्राचीन भारतीय भाषा नहीं है। दूसरे, बही खाता तो भारत की सामंती व्यवस्था का हिस्सा है। पुराने जमाने में सेठ साहूकारों के यहां लाल रंग का बही खाता होता था, जिसमें लेन-देन का हिसाब किताब लिखा होता था।

पिछले 70 साल से हिंदी फिल्मों के हीरो बही खाते जला कर ही आवाम को सामंतों, सेठ साहूकारों के चंगुल से मुक्त कराते रहे हैं। परिवार की इज्जत और महिलाओं का सम्मान बचाते रहे हैं। आजादी के एक दशक बाद बनी फिल्म ‘मदर इंडिया’ से लेकर जेपी दत्ता की फिल्म ‘गुलामी’ तक सुनील दत्त से लेकर धर्मेंद्र तक ऐसे ही लाल बही खाते जलाते रहे हैं। दुआ करनी चाहिए कि यह बही खाता आवाम के लिए वैसा ही दस्तावेज न साबित हो, जैसा ‘मदर इंडिया’ फिल्म में सुखिया लाला का बही खाता था!

राजनीति के क्षेत्र में बही खाते को लेकर एक जुमला बहुत मशहूर रहा है, जो लंबे समय तक कांग्रेस के कोषाध्यक्ष रहे सीताराम केसरी के लिए कहा जाता था। खाता न बही, जो केसरी कहें वहीं सही। उम्मीद करनी चाहिए कि इस खाता बही के साथ वैसा नहीं होगा। वैसे मशहूर व्यंग्यकार हरिशंकर परसाई ने लाल रंग के खाता बही के बारे में एक दिलचस्प व्यंग्य लिखा था। ‘रामकथा क्षेपक’ में हनुमान को पहला साम्यवादी बताते हुए उन्होंने लिखा कि जब लंका से रावण को मार कर भगवान राम अयोध्या लौटे और राजकाज संभाला तो उन्होंने हनुमान को अयोध्या के सारे कारोबारियों का खाता बही चेक करने का काम सौंपा। इससे कारोबारियों में हड़कंप मच गया। सो, उन्होंने बचाव का उपाय सोचना शुरू किया। और सबने मिल कर फैसला किया कि बही खाते को लाल रंग के कपड़े में बांध दिया जाए। चूंकि लाल रंग हनुमान को बहुत पसंद था। सो, वे जहां गए वहां लाल रंग में बंधा बही खाता देख कर खुश हो गए। उनको लगा कि यह तो उनका भक्त है और इसलिए बेईमान नहीं हो सकता है। और उन्होंने सबको क्लीन चिट दे दी। ऐसा हरिशंकर परसाई ने लिखा कि तभी से कारोबारियों ने दिवाली के समय अपना बही खाता लाल रंग के कपड़े में बांधने का चलन शुरू किया।

अब सरकार ने भी लाल कपड़े में अपना बही खाता बांध दिया है तो हो सकता है हनुमान जी की कृपा आने लगे। वैसे भी अब जय श्रीराम के साथ साथ भाजपा के नेता जय हनुमान के नारे लोगों से लगवा रहे हैं और पश्चिम बंगाल में तो मंगलवार को हनुमान चालीसा का सार्वजनिक पाठ भी होने लगा है।

बहरहाल, पता नहीं प्रधानमंत्री और वित्त मंत्री ने परसाई का वह व्यंग्य पढ़ा है या नहीं। पर बजट को बही खाता कहना और उसे लाल कपड़े में बांधने का आइडिया कोई बहुत अच्छा नहीं है। यह ध्यान रखना चाहिए कि बही खाता निजी उद्यमों का होता है, सरकार का लेखा-जोखा होना चाहिए, जो सार्वजनिक हो और पारदर्शी हो। वैसे कुछ लोग यह भी कह रहे हैं कि चूंकि निर्मला सीतारमण जेएनयू से पढ़ी हैं, जो लाल राजनीति का गढ़ था तभी उन्होंने बजट दस्तावेज को लाल रंग के कपड़े में लपेट दिया।

अजित द्विवेदी
लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, ये उनके निजी विचार हैं...

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here