तो कोरोना से मुक्त हो जाएगा भारत !

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क्या केंद्र और राज्यों की सरकारें कोरोना वायरस से मुत होने के ऐलान की तैयारी कर रही हैं? पिछले दिनों तेलंगाना के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव ने कहा था कि नौ दिन तक कोरोना वायरस के संक्रमण का मामला नहीं आएगा तो प्रदेश को संक्रमण से मुक्त राज्य घोषित कर दिया जाएगा। हालांकि इसके तुरंत बाद प्रदेश में पांच लोगों की मौत हो गई, जिनके बारे में पता चला कि वे तब्लीगी जमात के दिल्ली में हुए मरकज में शामिल हुए थे। इसके बाद राज्य में और नए संक्रमितों का पता चला, जिसके बाद सरकार ने राज्य को कोरोना वायरस के संक्रमण से मुक्त घोषित करने का इरादा छोड़ दिया। ऐसा लग रहा है कि इसी तरह का इरादा भारत सरकार ने भी बनाया हुआ है या कम से कम उस पर विचार हो रहा है। तभी लॉकडाउन के तुरंत बाद कहा गया कि पांच दिन में इसके असर का पता चल जाएगा। स्वास्थ्य मंत्रालय के अधिकारी और इंडियन कौंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च, आईसीएमआर के डॉक्टर भी पूरे भरोसे में थे कि लॉकडाउन बहुत सही समय पर हुआ है और इससे वायरस के संक्रमण की शृंखला टूट जाएगी और भारत कोरोना के खिलाफ जंग जीत जाएगा। इस आकलन के आधार पर ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 21 दिन में जंग जीत लेने का दावा किया था।

पर तब्लीगी जमात और प्रवासी मजदूरों ने सरकार की योजना पर पानी फेर दिया। लाखों की संख्या में प्रवासी मजदूरों के पलायन करने से वायरस का संक्रमण तेजी से फैलने का खतरा पैदा हो गया और इसी बीच तब्लीगी जमात की एक मरकज का मामला सामने आ गया, जिसमें कई हजार लोग शामिल हुए थे। इनमें भी सैकड़ों लोगों के संक्रमित होने की खबर है। अधिकारियों ने सीधे आम लोगों को जिमेदार ठहराते हुए कहा कि लोग सहयोग नहीं कर रहे हैं, जिसकी वजह से संक्रमण बढ़ रहा है। इस बयान का मतलब था कि सरकार ने अपना काम बेहतर ढंग से कर दिया है इसके बावजूद अगर संक्रमण नहीं रूक रहा है तो इसके लिए आम लोग जिमेदार हैं। तीन दिन पहले की साझा पत्रकार वार्ता में आईसीएमआर के प्रतिनिधि डॉक्टर ने कहा कि अभी जो आंकड़े आ रहे हैं वह लॉकडाउन से पहले के हैं। उन्होंने बताया कि इस वायरस काल लक्षण सामने आने में 14 दिन का समय लग जाता है। इसलिए लॉकडाउन का दूसरा हफ्ता बीतने पर जो ट्रेंड दिखेगा, वह असली होगा और उससे लॉकडाउन के असर का अंदाजा लगेगा। उस वत सभी लोगों की बातों से यह भरोसा झलक रहा था कि लॉकडाउन का दूसरा हता बीतते-बीतते संक्रमण रूक जाएगा या कम हो जाएगा।

पता नहीं यह असल में होगा या नहीं पर इस बात की पूरी संभावना है कि संक्रमण थम जाने या कम हो जाने का दावा किया जाए। यह दावा संख्या के आधार पर होगा। अधिकारियों को भरोसा है कि संख्या नहीं बढ़ेगी क्योंकि जांच की संख्या नहीं बढ़ानी है। सरकार ने इंस्टेंट टेस्टिंग यानी तत्काल जांच के नतीजे देने वाले किट के इस्तेमाल से साफ शब्दों में इनकार कर दिया है। सरकार ने कहा है कि वह पारंपरिक तरीके यानी रिवर्स ट्रांसक्रिप्शन पॉलिमर्स चेन रिएशन, आरटी-पीसीआर मेथड का ही इस्तेमाल करके जांच करेगी। दूसरी ओर सरकार ने कई जगह निजी अस्पतालों को जांच के लिए सैंपल लेने से रोक दिया है। इससे जाहिर होता है कि सरकार जांच और इलाज का काम पूरी तरह से अपने हाथ में रखना चाहती है और पारंपरिक तरीके से ही जांच करना चाहती है। इसका या मकसद हो सकता है? या इसका मकसद संख्या को नियंत्रित करने का है? कायदे से भारत को ज्यादा से ज्यादा जांच करके हकीकत सामने लाने का प्रयास करना चाहिए। जब सारे डॉक्टर, अधिकारी और वैज्ञानिक इस भरोसे में हैं कि भारत में यह वायरस कमजोर है और लोगों की रोग प्रतिरोधक क्षमता के आगे नहीं टिक रहा है तो जांच करने में संकोच नहीं होना चाहिए।

यह हकीकत बताई जा रही है कि 98 फीसदी लोगों में इसका संक्रमण बहुत मामूली है और सिर्फ दो फीसदी लोगों को विशेष इलाज की जरूरत है तो फिर संख्या बढऩे की चिंता करने का कोई कारण नहीं है, बल्कि यह अच्छा होगा कि ज्यादा से ज्यादा जांच हो और मामले सामने आएं ताकि उन्हें पहचान करके अलग-थलग किया जाए और इसे फैलने से रोका जाए।अगर संक्रमण के मामले ज्यादा बढ़े तो राज्य सरकारों की स्वास्थ्य सेवाओं की पोल खुलने का अलग डर है। अगर खुदा न खास्ते सरकार ने अपने आंकड़ों के भरोसे और लॉकडाउन से होने वाले आर्थिक नुकसान की चिंता में लॉकडाउन खत्म किया या कोरोना से जंग जीतने का ऐलान किया और जांच रोकी या कम की तो इससे देश के लाखों- करोड़ों लोगों का जीवन खतरे में पड़ेगा। लोगों की मौत होती रहेगी और फर्क यह होगा कि उसे कोविड-19 की मौत में नहीं गिना जाएगा। ध्यान रहे अमेरिका की 33 करोड़ आबादी में से आठ फीसदी यानी करीब ढाई करोड़ लोग हर साल फ्लू या निमोनिया के शिकार होते हैं, जिनमें से औसतन हर साल 60 हजार लोगों की मौत हो जाती है। यानी वायरस एन कोरोना न होकर सिर्फ सामान्य कोरोना हो तब भी अमेरिका में हर साल उससे 60 हजार लोग मरते हैं। ऐसे ही सामान्य फ्लू या निमोनिया से भारत में हर साल मरने वालों की संख्या लाखों में होती है। ।

अजीत दि्वेदी
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं ये उनके निजी विचार हैं)

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