भारत-चीन द्विपक्षीय कारोबार की रफ्तार इस समय धीमी हो गई है। हाल में चीन के सीमा शुल्क सामान्य विभाग (जीएसीसी) द्वारा दी गई जानकारी में कहा गया है कि वर्ष 2001 में दोनों देशों के बीच कारोबार तीन अरब डॉलर का था जो साल-दर-साल बढ़ते हुए 2018 तक 95.7 अरब डॉलर का हो गया। लेकिन इसके बाद 2019 में यह घटकर 92.68 अरब डॉलर मूल्य पर आ गया। वर्ष 2018 में चीन ने भारत को 76.87 अरब डॉलर मूल्य का निर्यात किया था, पर 2019 में वह भी थोड़ा घटकर 74.72 अरब डॉलर मूल्य पर आ गया। दूसरी तरफ भारत ने 2018 में चीन को 18.83 अरब डॉलर मूल्य का निर्यात किए, जो वर्ष 2019 में घटकर 17.95 अरब डॉलर रह गया। कम होता व्यापार घाटा दोनों देशों के बीच व्यापार में गिरावट के साथ-साथ वर्ष 2019 में चीन के साथ भारत का व्यापार घाटा (चीन को निर्यात की तुलना में वहां से आयात का आधिक्य) 56.77 अरब डॉलर रहा। इसके पहले वाले साल 2018 में व्यापार घाटा 58.04 अरब डॉलर था। स्पष्ट है कि चीन के साथ व्यापार घाटे में भी कमी आई है। फिर भी स्थिति आज यही है कि हम चीन को एक रुपए मूल्य का निर्यात कर रहे हैं तो वहां से करीब साढ़े चार रुपए मूल्य का आयात करते हैं। हमारे कुल विदेश व्यापार घाटे का करीब एक तिहाई चीन से ही संबंधित है। हमारे देश में सबसे अधिक आयात चीन से होता है। स्थिति यह है कि शादी समारोह से लेकर जन्मदिन, होली, दीवाली, रक्षाबंधन सहित तमाम त्योहारों के सामान सहित कोई एक हजार से अधिक वस्तुओं का आयात चीन से बड़े पैमाने पर किया जाता है।
ये ‘मेड इन चाइना’ सामान सस्ते दामों पर देश के कोने-कोने में सरलता से उपलब्ध हैं। चीन से आयात और व्यापार घाटा कम होने का जो परिदृश्य इधर उभरा है, उसके आगे भी बने रहने की संभावना कुछ स्पष्ट कारणों से दिखाई दे रही है। इन दिनों चीन द्वारा भारत के साथ पूर्वी लद्दाख सीमा पर जिस तरह सैन्य तनाव निर्मित किया गया है, उससे पूरे भारत में चीन विरोधी माहौल है। ऐसे में देश भर में वॉट्सऐप पर सक्रिय अधिकांश समूह चीनी वस्तुओं के बहिष्कार का अभियान चला रहे हैं। यद्यपि भारत विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) के प्रावधानों के तहत चीन के आयात पर प्रत्यक्ष प्रतिबंध नहीं लगा सकता, लेकिन भारत सरकार चीनी सामानों पर एंटी डंपिंग ड्यूटी जरूर लगा सकती है । यह एक प्रकार का शुल्क है जिससे चीनी वस्तुओं की कीमतें बढ़ जाएंगी और भारतीय उत्पादक उनका मुकाबला कर सकेंगे। भारत ने चीन से दूध और दुग्ध उत्पादों के आयात पर प्रतिबंध लगा रखा है, क्योंकि उनकी गुणवत्ता अस्वीकार्य थी। इसी तरह कुछ मोबाइल फोन जिन पर अंतराष्ट्रीय मोबाइल स्टेशन उपकरण पहचान संख्या या अन्य सुरक्षा सुविधाएं नहीं थीं, उन्हें भी प्रतिबंधित किया हुआ है। इसके साथ ही चीन से कुछ इस्पात उत्पादों के आयात पर भी प्रतिबंध लगा हुआ है। इसे भी पढ़ें, टेलीमेडिसिन से होगा कम खर्च में कारगर इलाज निश्चित रूप से भारत के ऐसे कई चमकीले आर्थिक पक्ष हैं, जिनके आधार पर वह चीन पर आर्थिक दबाव डाल सकता है। इस समय भारत दुनिया का चौथा सबसे बड़ा उपभोक्ता बाजार है।
भारतीय बाजार दुनिया में सबसे तेज गति से आगे बढ रहे हैं। ऐसे में चीन के लिए इस बाजार को नजरअंदाज करना नामुमकिन है। इतना ही नहीं, दवाओं का कच्चा माल उपलब्ध कराने वाली चीनी कंपनियां भारत की फार्मास्युटिकल कंपनियों के बिना नहीं चल पाएंगी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 31 मई को ‘मन की बात’ के 65वें प्रसारण में कहा कि इस दशक में आत्मनिर्भर भारत का लक्ष्य देश को नई ऊंचाइयों पर ले जाएगा। उन्होंने संकेत दिया कि देश में ही निर्मित हो रही वस्तुओं को अन्य देशों से आयात न करने पर विचार किया जाएगा। मई 2020 में घोषित किए गए नए आर्थिक पैकेज में छोटे उद्योग-कारोबार के लोकल के लिए वोकल होने की जो संकल्पना की गई है, उससे स्थानीय और स्वदेशी उद्योगों को भारी प्रोत्साहन मिलेगा। कोरोना के संकट में जब दुनिया की बड़ी-बड़ी अर्थव्यवस्थाएं ढह गई हैं, तब लोकल यानी स्थानीय आपूर्ति व्यवस्था, स्थानीय विनिर्माण, स्थानीय बाजार देश के बहुत काम आए हैं। ऐसे में भारत आत्मनिर्भरता की डगर पर आगे बढ़कर और गैरजरूरी आयातों को नियंत्रित करके चीन पर आर्थिक दबाव बना सकता है।
जब हम देश को आत्मनिर्भर बनाने के मामले में विभिन्न चुनौतियों को देखते हैं तो पाते हैं कि कई वस्तुओं का उत्पादन बहुत कुछ आयातित कच्चे माल और आयातित वस्तुओं पर आधारित है। खासकर दवा उद्योग, मोबाइल उद्योग, चिकित्सा उपकरण उद्योग, वाहन उद्योग तथा इलेक्ट्रिकल्स जैसे कई उद्योग बहुत कुछ आयातित माल पर ही आधारित हैं। मैन्युफैक्चरिंग इकाइयों के लिए बड़ी मात्रा में कच्चा माल भी चीन से आयात किया जाता है। विकल्प की तलाश अभी चीन के सामानों पर भारत की जैसी निर्भरता है, उसे ध्यान में रखते हुए चीनी सामानों का अचानक कोई विकल्प तैयार नहीं हो सकता। लेकिन आयात की जा रही वस्तुओं की जगह लेने के लिए यदि हम शीघ्रतापूर्वक स्थानीय उत्पाद तैयार करें और 50 फीसदी जरूरत भी पूरी कर लें तो यह देश की उपलब्धि होगी। इसके साथ-साथ यह रणनीति भी होनी चाहिए कि अधिक जरूरी आयात के लिए चीन की जगह वैकल्पिक देश का चयन करें। ऐसे में सिंगापुर, बांग्लादेश और वियतनाम जैसे देशों से आयात बढ़ाकर चीन पर निर्भरता घटाई जा सकती है। उम्मीद करें कि अब सरकार द्वारा चीन से कम जरूरी आयातों को नियंत्रित किया जाएगा
जयंतीलाल भंडारी
(लेखक स्तंभकार हैं, ये उनके निजी विचार हैं।)