किसानों के लिए पहली ही कैबिनटे बैठक में मोदी सरकार ने खास ऐलान किया था। लेकिन क्या खेती-किसानी के लिए वो काफी हैं। बीजेपी ने इस बार 303 सीटें पाई। 2014 में कुल 282 सीटों पर जीत हासिल की थी। उन 282 सीटों में से 206 सीटों पर कृषि संकट मौजूद है। इस बार के नतीजों से स्पष्ट है कि पार्टी ने इसमें से अधिकतर सीटों पर फिर जीत हासिल की है। लोक सभा चुनाव के दौरान विपक्षी पार्टियों खासकर कांग्रेस ने सत्तारूढ़ बीजेपी के खिलाफ किसानों का मुद्दा जमकर उठाया। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने किसान आय, कर्ज, उपज का उचित मूल्य, न्यूनतम समर्थन मूल्य ना दे पाने की सरकार की नाकामियों और पानी की कमी जैसे मुद्दों पर जोर दिया।
इससे पहले गहराते कृषि संकट के कारण नवबंर 2018 में 200 किसान संगठनों से जुड़े लाखों किसान मार्च करते हुए दिल्ली पहुंचे थे। उन्होंने कृषि मुद्दों पर चर्चा और कर्ज माफी के मांग करते हुए संसद के विशेष सत्र की मांग की थी। दरअसल दो साल से किसान आंदोलन खूब चर्चित रहा। वजह कृषि क्षेत्र का संकट है। 2016-17 में सकल घरेलू उत्पाद में कृषि क्षेत्र की हिस्सेदारी 5 आधार अंक गिरकर 12.2 फीसदी पर पहुंच गई। लेकिन सिकुड़ते कृषि क्षेत्र में देश की 50 फीसदी आबादी अब भी कार्यरत है। 12 मार्च 2019 तक पश्चिमी उत्तर प्रदेश में गन्ना किसानों का 11, 845 करोड़ का बकाया नहीं दिया गया था। सहारनपुर, मुजफ्फरनगर, गाजियाबाद, मेरठ, बागपत, शामली और बुलंदशहर के 50 फीसदी से ज्यादा किसानों का 6,168 करोड़ का बकाया नहीं दिया गया था।
2014 में सहारनपुर और मेरठ को छोडक़र सभी संसदीय क्षेत्रों में बीजेपी को जीत मिली थी। इस वक्त देश का 42 फीसदी से ज्यादा मैदानी इलाका सूखाग्रस्त है। दक्षिणी उत्तर प्रदेश के सबसे अधिक सूखा प्रभावित बुंदेलखंड में पार्टी ने इस बार भी जीत दर्ज की है। मध्य प्रदेश में 29 संसदीय क्षेत्र कृषि संकट का सामना कर रहे हैं। लेकिन बीजेपी ने एक बार फिर इनमें से अधिक तर जगहों पर जीत दर्ज की है। पिछले दिसंबर में हुए विधानसभा चुनावों में बीजेपी को हार का मुंह देखना पड़ा था। किसानों के विद्रोह के कारण बीते 15 सालों से सत्तारूढ़ बीजेपी को मध्य प्रदेश की गद्दी छोडऩी पड़ी थी। लेकिन अब कहानी बदल गई है। ऐसा लगता है कि नरेंद्र मोदी के मोह में किसानों ने अपने संकट की उपेक्षा कर दी है। तो लाख टके का सवाल यही है कि क्या मोदी भी किसानों के सारे संकट दूर करेंगे?