नाग पंचमी : 13 अगस्त, शुक्रवार को

0
413

श्रावण मास का विशेष पर्व है नागपंचमी, जो कि श्रावण शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को विधि-विधानपूर्वक मनाने की धार्मिक व पौराणिक परम्परा है। इस दिन भगवान शिव के दरबार की पूजा-आराधना के साथ ही नागदेवता की भी पूजा-अर्चना श्रद्धा, आस्था और भक्तिभाव के साथ करने की धार्मिक मान्यता है। पंचमी तिथि के स्वामी नागदेवता माने गए हैं, फलस्वरूप इस तिथि के दिन नागदेवता के पूजन की परम्परा चली आ रही है।
ज्योतिषविद् श्री विमल जैन जी ने बताया कि इस वर्ष नागपंचमी का पावन पर्व शुक्रवार, 13 अगस्त को मनाया जायेगा। श्रावण शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि गुरुवार, 12 अगस्त को दिन में 3 बजकर 25 पर लगेगी जो कि शुक्रवार, 13 अगस्त को दिन में 01 बजकर 43 मिनट तक रहेगी। गरुडपुराण के अनुसार अपने धार्मिक परम्परा के मुताबिक नागपंचमी पर घर परिवार में लोग नाग देवता की पूजा के लिए प्रवेश द्वार के दोनों ओर नाग देवता का चित्र चिपका कर या लाल चन्दन, काले रंग अथवा गोबर से नाग देवता बनाकर विधिविधानपूर्वक दूध, लावा अर्पित करके धूप-दीप से पूजन करते हैं, जिससे परिवार में सर्पदंश का भय नहीं रहता।

नागलोक की देवी माँ मनसा देवी हैं। आज के दिन इनकी भी पूजा विशेष फलदायी मानी गई है। नि:सन्तान को सन्तान की प्राप्ति बतलाई गई है, इससे वंशवृद्धि भी होती है। नागपंचमी के दिन नाग देवता की पूजा करने पर खुशहाली व सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है। रुद्र व नागलोक के नाम पर कालसर्पयोग के 12 नाम बतलाए गए हैं-1. अनन्त, 2. पुलित, 3. वासुकि, 4. शंखपाल, 5. पद्म, 6. महापद्म, 7. तक्षक, 8. कर्कोटक, 9. शंखचूड़, 10. घातक, 11. विषधर और 12. शेषनाग। इन द्वादश योग में कर्कोटक, शंखचूड, घातक व विषधर योग विशेष प्रभावी माने जाते हैं। ज्योतिष के अनुसार कुण्डली में उपस्थित कालसर्पयोग जनमानस के पटल पर छाया हुआ है। कालसर्प दोष का निवारण नाग पंचमी के दिन विशेष फलदायी माना गया है। कालसर्प दोष का नाम सुनते ही व्यक्ति मानसिक तौर पर भयभीत हो जाता है।

कालसर्पयोग पर प्रकाश डालते हुए प्रख्यात् ज्योतिषविद् श्री विमल जैन ने बताया कि जन्मकुण्डली में सात ग्रह-सूर्य, चन्द्रमा, मंगल, बुध, वृहस्पति, शुक्र व शनिग्रह जब राहु-केतु के मध्य स्थित हो जाते हैं, तो जन्मकुण्डली में पूर्ण कालसर्पयोग बनता है, जबकि ग्रहों के अंश के अनुसार यदि कोई एक ग्रह राहु-केतु की परिधि से बाहर हो तो आंशिक कालसर्पयोग बनता है। राहु का नक्षत्र भरणी है, इसका देवता काल माना गया है। जबकि केतु का नक्षत्र आश्लेषा है, इसका देवता सर्प माना गया है। ज्योतिर्विद श्री विमल जैन जी ने बताया कि श्रावण मास में नाग पंचमी के दिन कालसर्पयोग का निवारण विधि-विधानपूर्वक करके इसके प्रभाव को कम किया जा सकता है। कालसर्पयोग जहाँ विभिन्न प्रकार के लाभ का अवसर प्रदान करता है, वहीं पर ग्रहदशा के अनुसार नाना प्रकार की परेशानियों से गुजरना पड़ता है जबकि शुभ ग्रहों की महादशा में व्यक्ति बुलंदियों तक पहुँचता है। अशुभ ग्रहों की महादशा में अथक प्रयास के बावजूद उसके सपने चकनाचूर हो जाते हैं। जन्मकुण्डली के अनुसार कालसर्पयोग स्पष्ट होने पर उसकी शान्ति तत्काल योग्य विद्वान् से करवानी चाहिए। जिस जातक की कुण्डली में कालसर्पयोग हो, उन्हें किसी भी दशा में नाग को मारना या प्रताड़ित नहीं करना चाहिए।

प्रख्यात् ज्योतिषविद् श्री विमल जैन के मुताबिक कालसर्पयोग का निवारण भगवान शिव के प्रतिष्ठित मन्दिर में विधि-विधान के अनुसार योग्य विद्वान् से करवाना विशेष लाभदायी रहता है। कालसर्पयोग के निवारण का सामान्य उपाय है, चाँदी या तांबे के बने नागनागिन के जोड़े को शिवलिंग पर चढ़ाकर पूजा करने के उपरान्त नाग-नागिन के जोड़े को बहते हुए शुद्ध जल, नदी अथवा गंगाजी में प्रवाहित कर देना चाहिए। नित्य प्रतिदिन श्री नाग स्तोत्र का पाठ करना चाहिए। नाग पंचमी के दिन व्रत रखना चाहिए। इस दिन गरीबों व असहायों को यथाशक्ति भोजन अन्न द्रव्य आदि देना चाहिए, साथ ही काले कुत्ते को आटा व गुड़ मिश्रित रोटी खिलानी चाहिए। स्वर्ण, रजत या पंचधातु से निर्मित सर्पाकार अंगूठी दाहिने हाथ की मध्यमा अंगुली में धारण कर माता-पिता, गुरु एवं श्रेष्ठजनों का आशीर्वाद लेना चाहिए। नागपंचमी के दिन सपेरों से नाग-नागिन के जोड़े को खरीदकर उन्हें आजाद करवाना चाहिए। काशी में जैतपुरा स्थित नागेश्वर महादेव का मन्दिर स्थापित है।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here