इस मुल्क को भारत ने भी नहीं दी मान्यता

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जब वक्त का पहिया घूमता है तो अपने साथ सारे जमाने को बदलता है। फिर भी, कुछ लोग और कुछ जगहें ऐसी होती हैं, जो गुजरे हुए समय की कैद से आज़ाद नहीं हो पाती हैं। आज हम आप को ऐसे ही इलाके की सैर पर ले चलते हैं। इस जगह का नाम है अबखाजिया। आपने शायद ही इसका नाम सुना हो। और, जिन्होंने सुना होगा, वो यहां गए नहीं होंगे। ये इलाका पूर्वी यूरोप में काला सागर और काके शस पर्वतों के बीच स्थित है। अबखाजिया ने 1990 के दशक में ख़ुद को आज़ाद मुल्क घोषित कर दिया था। लेकिन, इसे गिने-चुने देशों ने ही मान्यता दी है। भारत ने भी नहीं दी। तो, ये ऐसा देश है, जिसे दुनिया जानती-मानती नहीं। 1980 के दशक के आखिर में जब सोवियत संघ बिखरना शुरू हुआ, तो अबख़ाजिय़ा भी जॉर्जिया से आजाद होने के लिए अंगड़ाई लेने लगा। जॉर्जिया, सोवियत संघ से स्वतंत्र होना चाहता था और अबखाजिया उसकी पाबंदी से।1930 के दशक से अबखाजिया, सोवियत संघ के गणराज्य जॉर्जिया का हिस्सा था।

लेकिन इसे काफी खुदमुख्तारी (ऑटोनोमी) हासिल थी। लेकिन 1931 से पहले अबखाजिया एक स्वतंत्र इलाका हुआ करता था। जब 1991 में जॉर्जिया ने सोवियत संघ से आजादी का ऐलान किया, तो, अबखाजिया के बाशिंदों को लगा कि उनकी स्वायत्तता तो खत्म हो जाएगी। तनाव बढ़ा और 1992 में गृहयुद्ध छिड़ गया। शुरूआत में तो जॉर्जिया की सेना को बढ़त हासिल हुई और उसने अबखाजिया के बागियों को राजधानी सुखुमी से बाहर ख़देड़ दिया। लेकिन, विद्रोहियों ने फिर से ताकत जुटाकर जॉर्जिया की सेना पर तगड़ा पलटवार किया। इस लड़ाई में दसियों हज़ार लोग मारे गए। जिसके बाद जॉर्जियाई मूल के 2 लाख से ज़्यादा लोगों को अबख़ाजिय़ा छोडक़र भागना पड़ा। इस काम में रूस की सेना ने भी अबखाजिया के बागियों की मदद की थी। सोवियत संघ के जमाने में अबखाजिया सैलानियों के बीच बहुत मशहूर था। हल्का गर्म और हल्का सर्द मौसम, सैर-सपाटे के बहुत मुफीन माना जाता था।

लेकिन 1990 के दशक में जब से गृह युद्ध छिड़ा, ये देश सैलानियों से वीरान हो गया। जॉर्जिया की सेनाएं यहां से पीछे हट गई। आज यहां के होटल और रेस्टोरेंट वीरान पड़े हैं। मशहूर फ़ोटोग्राफ़र स्टेफ़ानो माज्नो ने वक्त के दायरे में क़ैद इस देश का कई बार दौरा किया और वहां की तस्वीरें खींचीं। स्टेफ़ानो कहते हैं, ये मुश्किल काम नहीं था। हालांकि अभी भी अबख़ाजिय़ा की सीमाओं पर रूस की सेना का क़ब्ज़ा है। तो ये नाम का स्वतंत्र देश है। हक़ीक़त में तो अबखाजिया, रूस की कठपुतली है। 2008 में जॉर्जिया से छोटी सी जंग के बाद से रूस की सेनाओं ने अबखाजिया को जॉर्जिया पर हमले के लिए इस्तेमाल करती हैं। अबखाजिया और रूस के रिश्ते बेहद क़रीबी हैं। वो रूस से मिलने वाली मदद पर ही निर्भर है। स्टेफ़ानो कहते हैं कि रूस का क़ब्ज़ा केवलअबखाजिया की सीमाओं पर नहीं है। रूस ने तो अबखाजियाकी सामाजिक -राजनीतिक व्यवस्था पर भी क़ब्ज़ा कर रखा है। यहां के रियल स्टेट सेक्टर पर भी रूस का कंट्रोल होता जा रहा है।

इसके अबखाजिया को ये फायदा है कि इसे रूस की मदद मिलती रहेगी। अबखाजिया का बुनियादी ढांचा रख-रखाव की कमी के चलते बिखर रहा है। इसे केवल पांच-देशों, रूस, निकारागुआ, सीरिया, नाउरू और वेनेजुएला से मान्यता मिली है। स्टेफ़ानो बताते हैं कि यहां टैक्सी किराए पर लेना बहुत बड़ी चुनौती है। सफ़र के लिए आप को सरकारी बसों के भरोसे ही रहना होगा। इन्हीं से एहसास होगा कि आप टाइम मशीन पर सवार होकर समय में पीछे चले गए हैं। मज़े की बात ये है कि यहां के बस अड्डे भी सोवियत संघ के ज़माने के हैं। 1990 के दशक से चली आ रही लड़ाई की वजह से यहां मलबों के ढेर लगे हैं। अबख़ाजिय़ा की करेंसी रूस की रूबल है। देश की ज्यादातर संपत्तियों पर रूस का ही क़ब्ज़ा है। अबख़ाजिय़ा के पास अपनी संसद भी नहीं है।

राजधानी सुखुमी में यहां की संसद की पुरानी इमारत वीरान पड़ी है। पास स्थित शहर का प्रमुख रेलवे स्टेशन भी वीरान है। स्टेफ़ानो कहते हैं कि सरक री इमारतों की तस्वीरें लेना यहां मुश्किल काम है। लेकिन, लोगों की तस्वीरें लेने में कोई दिक्कत नहीं। हाल ये है कि यहां उन तस्वीरों को डेवेलप करने की तकनीक भी उपलब्ध नहीं है। एक वक्त ऐसा भी था कि हर साल क़रीब दो लाख लोग अबख़ाजिय़ा की सैर के लिए आते थे। ये सैलानी दुनिया भर से आते थे। लेकिन अब यहां सिर्फ रूस के लोग घूमने-फिरने आते हैं। पड़ोसी देश जॉर्जिया में तो बाक़ायदा क़ानून है जिसके तहत अबख़ाजिय़ा जाने की मनाही है। इस देश की आबादी का एक चौथाई हिस्सा जॉर्जियाई मूल के लोग हुआ करते थे. उनके भागने के बाद से अबख़ाजिय़ा वीरान सा लगता है।

स्टीफन डाउलिंग
लेखक बीबीसी के वरिष्ठ पत्रकार हैं

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