कर्म के आधार पर मिलेगा फल

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ईश्वर हमेशा सही न्याय करते हैं। और उनके न्याय करने का सीधा संबंध हमारे अपने कर्मों से है। यदि हमने अपने जीवन में बहुत अच्छे कर्म किये हैं क्या अच्छे कर्म कर रहे हैं तो उसी के अनुरूप ईश्वर हमारे साथ न्याय करेंगे। इस विषय में एक प्रसंग है कि एक रोज रास्ते में एक महात्मा अपने शिष्य के साथ भ्रमण पर निकले। गुरुजी को ज्यादा इधर-उधर की बातें करना पसंद नहीं था, कम बोलना और शांतिपूर्वक अपना कर्म करना ही गुरू को प्रिय था। परन्तु शिष्य बहुत चपल था, उसे हमेशा इधर-उधर की बातें ही सूझती, उसे दूसरों की बातों में बड़ा ही आनंद आता था। चलते हुए जब वो तालाब से होकर गुजर रहे थे, तो उन्होंने देखा कि एक धीवर नदी में जाल डाले हुए है। शिष्य यह सब देख खड़ा हो गया और धीवर को अहिंसा परमोधर्म का उपदेश देने लगा।

लेकिन धीवर कहां समझने वाला था, पहले उसने टालमटोल करनी चाही और बात जब बहुत बढ़ गई तो शिष्य और धीवर के बीच झगड़ा शुरू हो गया। यह झगड़ा देख गुरूजी जो उनसे बहुत आगे बढ़ गए थे, लौटे और शिष्य को अपने साथ चलने को कहा एवं शिष्य को पकड़कर ले चले। गुरूजी ने अपने शिष्य से कहा, बेटा हम जैसे साधुओं का काम सिर्फ समझाना है, लेकिन ईश्वर ने हमें दंड देने के लिए धरती पर नहीं भेजा है! शिष्य ने पूछा, महाराज को न तो बहुत से दंडों के बारे में पता है और न ही हमारे राज्य के राजा बहुतों को दंड देते हैं। तो आखिर इसको दण्ड कौन देगा? शिष्य की इस बात का जवाब देते हुए गुरूजी ने कहा, बेटा! तुम निश्चिंत रहो इसे भी दंड देने वाली एक अलौकिक शति इस दुनिया में मौजूद है जिसकी पहुंच सभी जगह है। इसलिए अभी तुम चलो, इस झगड़े में पडऩा गलत होगा। इस बात को ठीक दो वर्ष ही बीते थे कि एक दिन गुरूजी और शिष्य दोनों उसी तालाब से होकर गुजरे, शिष्य भी अब दो साल पहले की वह धीवर वाली घटना भूल चूका था।

उन्होंने उसी तालाब के पास देखा कि एक चुटीयल सांप बहुत कष्ट में था उसे हजारों चीटियां नोच- नोच कर खा रही थीं। शिष्य ने यह दृश्य देखा और उससे रहा नहीं गया, दया से उसका ह्रदय पिघल गया था। वह सर्प को चींटियों से बचाने के लिए जाने ही वाला था कि गुरूजी ने उसके हाथ पकड़ लिए और उसे जाने से मना करते हुए कहा, बेटा! इसे अपने कर्मों का फल भोगने दो। यदि अभी तुमने इसे रोकना चाहा तो इस बेचारे को फिर से दूसरे जन्म में यह दु:ख भोगने होंगे क्योंकि कर्म का फल अवश्य ही भोगना पड़ता है। गुरू महाराज बोले. यह वही धीवर है जिसे तुम पिछले वर्ष इसी स्थान पर मछली न मारने का उपदेश दे रहे थे और वह तुम्हारे साथ लडऩे के लिए आग-बबूला हुआ जा रहा था। वे मछलियां ही चींटी है जो इसे नोच-नोचकर खा रही है। गुरुजी ने कहा. बेटा! इसी लोक में स्वर्ग-नरक के सारे दृश्य मौजूद हैं, हर क्षण तुम्हें ईश्वर के न्याय के नमूने देखने को मिल सकते हैं।

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