मैं आनंद नाम का नवसंवत्सर हूं। आज नवरात्र में मेरा तीसरा दिन है। सबसे कहना चाहूंगा कि ये मुकद्दर का भी अजीब मामला है। खरे से खरे आदमी का नसीब भी खोटा हो सकता है, और कभी-कभी इसका उल्टा भी हो जाता है। इस समय अपने दुर्भाग्य को बहुत अधिक मत कोसिए। इन दिनों हम प्राण निकलने के नौ द्वारों की चर्चा कर रहे हैं। आंख के बाद दूसरे दो द्वार हैं नाक के। अपनी प्राणवायु को हम इसी नासिका से भीतर ले जाते हैं। इस महामारी से बचने के लिए प्राणायाम अपने आप में एक उपचार है और इसमें ये दो द्वार बड़े काम आएंगे। आज जिस ऑसीजन के लिए इतनी कालाबाजारी, भ्रष्टाचार हो रहा है, उसका शुद्ध स्वरूप हम प्राणायाम से प्राप्त कर सकते हैं। हमारी पांच ज्ञानेंद्रिया मानी गई हैं- आंख, नाक, कान, जीभ और त्वचा। एक छठी इंद्रीय भी होती है जो हमारे भीतर सुषुना नाड़ी की सक्रियता से होती है और उसके लिए प्राणायाम आवश्यक है। जिसकी छठी इंद्रीय जाग्रत होती है, वह आनंद में डूब जाता है। उसे आत्मा का स्पर्श मिलने लगता है। ये जितनी भी लूटपाट-डकैतियां होती है, सब देह पर टिकी हैं। कितना ही बड़ा लुटेरा आ जाए, आत्मा के आनंद को नहीं लूट पाएगा। आत्मा के आनंद की यह दौलत इस दौर में भी बचाई जा सकती है। नियमित प्राणायाम करते रहिए, नवरात्र का आनंद बढ़ जाएगा..।
पं. विजयशंकर मेहता