कठिनाई के समय में एक महापुरुष का तसल्ली देना आम आदमी में ऊर्जा का स्रोत पैदा कर देता है। जब भी हमारे सामने कुछ संकट आए तो हमें अपने से नीचे लोगों का आंकलन करना चाहिए कि वह कैसे अपना जीवन यापन कर रहे हैं। जब हम उनके जीवन का अध्ययन करेंगे तो हममें ऊर्जा का वाहन स्वत: ही होना शुरू हो जाएगा और हम अपने उद्देश्य में सफल हो जाएंगे। उदाहरण के तौर पर नंगे पैर चलने वाला व्यक्ति अपने पैरों में जूते की कमी महसूस कर रहा हो तो उसे कल्पना करनी चाहिए कि संसार में कुछ लोग तो ऐसे भी हैं जिन्हें जूता पहनने के लिए पैर भी नहीं हैं, ईश्वर ने हमारे कम से कम पैर तो दिए हैं। इस बारे में भारत के महान दार्शनिक स्वामी विवेकानंद का किस्सा उल्लेखित कर रहा हूं जो हमें कठिनाइ के समय में साहस प्रदान करता है।
एक बार स्वामी विवेकानंद हिमालय की यात्रा पर थे तभी उन्होंने वहा एक वयोवृद्ध आदमी को देखा जो बिना कोई आशा लिये अपने पैरो की तरफ देख रहा था और आगे जानेवाले रास्ते की तरफ देख रहा था। तभी उस इंसान स्वामीजी से कहा, कि हेलो सर, अब इस दुरी को कैसे पार किया जाये, अब मै और नही चल सकता, मेरी छाती में दर्द हो रहा है। स्वामीजी शांति से उस इंसान की बातों और सुन रहे थे और उसका कहना पूरा होने के बाद उन्होंने जवाब दिया कि नीचे अपने पैरों की तरफ देखो तुम्हारे पैरो के निचे जो रास्ता है वो वह रास्ता है जिसे तुमने पार कर लिया है और यह वही रास्ता था जो पहले तुमने अपने पैरो के आगे देखा था, अब आगे आने वाला रास्ता भी जल्द ही तुम्हारे पैरों के नीचे होंगा। स्वामीजी के इन शदों ने उस वयोवृद्ध इंसान को अपने लक्ष्य को पूरा करने में काफी सहायता की। यदि स्वामी जी भी उस वृद्ध की बात को तूल देते तथा वह भी अपनी थकान उसके समक्ष प्रकट कर देते तो हिमालय की यात्रा करने में उस बूढ़े व्यक्ति को साहस नहीं मिल पाता जिससे उसकी यात्रा पूर्ण नहीं होती।
-एम. रिजवी मैराज