कहते हैं कि इंसान गलतियों का पुतला होता है। सबसे गलतियां होती हैं। लेकिन पश्चिम बंगाल के चुनाव ने यह साबित किया है कि सिर्फ ममता बनर्जी गलतियों का पुतला हैं बाकी सब दूध के धुले हैं। देश की सारी एजेंसियां, सारे नेता, मंत्री, अधिकारी सब ममता की गलतियां पकड़ने में लगे हैं और हैरानी की बात है कि सब कोई न कोई गलती खोज ले रहे हैं। प्रधानमंत्री के हाथ तो ममता बनर्जी की कुछ ज्यादा ही गलतियां लग रही हैं। तभी हर सभा में वे ममता की गलती बताते हैं, उन्हें धिक्कारते हैं और लोगों से भाजपा को वोट देने की अपील करते हैं। गृह मंत्री अलग गलतियां निकाल रहे हैं, भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अलग, आईटी सेल के प्रमुख अलग तो देश का चुनाव आयोग अलग यहां तक कि कांग्रेस और वामपंथी पार्टियों के नेता भी ममता की गलतियां निकालने में लगे हैं।
तृणमूल कांग्रेस की एक उम्मीदवार सुजाता मंडल ने किसी सभा में अनुसूचित जाति के लोगों को कथित तौर पर भिखारी कहा। इस पर प्रधानमंत्री दावा रहे हैं कि उस उम्मीदवार ने यह बात ममता बनर्जी से पूछे बगैर नहीं कही होगी और इस आधार पर प्रधानमंत्री ने ममता बनर्जी को दलित विरोधी और भीमराव अंबेडकर का अपमान करने वाला बताया। अब दूसरी तरफ देखें, भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष दिलीप घोष ने मारे गए चार युवकों को ‘बुरे लड़के’ बताया था। भाजपा के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष राहुल सिन्हा ने तो एक कदम आगे बढ़ कर कहा कि सुरक्षा बलों ने कूचबिहार के सितलकुची में चार लोगों को ही गोली क्यों मारी आठ को मारनी चाहिए थी। तो क्या यह कहा जा सकता है कि उन्होंने यह बात प्रधानमंत्री या गृह मंत्री से पूछ कर कही है और इसलिए प्रधानमंत्री और गृह मंत्री चार लोगों की हत्या के लिए जिम्मेदार हैं?
अगर प्रधानमंत्री के लॉजिक को अप्लाई किया जाए तो देश भर के तीरथ सिंह रावत, बिप्लब देब, प्रज्ञा सिंह ठाकुर किस्म के भाजपा के नेता जो भी अनाप-शनाप बयान देते हैं, उनके लिए प्रधानमंत्री या भाजपा अध्यक्ष ही जिम्मेदार होंगे! बहरहाल, ममता बनर्जी ने केंद्रीय अर्धसैनिक बलों पर आरोप लगाया कि वे मतदाताओं को डरा-धमका रहे हैं तो इसकी जांच कराने की बजाय केंद्रीय चुनाव आयोग ने तत्काल ममता की निंदा में एक प्रस्ताव पास किया। ममता ने मुस्लिम मतदाताओं से एकजुट होकर वोट करने को कहा तो चुनाव आयोग इतना नाराज हो गया कि उनको 24 घंटे तक प्रचार करने से रोक दिया। गृह मंत्री ने अपने को बनिया बता कर घोषणापत्र जारी किया था, तो उस पर चुनाव आयोग की नजर नहीं गई थी।
बंगाल के चुनाव में भाजपा, कांग्रेस, लेफ्ट के प्रचार और चुनाव आयोग और दूसरी केंद्रीय एजेंसियों की कार्रवाइयों के आधार पर कहा जा सकता है कि ममता दलितों का अपमान करती हैं, केंद्रीय बलों का अपमान करती हैं, चुनाव आयोग का अपमान करती हैं, मा-माटी-मानुष के लिए उनके मन में कोई सम्मान नहीं है, वे हिंसा को बढ़ावा देती हैं, भ्रष्टाचार करती और करवाती हैं, उनका परिवार कोयले की तस्करी में शामिल है और उनके नेता चिटफंड कंपनियों के घोटाले में शामिल हैं। सोचें, इसके बावजूद अगर बंगाल के लोग उनको विजयी बनाते हैं तो तमाम आरोप लगाने वाले ‘दूध के धुले नेता’ क्या करेंगे?
दिलचस्प ये भी है कि पश्चिम बंगाल में भाजपा की ओर से सबसे ज्यादा प्रचार जिस नेता का हुआ वे शुभेंदु अधिकारी हैं। लेकिन अब किसी को पता नहीं चल रहा है कि वे और उनका परिवार कहां है। तीसरे चरण में उनकी नंदीग्राम सीट पर मतदान हुआ था। उसके अगले दिन से ही उनका अतापता नहीं है। हो सकता है कि वे स्थानीय स्तर पर कहीं प्रचार के काम में लगे हों, लेकिन अब राष्ट्रीय या प्रदेश के मीडिया में उनको नहीं दिखाया जा रहा है। यहां तक कि उसके बाद से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी या अमित शाह की सभाओं में भी वे नहीं दिखे हैं। ऐसा लग रहा है कि भाजपा जिस मकसद से उनको ले आई थी वह पूरा हो गया और उसके बाद अब पार्टी को उनकी कोई खास जरूरत नहीं है। उनको पार्टी में लाया गया था कि वे मेदिनीपुर के इलाके में ममता बनर्जी के वर्चस्व को तोड़ेंगे।
हालांकि ममता ने नंदीग्राम से चुनाव लड़ कर सारे समीकरण बिगाड़ दिए। फिर भी अगर उस इलाके में भाजपा लड़ती हुई दिखी तो कारण शुभेंदु अधिकारी और उनका परिवार ही था। लेकिन इसे लेकर भाजपा के अंदर बहुत विरोध हो गया था। पार्टी के पुराने नेताओं ने अधिकारी परिवार का विरोध किया था। शुभेंदु अपने को इतने जोर-शोर से मुख्यमंत्री का दावेदार पेश करने लगे थे कि भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष दिलीप घोष को कहना पड़ा कि भाजपा की सरकार बनती है तो कोई ऐसा व्यक्ति भी मुख्यमंत्री बन सकता है, जो विधायक नहीं हो। यह भी कहा जा रहा है कि भाजपा नेताओं के विरोध की वजह से शुभेंदु अधिकारी को लाइमलाइट से हटाया गया है। तृणमूल से आए मुकुल रॉय पहले ही लाइमलाइट से बाहर हैं। आखिर ये चल या रहा है?
हरिशंकर व्यास
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं ये उनके निजी विचार हैं)