अब किताबें दूर रख बुनियादी पढ़ाई ही मजबूत करनी होगी

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लगभग एक साल से पूरे देश के प्राथमिक विद्यालयों के फाटक पर ताला लगा हुआ है। बीच में कहीं-कहीं स्कूल खुले भी थे, पर कोविड के नए दौर की वजह से फिर बंद करना पड़ा। अब गर्मी की छुट्टियां भी आ रही हैं। जैसे-जैसे स्कूल बंद रहने का समय लंबा होता जा रहा है, अभिभावक व शिक्षक भी और चिंतित होते जा रहे हैं।

अखबारोंं, अकादमिक लेखों और आम लोगों की बातचीत में ‘लर्निंग लॉस’ शब्द बार-बार सामने आ रहा है। शहरी और संपन्न परिवारों के बच्चे ऑनलाइन शिक्षा जरूर ग्रहण कर रहे हैं पर अधिकांश ग्रामीण बच्चों की पढ़ाई एक साल से नियमित रूप से नहीं हो पाई है। बच्चे जो जानते थे, क्या वह भूल चुके हैं? कितना नुकसान हुआ है? आजकल इस तरह के सवाल सबके मन में हैं।

अक्सर आगे सोचने के लिए पीछे मुड़कर देखना जरूरी होता है। पिछले 15 साल से पूरे हिंदुस्तान के हर एक ग्रामीण जिले में ‘असर’( एनुअल स्टेटस ऑफ एजुकेशन रिपोर्ट) सर्वे किया जाता है। यह सर्वेक्षण गांव में होता है न कि स्कूल में। इस दौरान परिवार से पूछा जाता है कि बच्चे किस स्कूल और किस कक्षा में पढ़ते हैं। फिर चयनित परिवार के बच्चों का मौखिक मूल्यांकन बारी-बारी से होता है। बच्चों को कुछ पढ़ने के लिए दिया जाता है, कुछ गणित के सवाल भी दिए जाते हैं। हर साल लगभग छह लाख बच्चे इस सर्वेक्षण में भाग लेते हैं।

महामारी के पहले, बच्चों का बुनियादी पढ़ने-लिखने का स्तर क्या था? आंकड़े ‘असर 2018 रिपोर्ट’ में उपलब्ध हैं। हिंदुस्तान को अगर एक झलक में देखना हो तो आंकड़े बताते हैं : तीसरी कक्षा के 30% से कम बच्चे दूसरी कक्षा के स्तर का पाठ पढ़ सकते थे। राजस्थान, मप्र, उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में तीसरी कक्षा में पढ़ने वाले बच्चों में से लगभग 20% से भी कम छात्र उस कक्षा के स्तर अनुसार पढ़ाई कर पा रहे थे।

पांचवीं में भी आधे से ज्यादा बच्चे दूसरी कक्षा के स्तर की आसान कहानी नहीं पढ़ रहे थे। आठवीं में भी एक चौथाई छात्रों की यही हालत थी। याद रखना जरूरी है कि यह आंकड़े कोरोना के पहले की कहानी बता रहे हैं। जाहिर है कि जो बच्चा पहले कमजोर था, वह एक साल स्कूल बंद होने के बाद और कमज़ोर हो गया होगा।

पीछे मुड़कर देखने से यह साफ नजर आता है कि प्राथमिक शिक्षा का स्तर कोरोना के पहले भी संतोषजनक नहीं था। अब आगे क्या करना चाहिए? स्कूल खुलते ही हमारा पहला उद्देश्य होना चाहिए पुरानी कमजोरियों को दूर करना। नई शिक्षा नीति 2020 का भी यही कहना है कि बुनियादी कौशल अनिवार्य है। हमारे देश में तीसरी-चौथी-पांचवीं की पाठ्यपुस्तकें और पाठ्यक्रम अधिकांश बच्चों के स्तर से बहुत आगे है।

स्कूल खुलने पर सिर्फ पाठ्यक्रम को थोड़ा हल्का करने से या पिछली कक्षा के कुछ पाठ को दोहराने से काम नहीं बनेगा। कमजोरियां और गहरी हैं। कक्षा की पाठ्यपुस्तकों को किनारे रखकर पहले बुनियादी गणित और पढ़ने की क्षमता को तेजी से और मजबूत करना होगा।

विश्वविख्यात शोधकर्ता, नोबेल प्राइज विजेता-अभिजीत बनर्जी और एस्थर दुफ्लो ने पाया है कि बच्चों को उनके स्तर के आधार पर पढ़ाने से (न कि कक्षा के पाठ्यक्रम के आधार से) बच्चों की प्रगति तीव्र गति से होती है। स्कूल खुलते ही हमें बच्चों की नीव को मजबूत करने में पूरा ध्यान लगाना चाहिए। अगर उत्साह और ऊर्जा से करें तो हमारे बच्चे बहुत आगे तक पहुंच जाएंगे।

स्कूल खुलने का इंतजार हम सब मिलकर कर रहे हैं। साथ ही साथ, अगर हम पूर्व तैयारी में लग जाएं- उदेश्य और लक्ष्य से साथ साथ पढ़ने के नए तौर-तरीके तय कर लें, ताकि देश के हर बच्चे की नीव को पक्का करने के लिए तैयार हो जाएं ।

रुक्मिणी बनर्जी
(लेखिका ‘प्रथम’ एजुकेशन फाउंडेशन से संबद्ध हैं ये उनके निजी विचार हैं)

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