मीडिया की साख हो रही खाक

0
947

पिछले कई सालों से एक-एक करके देश की संस्थाओं की साख खराब करने का सांस्थायिक प्रयास हो रहा है। न्यायपालिका से लेकर विधायिका तक और अब प्रेस के साथ वहीं काम हो रहा है। पहली बार ऐसा हो रहा है कि देश का मीडिया आपस में लड़ रहा है। सारे मीडिया घराने एक दूसरे को भ्रष्ट, बेईमान, सरकार का चापलूस, गोदी मीडिया या देशद्रोही साबित करने में लगे हैं। मीडिया का एक समूह ऐसा है, जो सरकार का गुणगान करने वालों को गोदी मीडिया बताता रहा है तो दूसरा समूह ऐसा है, जो सरकार के विरोधियों को देश विरोधी बता कर उनकी आलोचना करता रहा। मीडिया समूहों के बड़े एंकर, संपादक आपस में ट्विटर और फेसबुक पर एक दूसरे से लड़ते रहे और उनको पता नहीं चला कि कब उन्होंने अपनी साख का भट्टा बैठा लिया। बड़े-बड़े पत्रकारों को पता नहीं चला कि कब उनके पीठ पीछे नेता उनको ‘पतलकार’ यानी पाल चाटने वाला कहने लगे और कब लोगों ने उन पर भरोसा करना छोड़ दिया। अब मीडिया की साख न नेता की नजर में है, न उद्योगपति की नजर में, न अधिकारियों व न्यायपालिका की नजर में और न आम लोगों की नजर में।

नरेंद्र मोदी ने प्रधानमंत्री बनकर दिल्ली आने के बाद सबसे पहले इसी संस्था को टारगेट किया था। उन्होंने यह काम बहुत कायदे से किया। उन्होंने प्रेस कांफ्रेंस नहीं करने का फैसला किया और साथ ही यह भी फैसला किया कि वे देश के अंदर या विदेश दौरों पर मीडिया को अपने साथ नहीं ले जाएंगे। उन्होंने मैसेज दिया कि उन्हें भारतीय मीडिया की परवाह नहीं है। उन्होंने ट्विटर के जरिए, रेडियो पर मन की बात के जरिए या टेलीविजन पर सीधे राष्ट्र को संबोधित करने के जरिए लोगों से सीधे संवाद किया।इसके बावजूद मीडिया की साख खराब नहीं होती पर साा और ताकत के सामने झुकने के पुराने इतिहास को दोहराते हुए ज्यादातर मीडिया समूहों ने सरकार के आगे सरेंडर कर दिया। सरकार ने उनका मनमाना इस्तेमाल किया। मीडिया समूह अपनी बुनियादी जिमेदारी भूल गए। वे जनता के हितों के ऊपर सरकार की बातों को महत्व देने लगे। नौबत यहां तक आ गई कि टेलीविजन चैनलों की बहस में सरकार व साारूढ़ दल के प्रवक्ताओं से ज्यादा एंकर्स ने विपक्ष पर हमले शुरू कर दिए। सरकार की बजाय विपक्ष से सवाल पूछा जाने लगा। मीडिया को सनातन विपक्ष कहा जाता है। जैसे ही मीडिया ने अपनी यह भूमिका छोड़ी वह आम लोगों के लिए बेकार की वस्तु बन गई।

पर मीडिया समूह इतने पर ही नहीं रुके। उन्होंने संकल्प किया है कि लोकतंत्र का चौथा स्तंभ कहे जाने वाले मीडिया की साख को पूरी तरह से मिट्टी में मिला कर दम लेंगे। एक 28 साल की युवती को हत्यारी, जादूगरनी, नशे की कारोबारी साबित करने का प्रयास देश के ज्यादातर चैनल तीन महीने तक करते रहे। यहीं काम कुछ मीडिया समूह अब हाथरस कांड में कर रहे हैं। चैनल रोज रात को कंगारू कोर्ट लगा कर बैठते हैं, जिसमें एंकर ही पुलिस भी होती है और जज भी। चैनलों में बैठकर नेताओं को, अधिकारियों को चुनौती दी जाने लगी, फिल्मी सितारों को ललकारा जाने लगा, अपराधी तय किए जाने लगे और सजा सुनाई जाने लगी। मीडिया में एक दूसरे को नीचा दिखाने की ऐसी होड़ मची है कि सब धूल धूसरित पड़े हैं। टीआरपी हासिल करने के लिए किए गए एक घोटाले का खुलासा हुआ है। कई चैनल इसकी चपेट में आए हैं। रिया चक्रवर्ती को सजा दिलाने की मुहिम चलाने वाले चैनल पर आरोप लगा है कि उसने पैसे देकर टीआरपी मैनेज की। अब सोचें, इसके बाद किसी की क्या साख बचनी है! हर मामले में मीडिया समूह आपसी प्रतिद्वंदिता के चलते एक दूसरे के उलट लाइन पकड़ रहे हैं।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here