देश को कृषि सुधारों की जरूरत

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मैं आज बहुत नाराज हूं। हालांकि, इससे पहले कि मैं अपनी नाराजगी जाहिर करूं, यह रहा कुछ सकारात्मक। मैं आपसे कुछ साधारण भारतीय कृषि उत्पादों को वैश्विक ब्रांड बनाने की संभावनाओं के बारे में बात करना चाहता हूं। ये हैं वे 10 भारतीय कृषि उत्पाद जिनमें अरबों डॉलर के ब्रांड बनने की क्षमता है।

1. आम: भारतीय आम बेहद स्वादिष्ट होते हैं, उनकी कई किस्में आती हैं। अभी केवल अल्फांसो ही छोटा-मोटा ब्रांड बना है और बाकी में भी क्षमता है।

2. गाजर: भारतीय गाजरें खूबसूरत लाल रंग की, कुरकुरी और स्वादिष्ट होती हैं। विदेश में गाजर नारंगी होती हैं और प्लास्टिक जैसी बेस्वाद। भारतीय गाजरें राज कर सकती हैं।

3. मसाले: जीरा, लौंग, इलायची… भारतीय मसालों की लंबी फेहरिस्त है। भारत का मसालों से संबंध अच्छे से स्थापित है, पर हम इसका पूरा दोहन नहीं कर पाए।

4. डेयरी: हम दुनिया का सर्वश्रेष्ठ चीज, बटर, दही, पनीर और घी बना सकते हैं। अगर ग्रीक योगर्ट मल्टी-बिलियन ब्रांड बन सकता है, तो भारतीय योगर्ट क्यों नहीं?

5. जामुन: जामुन जैसे फलों को विदेश में कम जानते हैं, लेकिन उसके कई स्वास्थ्य लाभ हैं। दुनिया का परिचय भारत के असाधारण फलों से कराकर ब्रांड बना सकते हैं।

6. राजगिरा, अमरनाथ और अन्य हाई-प्रोटीन अनाज: क्विनोआ को लेकर दुनिया में बहुत उत्साह है। हमारे पास क्विनोआ के बेहतर विकल्प हैं।

7. चावल: भारतीय बासमती लंबा, सुंदर, खुशबूदार है। दुनिया में कोई चावल इसके आसपास भी नहीं है।

8. मिर्च: भारत के उत्तर-पूर्व में कुछ अनूठे स्वाद वाली मिर्च हैं। हमने उन्हें अभी भारत में ही बेचना शुरू नहीं किया। हम भारतीय मिर्च को भी वैश्विक बना सकते हैं।

9. सेब: भारतीय कश्मीरी सेबों के बारे में जानते हैं। दुनिया अभी नहीं जानती।

10. संतरे: नागपुरी संतरे स्वाद में स्पेनिश से बेहतर हैं और उन्हें छीलना आसान है।

यह फेहरिस्त लंबी हो सकती है। बात यह है कि भारतीय खेतों में कई अरबों के व्यापार खड़े होने को तैयार हैं। अगर ये बनते हैं तो कौन अमीर होगा? जी हां, बेशक बिजनेस के मालिक लेकिन किसान भी अमीर होंगे। तो ये बिजनेस कैसे बनेंगे? ये प्राइवेट सेक्टर की भागीदारी के बिना नहीं बनेंगे। और इस भागीदारी के लिए हमें लंबित कृषि क्षेत्र सुधारों की जरूरत है।

अब, जब ये सामने हैं तो कई पढ़े-लिखे, वैश्विक रूप से जागरूक लोग उन्हें आगे नहीं बढ़ने दे रहे। यही मेरी नाराजगी का कारण है। सोशल मीडिया पर कृषि कानूनों के खिलाफ शोर ने मुझे बहुत खफा किया। लोग अधपकी समझ के साथ उन कानूनों पर बोल रहे हैं, जिन्हें वे खुद पूरी तरह नहीं समझते।

वैश्विक पॉप स्टार और अन्य इंफ्ल्यूएंसर (सोशल मीडिया पर प्रभावशाली) भारतीय कृषि कानूनों के खिलाफ पोस्ट कर रहे हैं। ऐसे लगभग सभी लोगों में एक बात समान है- इन सभी ने अपने सोशल मीडिया ब्रांड सोशल जस्टिस वॉरियर (सामाजिक न्याय योद्धा) बनकर स्थापित किए हैं।

इस रणनीति में कुछ गलत नहीं है। इससे अच्छी मार्केटिंग होती है और यह ओरिजिन क्रिएटिव कंटेंट बनाने से तो आसान है। बस इन इंफ्ल्यूएंसर्स को अपनी SJW छवि बनाए रखने के लिए सबूत देने पड़ते हैं, ताकि प्रोफाइल पर एंगेजमेंट रहे।

एंगेजमेंट के लिए ये तस्वीरें/वीडियो इस्तेमाल करते हैं। पुलिस वालों से पिटते बूढ़े किसान की तस्वीर अच्छा काम करती है। ठंड में आग तापती बूढ़ी औरत की तस्वीर, शानदार कंटेंट है। हालांकि, कृषि कानूनों पर वास्तविक दस्तावेज या सकारात्मक-नकारात्मक असरों के विश्लेषण की बात की जाए तो इन्हें उबासी आती है। ऐसे पोस्ट करना या पढ़ना उन्हें बोरियत भरा लगता है।

सच्चे बदलाव के पीछे बहुत सारा बोरियत भरा काम होता है। जी हां, कानूनों को बनाना और लागू करना मीम के लायक, उत्साहजनक या भावुक नहीं है। यह बोरियत भरा है। हालांकि, अंतत: यही असरकारी हैं। कानूनों को इसलिए नापसंद करना कि वे मोदी सरकार ने बनाए हैं या सिर्फ किसी तस्वीर/वीडियो से भावुक हो जाना सही नहीं है।

कृषि कानूनों का पारित होना ऊपर दिए गए मल्टी-डॉलर भारतीय कृषि ब्रांड्स के बनने की गारंटी नहीं है। लेकिन, मैं यह गारंटी देता हूं कि कृषि सुधार कानून पारित नहीं हुए तो ये ब्रांड कभी नहीं बनेंगे। इसलिए विरोध करते समय सावधान रहें। क्या आपको पता है क्या चल रहा है? क्या आप जानते हैं कि किसान कैसे अमीर होंगे? बेशक, निजी क्षेत्र का शोषण एक मुद्दा है, जिसे उठाया जाएगा।

समय के साथ किसानों की निजी फर्म वाली प्रतिष्ठा हो जाएगी। लेकिन भगवान के लिए, भारतीय किसानों को अमीर बनाने की सिर्फ बातें न करें। उन्हें अमीर बनाने के लिए काम करें। और उनकी बात सुनें जो ‘वर्क’ (काम) करते हैं, न कि सिर्फ ‘ट्वर्क’ (सोशल मीडिया पर प्रचलित डांस का प्रकार)।

चेतन भगत
(लेखक अंग्रेजी के उपन्यासकार हैं, ये उनके निजी विचार हैं)

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