उत्तर प्रदेश सरकार ने लव जेहाद को नियंत्रित करने के लिए अध्यादेश अधिसुचित कर दिया है। अन्य प्रदेश भी ऐसा कानून ला रहे है जो लव जेहाद की त्रासदी से युवतियों को सुरक्षित रख सके। केरल के कुछ ईसाई संगठन भी लव जेहाद को रोकने की मांग लम्बे समय से करते आए हैं, वहां कोई कानून तो नहीं बना, लेकिन वहां की सरकार ने लव जेहाद को लेकर चिंता अवश्य प्रकट की है। लव जेहाद में समर्पित प्रेम की भूमिका न होकर धर्मांतरण कराने की लालसा अधिक होती है। धर्मांतरण में असफल रहने पर हत्या तक कर दी जाती है। गोवा स्थित यह समाजिक संगठन ने जव जेहाद से पीडित युवतियों पर एक शोधात्मक रिपोर्ट का प्रकाशन किया था, उसके पश्चात इस विषय को देश में गंभीरता से लिया जाने लगा। लव जेहाद को लेकर आए इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले ने एक बार फिर से सवाल खड़ा कर दिया है कि देवताओं की इस जन्मस्थली पर आखिर ये हो या रहा है। भारत जहां सभी धर्म और जाति के लोगो को संविधान के अनुच्छेद 21 के अनुसार अपने जीवन को जीने का अधिकार है। वहां केवल शादी के नाम पर धर्म परिवर्तन करने का क्या औचित्य है। सन् 2009 में केरल में दाखिल हुई एक याचिका के बाद लव जेहाद् के नाम का ऐसा महिमामंडन हुआ जिसके बाद इस समस्या का समाधान तो नहीं हो पाया लेकिन राजनीतिज्ञों ने इस मामले को लेकर वोट की रोटिंया खूब सेंकी और आगे भी ऐसे ही सेंकी जाती रहेगीं।
लवजेहाद की इस इस्लामोफोबिक थ्योरी को अगर खबरों के आधार पर जानने की कोशिश करें तो हम पाते हैं कि लडकियों को हाथ में कलावा बांधकर और नाम बदलकर ऐसे नरक में झोंक दिया जाता है जहां से बाहर निकल पाना असंभव होता है। इस पाश में फंसी महिलाओं का सामाजिक जीवन पूरी तरह से नष्ट हो जाता है। 2009 में इस मामले के सामने आने के बाद नेशनल इन्वेस्टिंग एजेंसी ने भी इस मुद्दे को लेकर जांच की और सरकार को अपनी रिर्पोट सौंपी जिसमें यह स्पष्ट किया गया कि लव जेहाद् के चक्कर में लड़कियों को फंसाने वाले इन युवको के रिश्ते आतंकवादी संगठनों से जुड़े हुए थे। एनआईए ने अपनी रिर्पोट में यह भी कहा था कि पिछले कई सालों से ये खेल खेला जा रहा है जिसमें युवतियां फंसती जा रही हैं। लव जेहाद् को लेकर जहन में दो सवाल खड़े होते हैं कि या शादी के नाम पर धर्म परिवर्तन करना सही है साथ ही एक सवाल से भी खड़ा होता है कि यो लड़कियों के साथ प्यार के नाम पर घिनौना खेल खेला जा रहा है। आए दिन समाचार.पत्रों और टीवी पर चलती खबरों से महिलाओं को सीख लेने की जरूरत है। हाल ही में हरियाणा के बल्लभगढ़ में हुए निकिता हत्याकांड तथा रेवाड़ी में हुए अपहरण कांड के पश्चात इस विषय को ओर अधिक चर्चित और विचारणीय बना दिया है।
दिन-दहाड़े युवती को दो युवकों ने सिर्फ इसीलिए मार दिया क्योकि उसने धर्म परिवर्तन करने से इंकार कर दिया था ये पहला मामला नहीं था कि जब युवती को परेशान किया गया हो 2018 में भी युवती का अपहरण कर लिया गया था लेकिन पंचायत के दबाव बनाने के बाद युवक ने युवती को परेशान ना करने की खसम खाई थी। लेकिन युवक फिर भी नहीं माना और एक बुद्विमान युवती को हमने खो दिया। केरल हरियाणा उार प्रदेश पजांब गुजरात देश का ऐसा कोई राज्य नहीं है जहां से लव जेहाद के मामले सामने ना आए हों। इतना ही नहीं मजहबी कट्टरपंथियों का जाल विदेशो में भी सक्रिय हैंए जहां भारतीय युवतियों को निशाना बनाया जा रहा है। ऐसा ही एक मामला लंदन में सामने आया था जब एक कारोबारी की बेटी को फंसाकर उसका निकाह करा दिया गया। वहीं राजनीति के चलते बिहार में भी चुनावी शगुफा छोड़ा गया था कि बिहार में भी लव जेहाद् के खिलाफ कड़े कानून बनाए जाए। राजनीति के लिए हमारे देश में कई मामले उठाए गए जिनमें से ये भी एक मामला है लेकिन इस मामले ने हमारे सामाजिक ढ़ाचें को एक ऐसे दोराहे पर लाकर खड़ा कर दिया है जिसके एक तरफ शांति और प्रेम है तो दूसरी तरफ संस्कृति का हास।
लेकिन यहां महिलाओं को जागरूक होने की ज्यादा आवश्यकता है कि वे ऐसे युवको के प्रेम जाल में फंसें ही ना। जिस युवक को आप महज सोशल साईट के माध्यम से जानते हैं आप उनको अपनी तस्वीरें भेजने के लिए कैसे तैयार हो सकते हैं। जिस युवक से आप चंद दिन पहले ही मिले हैं जिसके बारे में आप नहीं जानते आप उनके साथ अपने माता.पिता के प्रेम और वात्सल्य को छोड़कर जानने के लिए कैसे तैयार हो सकते हैं। बात सीधी सी है कि आपका एक छोटा सा कदम आपके और आपके परिवार के पूरे जीवन को बदल सकता है। महिलाओं के पास सिसथ सेंस होती है जो ईश्वर द्वारा उन्हें तोहफे के तौर पर दिया गया है आपको उसे जागरूक करना होगा और स्वयं के विवेक से खुद को इस जाल में फंसने से रोकना होगा। शायद कम उम्र के चलते आपके सोचने.समझने की क्षमता कम हो लेकिन इस तरह की बातें अपने पियर ग्रुप के साथ साझा करने से बेहतर है कि अपने बड़ों के साथ साझा करें क्योंकि उन्हें आपसे ज्यादा तर्जुबा हैं और वो आपको इस आंधी से बचा भी सकते हैं।
प्रीति सिंह
( लेखिका स्तंभकार हैं ये उनके निजी विचार हैं)