प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पहली शपथ के वक्त जैसे अरूण जेटली कैबिनेट बनवाने वाले थे, अफसरों की अहम नियक्तियों से ले कर लुटियन दिल्ली को हैंडल करने की जिस नंबर दो वाली पोजिशन में थे उस सबकी यों दूसरे कार्यकाल में नरेंद्र मोदी को जरूरत नहीं है। बावजूद इसके इस कार्यकाल में नंबर दो वाला रोल सरकार की तासीर को बदलवाने वाला होगा। अमित शाह का गृह मंत्री बनना बड़ी बात है। यों इस सरकार में औपचारिक तौर पर नंबर दो राजनाथ सिंह ही होंगे। प्रधानमंत्री के बाद उन्हीं की शपथ हुई है। लेकिन पहली सरकार में जैसे अरूण जेटली (कम से कम दिल्ली में किरण बेदी को सीएम प्रोजेक्ट करवाने तक) नंबर दो नहीं होते हुए भी नरेंद्र मोदी को चलवाते रहे उससे ज्यादा स्थायी और प्रभावी रोल अमित शाह का रहेगा।
मतलब चाणक्य अब सरकार में हैं तो सोचें कि सरकार का मिजाज, व्यवहार कैसे बदलेगा? गुजरात में गृह राज्य मंत्री से सीधे भारत सरकार में गृह मंत्री के रूप में सरदार पटेल के कमरे में अमित शाह का बैठना कई मतलब लिए हुए है। वैसे अपना मानना है कि भारत का गृह मंत्री हमेशा यथास्थिति और रूटिन में जीने वाला रहा है। मुझसे एक दफा एक गृह मंत्री और गृह सचिव ने पूछा कि क्या होना चाहिए, क्या प्राथमिकता होनी चाहिए तो अपनी थीसिस थी कि आप बेसिक यूनिट याकि थाने पर सिर्फ ध्यान दें। उसे बदल दें तो भारत मध्य युग से बाहर निकल आएगा। फिर यदि गृह मंत्री जनता की भाषा को अपनाने की जिद पाल ले तो भारत बदल जाएगा!
सचमुच मध्य काल याकि मुगल के समय से आज तक चांदनी चौक के थाने बनाम सिंहासन पर बैठे शहंशाह ए आलम, गवर्नर-जनरल और आजाद भारत के प्रधानमंत्री-गृह मंत्री बिल्कुल एक सी एप्रोच में रहे हैं। मतलब थाना राज करने की अनिवार्यता का औजार है तो वह जैसा है वैसा रहे। अमित शाह ने खुद पुलिस याकि थाने, सीबीआई को खूब झेला है। उन्हें अनुभव होगा कि थानेदार, आईओ कैसे व्यवहार करते हैं। जैसे मुगल काल में चांदनी चौक का थानेदार इलाके का बादशाह होता था वैसे ही आज भी थानेदार अपने इलाके का मालिक होता है। और भारत का नागरिक यदि अपने घर का दरवाजा पुलिस जन द्वारा खटखटाते हुए देखेगा तो कंपकंपा उठेगा। ऐसा किसी सभ्य देश में, सभ्य कौम अमेरिका, ब्रिटेन, जापान, इजराइल में नहीं होता है। लेकिन भारत के थानेदार, पुलिसकर्मी और प्रजा सब मध्यकाल, मुगल काल के मनोभाव में जीने को शापित हैं। क्यों? इसलिए क्योंकि थाने के प्रशासन को सुधारने की किसी गृह मंत्री ने कोई कोशिश नहीं की। यदि आप शिकायत करने जाएं तो थाने में वहीं फारसी-उर्दू-अंग्रेजी के जुमलों में व्यवहार, जिसे समझने में अमित शाह को भी सिर खुजलाना पड़ेगा। आपने गौर किया होगा कि हर थाने के कोने में जप्त वाहन, सामान का कबाड़ पड़ा रहता है या देखा होगा ट्रैफिक पुलिस का क्रेन लेकर कार, स्कूटर उठा थाने में ले जाना। यह बाबा आदम के जमाने की व्यवस्था है। जप्ती जरूरी है तो कोर्ट आदेश नहीं तब तक कबाड़ होने तक थाने में सामान रखा रहे। ऐसा सभ्य देशों में नहीं होता क्योंकि उन सबने बदलते वक्त के साथ क्रिमिनल प्रक्रिया, थाने की कार्यप्रणाली सबको बदला और आसान बनाया। ट्रैफिक पुलिस ट्रैफिक उल्लंघन करने वाले वाहन पर नोटिस-जुर्माना चिपका देगा। मालिक उस अनुसार जुर्माना अदा करेगा या कोर्ट में हाजिर होगा। थाने में वाहन को जमा करने, वहां जा कर ले दे कर छुड़ाने जैसे छोटे करप्शन खत्म हो।
सोचें 1947 से पहले भी थानों में पड़ा कबाड़ और आज भी कबाड़, 1947 वाले पुलिसिया जुमले आज भी तो वहीं कार्यप्रणाली आज भी! इसलिए क्योंकि भारत का गृह मंत्री सोचता नहीं है कि कानून-व्यवस्था की बेसिक ईकाई यदि थाना है तो वहां काम 1947 के अंदाज में हो रहा है या 2019 की जरूरत में? पहली बात गृह मंत्री की प्राथमिकता में थाना नहीं होता। दूसरे, गृह मंत्री इतना ताकतवर, इतना दमदार नहीं जो कानून मंत्री को बुला कर हड़काएं कि क्रिमिनल प्रक्रिया और थाने के प्रशासन को चलवाने वाली कानूनी प्रक्रिया को बदलो और थाने भी वैसे ही बदले जैसे पासपोर्ट आफिस आदि बदले हैं। अपना मानना है कि थाना बदलेगा तो अदालत और न्याय प्रक्रिया भी बेहतर होगी। राजकाज जनता मुखी बनेगा। क्या अमित शाह इस बेसिक जरूरत पर ध्यान देंगे? रविशंकर प्रसाद को हड़का कर थाने के काम की कानूनी प्रक्रियाओं में सुधरवाने के ऐसे आदेश, ऐसे संशोधन करा सकेंगें कि वाहनों की जप्ती और कचरे को इकठ्ठा करने की जरूरत जैसी बेहूदगियां खत्म हों। ऑऩलाइन शिकायत, एफआईआर के बेसिक काम जनता की भाषा में जनता के द्वारा किए जा सकें। जमानत का अधिकार सभी एक समान पाए रहें आदि, आदि।
पर अमित शाह इन बातों की बजाय राम मंदिर, गोवंध पाबंदी के अखिल भारतीय कानून और कश्मीर जैसे मुद्दों पर फोकस रखेंगे। अपनी उम्मीद है कि कश्मीर में वे कायाकल्प करवा सकते है। वह मामूली बात नहीं होगी मगर साथ में हिंदू को कंपकंपाने वाले मुगलकालीन चांदनी चौक की थाने की परंपरा से यदि हिंदुओं को आजाद कराए तो वह भी गर्वनेश में ज्यादा ठोस काम होगा।
हरिशंकर व्यास
लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, ये उनके निजी विचार है…