आयकर विभाग ने 281 करोड़ रुपये के अवैध धन के रैकेट का पता लगाया है। इसका खुलासा विभाग की ओर से मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री कमलनाथ के करीबी सहयोगियों के यहां पड़े छापे के बाद किया गया है। केन्द्रिय प्रत्यक्ष कर बोर्ड (सीबीडीटी) को उस रिपोर्ट से राजनीतिक ताममान और बढ़ गया है, जिसमें यह कहा गया है कि 20 करोड़ रुपये की संदिग्ध नकदी तुगलक रोड पर रहने वाले महत्वपूर्ण शख्श के घर से दिल्ली के बड़ी राजनीतिक पार्टी के कार्यालय तक कथित तौर पर पहुंच जाने का सुराग मिला है। छापेमारी के बाद सार्वजनिक हुई जानकारी के बाद सियासत तेज हो गयी है। कांग्रेस का सीधा आरोप है कि संभावित हार की
हताशा में मोदी सरकार सरकारी एजेंसियों का बेजां इस्तेमाल कर रही है जबकि सरकार की तरफ से इसे रूटीन कार्रवाई बताया जा रहा है।
वैसे इस यथार्थ से सभी परिचित हैं कि मंहगे होते चुनाव के पीछे असल वजह बेमानी पैसे हैं, जिसे काली कमाई कहें तो इसमें कोई अतिश्योक्ति नहीं। इस तरह के धंधे को सिया सी संरक्षण देने में कोई भी दल पीछे नहीं है। हवाला के जरिए करोड़ो रुपये के लेनदेन चुनाव के दिनों में भी होते हैं यह बड़ी चिंता की बात है। सवाल यह नहीं है कि सरकारी एजेंसियों का कामकाज कितना निष्पक्ष है। सवाल यह भी नहीं है कि विपक्ष के पास ही संदिग्ध करोबारियों की जमात है। यह सवाल जरूर है कि बीते पांच वर्षों में भ्रष्टाचार के खिलाफ जितनी भी कार्रवाइयां हुई है, उसकी जद में सिर्फ विपक्ष है। मंहगे चुनाव के खेल में तो हर कोई शामिल है तभी तो आरटीआई के दायरे में आने से बचने के लिए सब एकमत रहते हैं। इस मसले पर जैसी सर्वानुमति दिखाई देती है।
वैसी तो प्रायः देश के कई जरूरी मसलों पर भी देखने में नहीं आती। इस दृष्टि से तो सत्ता पक्ष से जुड़े लोगों के यहां भी छापे पड़ने चाहिए और उनकी भी काली कमाई को सार्वजनिक किया जाना चाहिए। पर वास्तवर में ऐसा है नहीं। इसीलिए संदिग्ध लेन-देन से तार जुड़े होने के बाद भी विपक्ष की तरफ से राजनीतिक दिवेष का हवाला देकर पाक-साफ होने की कोशिश की जाती है। पर गलत तो गलत ही होता है, वो इस पाले में हो कि उस पाले में, कोई फर्क नहीं पड़ता। यहां चिंता की बात यह है कि सिया सी फायदे के लिए संदिग्ध करोबारियों को शह दे दिया जाता है। आज कांग्रेस शह देती दिखाई दे रही है तो कल बदली परिस्थितियों में भाजपा भी हो सकती है या दूसरे विभागीय छापे के दौरान जो कुछ भी बरामद हुआ है।
उसकी पूरी पड़ताल से पहले सिर्फ प्रारंभिक अनुमान के भरोसे जानकारी को सार्वजनिक किया जाना भी उचित नहीं कहा जा सकता। तब तो और नहीं जब चुनाव के दिन हों। इसके बेजा इस्तेमाल की संभावना बढ़ जाती है। इससे भ्रष्टाचार के खिलाफ चल रही सारी मुहिम पर सवाल उठने लगता है। इसलिए भी कि हाल के विधानसभा चुनाव में मध्य प्रदेश की भी सत्ता बदली है। लोकसभा चुनाव के लिहाज से कांग्रेस को सत्ता में होने का लाभ मिल सकता है। शायद इसीलिए तो नहीं, पर इससे तो इनकार नहीं किया जा सकता कि चुनाव जैसे लोकतंत्र के महत्वपूर्ण उत्सव के बड़े पैमाने पर अवैध ढंग से अर्जित पैसे खर्च होते हैं और शादय इसलिए जब सत्ता में लोग बैठते हैं तो चुनाव में मिले सहयोग को ब्याज सहित लौटाते हैं।
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