योगिनी एकादशी 24 जून को : जानिए पूजा विधि एवं महत्व

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भारतीय सनातन परम्परा के हिंदू धर्मग्रंथों मे हर माह की एकादशी तिथि की विशेष महिमा है। प्रत्येक माह की एकादशी तिथि अलग-अलग नामों से जानी जाती है । तिथि विशेष पर पूजा अर्चना करके मनोरथ की पूर्ति की जाती है योगिनी एकादशी पर भगवान पुण्डरीकाक्ष ,भगवान श्रीविष्णु की पूजा अर्चना करने का विधान हैं इस बार योगिनी एकादशी का व्रत 24 जून शुक्रवार को रखा जाएगा । प्रख्यात ज्योतिषविद श्री विमल जैन जी ने बताया कि आषाढ़ मास के कृष्णपक्ष की एकादशी तिथि 23 जून गुरुवार को रात्रि 9:00 बजकर 42 मिनट पर लगेगी जोकि 24 जून शुक्रवार की रात्रि 11:13 तक रहेगी जिसके फलस्वरूप योगिनी एकादशी का व्रत 24 जून शुक्रवार को रखा जाएगा ।

संकल्प के बिना पूजा अधूरी : प्रख्यात ज्योतिषविद् श्री विमल जैन जी ने बताया कि व्रत के दिन व्रतकर्ता को ब्रह्म मुहूर्त में उठकर अपने समस्त दैनिक कृत्यों से निवृत्त होकर गंगा स्नानादि करना चाहिए । गंगा स्नान यदि संभव ना हो तो घर पर ही स्वच्छ जल से स्नान करना चाहिए । अपने आराध्य देवी देवता की पूजा अर्चना के पश्चात योगिनी एकादशी के व्रत का संकल्प लेना चाहिए ।

कैसे करें पूजा :
व्रत के दिन प्रातः काल सूर्योदय से ही अगले दिन सूर्योदय तक जल आदि कुछ भी ग्रहण नहीं करना चाहिए । व्रत का पारण दूसरे दिन द्वितीय तिथि को स्नानादि के पश्चात इष्ट देवी देवता तथा भगवान पुण्डरीकाक्ष एवं भगवान श्री विष्णु जी की पूजा अर्चना करने के पश्चात किया जाता है योगिनी एकादशी का व्रत महिला व पुरुष दोनों के लिए समान रूप से फलदाई है आज के दिन संपूर्ण दिन निराहार रहना चाहिए अन्य ग्रहण करने का निषेध है विशेष परिस्थितियों में दूध या फलाहार ग्रहण किया जा सकता है। व्रत करता को दिन में शयन नहीं करना चाहिए तथा क्षौरकर्म नहीं करना चाहिए अपने जीवन में मन वचन कर्म से पूर्ण रुप से शुचिता बरतते हुए यह व्रत करना विशेष फलदाई रहता है विधि-विधान पूर्वक योगिनी एकादशी के व्रत व भगवान श्रीविष्णुजी की विशेष कृपा से जीवन के समस्त पापों का शमन हो जाता है साथ ही जीवन में सुख- समृद्धि आरोग्य व सौभाग्य बना रहता है आज के दिन ब्राह्मण को यथा सामथ्र्य दक्षिणा के साथ दान करके लाभ उठाना चाहिए ।

पौराणिक मान्यता :
योगिनी एकादशी के व्रत से कुष्ठ रोग के साथ अन्य व्याधियां भी समाप्त हो जाती है साथ में पीपल के वृक्ष को जाने अनजाने में काटे जाने पर जो दोष लगता है वह भी समाप्त हो जाता है। प्राचीन धार्मिक मान्यता के मुताबिक कुबेर के कोप (श्राप) से हेम माली को कुष्ठ रोग हो गया था । महामुनि मार्कण्डेय जी के आदेशानुसार हेम मालि योगिनी एकादशी का व्रत कर भगवान पुण्डरीकाक्ष, भगवान विष्णु की पूजा अर्चना की धार्मिक अनुष्ठान के साथ संपूर्ण दिन भी उपवास रखा तथा रात्रि जागरण किया इसके फलस्वरूप हेमा माली का कुष्ठ रोग समाप्त हो गया तभी से योगिनी एकादशी के व्रत की मान्यता चली आ रही हैं ।

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