दोपहिया वालों के लिए एक्सप्रेस वे क्यों नहीं ?

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सड़क एक लोकतांत्रिक जगह होती है। सरकार जब सड़क बनाती है तब पता चलता है कि वह अपने समाज के सभी वर्गों के बारे में किस तरह से सोचती है? पिछले दो दशकों में देश में एसप्रेस वे का जाल बिछा है। तेज रफ्तार की सड़क टीवी लास और कार लास की पसंद बनी है। एक ही मंजि़ल पर पहुंचने के लिए कार वालों के लिए तेज़ रफ्तार और कम समय के रास्ते हैं। बाइक वालों के लिए अलग रास्ते हैं जो ज्यादा समय लगाकर ज्यादा दूरी तय करते हैं। ट्रैटर वालों की तो रोज़ की यह लड़ाई हो गई है। असर दिल्ली को कार वालों की नजऱ से देखा जाता है लेकिन इस महानगर में बोलबाला बाइकर्स का है। 70 लाख से अधिक बाइक यहां पंजीकृत हैं। दिल्ली की सड़कों पर कार और बाइक की रफ्तार बहुत अधिक नहीं है इसलिए यहां की सड़कों पर कार और बाइक के हिसाब से अलग नहीं किया गया है और न करना संभव है। इसी तरह लाखों की संख्या में लोग गुरुग्राम एसप्रेस वे और दिल्ली- मेरठ एसप्रेस वे के किनारे बसे इलाकों से बाइक से दिल्ली आते जाते होंगे। बिल्कुल ठीक बात है कि अगर एक्सप्रेस वे पर बाइकर्स चलेंगे तो ज्यादा दुर्घटनाएं होंगी और उनकी ही मौत होगी लेकिन क्या देश के करोड़ों बाइकर्स अर्थव्यवस्था में कुछ भी योगदान नहीं करते? राष्ट्रीय सड़क प्राधिकरण के हिसाब से सर्विस लेन ज़रूरी है लेकिन वहां भी गाडिय़ां घुस जाती हैं।

तब तो कार वालों को फाइन नहीं किया जाता। उनकी कारें सीज़ नहीं होती। लेकिन अगर वो बाइकर्स है, आटो वाला है तो उसकी गाड़ी सीज़ हो जाती है। अगर कार वालों के लिए एसप्रेस वे बन रहा है तो फिर करोड़ों बाइकर्स के लिए या बन रहा है? क्या ये बाइकर्स भारत माता की जय नहीं करते हैं? बाइकर्स भी तो ख़ुशी-खुशी 100 रुपये लीटर पेट्रोल भरा रहे हैं और थैयू मोदी जी बोलते हैं। वे भी हर लीटर पेट्रोल पर इंफ्रां सेस देते हैं लेकिन एसप्रेस वे बनेगा केवल कार वालों के लिए. क्यों? दिल्ली जैसे महानगर में प्रो दिनेश मोहन और सुनीता नारायण जैसे शहरियों ने साइकिल के लेन की लड़ाई लड़ी। कहीं बनी मगर ज़्यादातर नहीं बनी। साइकिल वालों को मरने के लिए छोड़ दिया गया। वही मंत्री साइकिल चलाकर आम आदमी भी बन जाते हैं। बीजेपी के कई मंत्री तो साइकिल चलाकर संसद आते थे चाहे अर्जुन राम मेघवाल हो क्या फिर एक समय पर सड़क व परिवहन राज्यमंत्री रह चुके मनसुख मंडाविया। अनुराग ठाकुर और किरेन रिजिजू जैसे मंत्री भी साइकिल चलाते हुए देखे जाते हैं। मनसुख मंडाविया अगर ट्वीट से ही बता सकें तो बता दें कि मंत्री रहते साइकिल लेन के लिए उन्होंने या किया है? वैसे अब वे स्वास्थ्य मंत्री हो चुके हैं। साइकिल लेन बनाने की बहस अब खत्म हो चुकी है।

यूपी में अखिलेश यादव ने कई शहरों में साइकिल लेन बनाई लेकिन जब मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ आए तो उन्होंने तोडऩे के आदेश दे दिए। शहर की सड़कों से साइकिल चालकों को गायब कर दिया गया है। उनकी जान की कोई चिन्ता नहीं है। अब ठीक यही बाइकर्स के साथ होने जा रहा है बल्कि हो रहा है। ऐसा न हो कि एक दिन छोटी कारों को एसप्रेस वे से उतार दिया जाए और कहा जाए कि केवल एस यू वी चलेगी। 2019 में एसटर्डम में ग्रीन पार्टी जीत कर आई तो उनकी सरकार ने पार्किंग महंगी कर दी। लेकिन भारत में हर काम कार वालों के लिए होता है। हमारा एक और सवाल है। क्या एसप्रेस वे बनाते समय उस इलाके में गांव- गांव में बताया जाता है कि आपकी ज़मीन ली जाएगी लेकिन आपकी बैलगाड़ी इस एसप्रेस वे पर नहीं चलेगी। ट्रैटर नहीं चलेगा और बाइक नहीं चलेगी। साफ- साफ बताना चाहिए। एसप्रेस वे ज़रूरी है लेकिन क्या यह भी ज़रूरी है कि उसके नाम पर कार के अलावा बाकी वाहन चालकों का रास्ता बंद कर दिया जाए। उनके लिए अलग से लेन न बनाई जाए? दिल्ली- मेरठ हाईवे का यह दिल्ली का हिस्सा है अक्षरधाम का। यहां आप बाइकर्स को चलते देख सकते हैं. आप यह भी देख रहे हैं कि इस हाईवे पर सीमेंट की ऊंची ऊंची दीवारें बनी हैं जो रास्तों को एक दूसरे से अलग करती हैं।

यानी एक्सेस देती हैं कि मयूर विहार के लोग इस एक्सप्रेस वे से कैसे अपने इलाके की तरफ जाएंगे और पटपडग़ंज के लोग कैसे जाएंगे? एसप्रेस-वे के दोनों तरफ के मोहल्लों को जोडऩे के लिए हाईवे के नीचे अंडर पास बनाए गए हैं। अब यही हाईवे जब गाज़ीपुर से आगे बढ़ती है तब इसी पर बाइकर्स के चलने की अनुमति नहीं दी जा रही है। आज अर्थव्यवस्था का बड़ा हिस्सा इन बाइकर्स की पीठ पर दौड़ रहा है। गिग इकानमी में लाखों बाइकर्स आपके घर सामान पहुंचा रहे हैं और उन्हीं के लिए ये हाइवे बंद कर दिया गया है। एक ही हाईवे है। आधे हिस्से पर बाइकर्स चल सकते हैं और आधे हिस्से पर बाइकर्स नहीं चल सकते हैं। दिल्ली वाले हिस्से में अधिकतम रफ्तार 70 किमी प्रति घंटा है। दिल्ली के बाद मेरठ पहुंचने के लिए 100 किमी प्रति घंटा है। लोकसभा चुनाव से पहले प्रधानमंत्री मोदी दिल्लीवाले हिस्से का उदघाटन करते हैं। ये और बात है कि इस उदघाटन के तीन साल बाद दिल्ली- मेरठ एसप्रेस वे चालू होता है लेकिन छोटे से बने हिस्से का भी उदघाटन किया जा सकता है। अगर टाइम हो तो एक सड़क के हर चरण का उदघाटन किया जा सकता है। प्रधानमंत्री मोदी कहते हैं कि इंफ्रास्ट्रटर अमीर और गऱीब में भेदभाव नहीं करता है। प्रधानमंत्री कहते हैं कि इन्फ्रास्ट्रक्चर जात-पात, पंथ, सप्रदाय, ऊँच-नीच, अमीर-गरीब, ये किसी में भेदभाव नहीं करता है।

इससे सबके लिये बराबरी के अवसर पैदा होते हैं। किसी को भी सुन कर लगेगा कि जो एसप्रेस वे बन रहा है सबके लिए ही है। वे कहीं नहीं कहते हैं कि इस एसप्रेस वे पर केवल कारें चलेंगी। दोपहिया वाहन वाले नहीं चलेंगे। उन्हें मोदीनगर होकर मेरठ जाना होगा। जब किसी इलाके में सड़क बनती है तो उसके भूगोल और आबादी के व्यवहार का कितना अध्ययन होता है, जनता के पैसे से जब सरकार सड़क बनाती है तो जनता के ही बड़े हिस्से को उससे उतार देती है लेकिन अपने भाषण में कहेगी कि सबके लिए विकास आ रहा है। इस एसप्रेस वे के लिए ज़मीन जिन किसानों ने दी उनके ट्रैटर या कम स्पीड की गाडिय़ों के लिए एक लेन आराम से बन सकती थी लेकिन उन्हीं को उससे उतार दिया जाता है। बहुत साल पहले हमने मेरठ और दिल्ली के बीच गढ़ गंगा में लगने वाले मेले पर एक रिपोर्ट की थी। यह वही रास्ता है जो इन दिनों एसप्रेस वे हो गया है। इस रास्ते पर बुग्गियों की कतारें चल रही हैं। आज भी इस इलाके लोग बुग्गियां रखते हैं। भैंस पालते हैं और बुग्गियों से ही गंढ़ गंगा के मेले में जाते हैं। बुग्गी और ट्रैटर के बिना इस इलाके की कल्पना नहीं की जा सकती है। यही नहीं यहा के लोगों ने जुगाड़ नाम की गाडिय़ां बनाई हैं। जो इलाके की पहचान है। आठ लेन के एसप्रेस वे में एक लेन ऐसी गाडियों के लिए हो सकता था।

नहीं तो जब एसप्रेस वे बने और इसके लिए ज़मीन का अधिग्रहण हो तो किसानों को बताया जाए कि इस सड़क पर आप ट्रैटर, बैलगाड़ी और बाइक से नहीं चल सकते। इसके किनारे ढाबे नहीं खोल सकेंगे। दशकों से आपने देखा सड़कों के किनारे ढाबे अर्थव्यवस्था में अलग गति पैदा करते हैं लेकिन अब ढाबे वालों पर कार्रवाई होगी। उन्हें सड़क से अलग कर अवैध घोषित किया जा रहा है जो दशकों स्थानीय नहीं देश भर में अपने ब्रांड के लिए मशहूर होते रहे हैं। पश्चिम यूपी का इलाका खेती बाड़ी का इलाका है। यहां जिनके पास कार है उनके पास ट्रैटर भी है लेकिन वही आदमी जो कार से जाएगा अलग सड़क होगी। वही आदमी जब ट्रैटर चलाएगा तो अलग सड़क लेनी होगी।

इन्हीं सबके कारण आए दिन देश के अलग अलग हिस्सों में एसप्रेस वो लेकर टकराव होता रहता है। टोल को लेकर झगड़े होते रहते हैं। एक सड़क वहां पहुंच कर वहीं के लोगों को कैसे विस्थापित कर देती है? बिना रास्ता के बना देती है। करोड़ों बाइकर्स हैं इस देश में। सड़क उनके लिए भी बननी चाहिए। अगर कार वालों के लिए एसप्रेस वे बन सकती है तो उनके लिए यों नहीं?यह समस्या आज हास्यास्पद इसलिए हुई कि सरकारों ने पब्लिक ट्रांसपोर्ट को खत्म कर दिया। अब गाडिय़ां इतनी हो गई हैं कि बड़ी गाड़ी वालों के लिए अलग सड़क बन रही है। सड़क बने लेकिन उसे समावेशी होनी चाहिए। हम सिर्फ सड़क देखने लगे हैं लोग नहीं। आज कल शहर के एक हिस्से को देखने लायक बनाने पर ज़ोर दिया जा रहा है। लोगों को नहीं देखा गया।

रवीश कुमार
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं ये उनके निजी विचार हैं)

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