राहुल का बंगाल प्लान क्या है ?

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कांग्रेस के स्टार प्रचारक राहुल गांधी का पश्चिम बंगाल को लेकर क्या प्लान है? कांग्रेस के नेता भी इस बात को नहीं समझ पा रहे हैं। पूरे देश की नजर बंगाल पर है। वैसे तो अप्रैल-मई में पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं पर देश की दिलचस्पी सिर्फ बंगाल चुनाव में है। ममता बनर्जी अपनी सरकार बचा पाएंगी या भाजपा कमल खिलाने में कामयाब होगी! भाजपा के नेता जैसी मेहनत कर रहे हैं उससे बंगाल से बाहर पूरे देश में यह धारणा बन रही है कि भाजपा ने ममता बनर्जी को घेर दिया है और इस बार भाजपा के पास अपनी सरकार बनाने का रियल चांस है। हालांकि बंगाल में जमीनी स्तर पर चर्चा दूसरी है। परंतु बंगाल और उससे बाहर देश के दूसरे हिस्सों में भी यह धारणा है कि कांग्रेस का नुकसान होगा। लेफ्ट मोर्चे का तो पहले ही नुकसान हो चुका है। पिछली बार समूचे लेफ्ट मोर्चा को 30 सीटें मिली थीं। कांग्रेस फिर भी 44 सीट जीतने में कामयाब हो गई थी। यह अलग बात है कि कांग्रेस अपने विधायकों को पार्टी छोड़ कर जाने से नहीं रोक सकी। इस बार फिर पिछली बार की तरह कांग्रेस ने सीपीएम के नेतृत्व वाले लेफ्ट मोर्चा से तालमेल किया है और माना जा रहा है कि पिछली बार की तरह ही इस बार भी कांग्रेस 90 से एक सौ के बीच सीटों पर चुनाव लड़ेगी और बाकी दो सौ सीटों पर लेफ्ट मोर्चा लड़ेगा।

पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष अधीर रंजन चौधरी बड़ी मेहनत कर रहे हैं और वे बार-बार यह दावा कर रहे हैं कि राज्य में चुनाव भाजपा बनाम तृणमूल कांग्रेस नहीं है, बल्कि त्रिकोणात्मक है। उनके इस दावे के बावजूद राहुल गांधी अभी तक प्रचार के लिए पश्चिम बंगाल नहीं गए हैं। अगले कुछ दिनों में चुनावों की घोषणा होनी है और उससे पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दो बार बंगाल का दौरा कर चुके हैं और अमित शाह व जेपी नड्डा के चुनावी दौरे की गिनती नहीं है। प्रदेश में भाजपा की परिवर्तन यात्रा चल रही है तो दूसरी ओर तृणमूल कांग्रेस की भी सभाएं और रैलियां हो रही हैं। कोई दो महीने पहले कांग्रेस के प्रभारी जितिन प्रसाद ने कहा था कि जनवरी के अंत तक राहुल गांधी की रैली होगी। लेकिन फरवरी का अंत आ गया और राहुल के दौरे का कार्यक्रम नहीं बना। वे दो बार तमिलनाडु का दौरा कर आए, एक बार असम और एक बार पुड्डुचेरी का भी दौरा कर आए और केरल से वे खुद सांसद हैं तो वहां कई बार दौरे कर चुके। लेकिन अभी तक एक बार भी बंगाल नहीं गए हैं। कांग्रेस को अपना प्रदर्शन सुधारने की बजाय भाजपा को रोकने के प्रयास पर ज्यादा ध्यान देना चाहिए। कांग्रेस और लेट में एक राय नहीं: पश्चिम बंगाल की रणनीति को लेकर कांग्रेस और वामपंथी पार्टियों के बीच एक राय नहीं है।

जानकार सूत्रों के मुताबिक कांग्रेस की प्राथमिकता किसी तरह से भाजपा को रोकने की है तो लेफ्ट पार्टियों की प्राथमिकता किसी तरह से ममता बनर्जी को हराने की है। दोनों इस हिसाब से अपनी राजनीति कर रहे हैं। कहा जा रहा है कि राहुल गांधी को पता चल गया है कि पश्चिम बंगाल में वामपंथी पार्टियों के कार्यकर्ता अपनी जीत से ज्यादा ममता की हार के लिए काम कर रहे हैं और इस वजह से कई जगहों से तो खबर यह मिली है कि लेफ्ट के कार्यकर्ता भाजपा की मदद कर रहे हैं। कहा जा रहा है कि राहुल गांधी इसी वजह से अपने कदम पीछे खींच रहे हैं। हालांकि उनकी पार्टी लेफ्ट के साथ मिल कर चुनाव लड़ रही है और प्रदेश अध्यक्ष अधीर रंजन चौधरी भी ममता की हार सुनिश्चित करने पर ज्यादा ध्यान दे रहे हैं। वामपंथी पार्टियों को भाजपा की जीत में अपना फायदा दिख रहा है। उनको लग रहा है कि हारने के बाद तृणमूल कांग्रेस का अस्तित्व नहीं रह जाएगा। पार्टी बिखर जाएगी। उसके नेता भाजपा, कांग्रेस, और लेफ्ट में जाएंगे। दूसरे, भाजपा की ध्रुवीकरण वाली राजनीति के जवाब में लेफ्ट पार्टी वापस सेकुलर वोट को एकजुट करने में ममता के मुकाबले ज्यादा सक्षम है। वामपंथी नेताओं का मानना है कि भाजपा की जीत के बाद लेफ्ट के फिर से अपना पुराना आधार हासिल करने के वास्तविक मौके बनेंगे। तीसरे, लेफ्ट पार्टियों की यह भी सोच है कि बाहरी और भीतरी का जो हल्ला तृणमूल कांग्रेस ने बनाया है, उस अभियान को लेफ्ट पार्टियां आगे बढ़ाएंगी। अगर भाजपा जीत कर सरकार में आती है तो पांच साल में लेफ्ट को अपना पुराना आधार हासिल कर लेने का भरोसा है।

हरिशंकर व्यास
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं ये उनके निजी विचार हैं)

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