उप्र में कोरोना का प्रकोप अभी जारी है। प्रदेश में अभी भी कोरोना के एक्टिव मामलों की संख्या 6650 है। जबकि 15506 संक्रमित व्यक्ति उपचारित होकर ठीक हो चुके है। कोरोना संक्रमण के बढ़ते मामलों के बीच लोग खुलेआम लापरवाही बरत रहे हैं। लापरवाही नियमों का पालन कराने वाले व नियमों का पालन करने वाले दोनों की तरफ से हो रहा है। संक्रमण से बचाने के लिए आवश्यक नियमों के पालन की धज्जियां उडाई जा रही हैं। लोग बिना मास्क लगाये शहरों के प्रमुख बाजारों में घूम रहे हैं। दुकानों पर दुकानदार व कर्मचारी भी बिना मास्क के ग्राहकों को सामान विक्रय करते देखे जा रहे हैं। ग्राहक भी बिना मास्क लगाये बाजारों में खरीददारी करते देखे जा सकते हैं। खाने-पीने की दुकानों में एक दूसरे के करीब बैठकर या खड़े होकर लोग खाद्य सामग्री का सेवन कर रहे हैं। शहरों में चौराहों पर लगने वाले दिहाड़ी श्रमिकों के अड्डों पर भी न तो सोशल डिस्टेंसिंग का पालन हो रहा है और न ही श्रमिक मास्क लगाये दिखते है। और तो और सरकारी दफ्तरों में लापरवाही की वजह से संक्रमण फैला।
मुख्यमंत्री हेल्पलाइन, 112 आदि के दतरों में कई कर्मचारी संक्रमित हो गये। आटो, ई-रिक्शा में धड़ल्ले से ओवरलोडिंग की जा रही है। यहां तककि दो पहिया गाडिय़ों पर तीन लोग सवारी करके फर्राटा भरते दिखाई दे जाते हैं। जो बाजार तंग गलियों में हैं वहां भी भीड़ देखी जा सकती है। यहां तो शारीरिक दूरी की बात सोचना ही बेमानी है। व्यापारिक संगठन भी अपने नैतिक दायित्व निभाने से पीछे हट रहे हैं। जनजीवन एकदम आम दिनों की तरह शहरों के बाजारों में दिखाई दे रहा है। मजबूरी के लोग आटोरिक्शा, टैम्पो, ई-रिक्शा मे सवारी कर रहे हैं। ओवरलोडिंग करने की अपनी पुरानी आदत को ई-रिक्शा चालक, टैम्पो व आटो वालों ने शुरू कर दिया है। परन्तु लोगो को उसमें गन्तव्य स्थान पर जाने के लिए बैठना पड़ रहा है। इससे नजदीकी सम्पर्क होने के कारण संक्रमण बढऩे का खतरा बढ़ जाता है। उधर सभी निजी व सरकारी कार्यालयों के खुलने के कारण कार्यालयों व ऑफिस टाइम पर सड़कों पर भीड उमड़ जाती है। चौराहों पर लालबत्ती होने पर भीड़ के कारण सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करना मुश्किल हो जाता है।
सरकार ने सभी सरकारी दफ्तरों को खोलने का निर्णय लिया है। इससे सड़कों पर भीड़ बढ़ रही है। जिन दफ्तरों के जरिए जरूरी काम नहीं होना है उनके कर्मचारियों को रोटेशन के हिसाब से बुलाना चाहिये। अभी सरकार ने पहली जुलाई से अध्यापकों को स्कूल में आने का आदेश दिया जबकि शैक्षणिक कार्य स्थगित हैं। अनलॉक-2 में भी स्कूल कॉलेज 31 जुलाई तक बन्द रखने का निर्णय लिया गया है। प्रदेश सरकार के शिक्षकों को स्कूल बुलाने से कई लाख अध्यापकों का आवागमन शुरू होगा। इससे सड़कों पर भीड़ बढ़ेगी। बहुत से अध्यापक अन्य जिलों से यात्रा करके अपने स्कूल जाते हैं। सार्वजनिक परिवहन पर भी भीड़ का दबाव बढ़ेगा जिसके चलते दूरदराज इलाके में भी संक्रमण फैलने का खतरा हो सकता है। शिक्षण संगठनों ने भी अध्यापकों को विद्यालय बुलाये जाने के निर्णय का विरोध किया है। शिक्षक संगठनों का कहना है कि कंटेनमेन्ट जोन बढते जा रहे हैं। कई जिलों में कोविड का काफी संक्रमण है। विगत दिनों कई संक्रमित अध्यापक बीआरसी पर विद्यालय के कार्य से उपस्थित हुए। इससे वहां उपस्थित लोगों को संक्रमण की संभावना के घेरे में ले लिया। सरकार को स्थिति का आकलन करके सड़कों पर अनावश्यक भीड़ कम की जानी चाहिये। सरकारी कार्यालयों की कार्यपद्धति ऐसी होनी चाहिये कि लोगों को कार्यालय न आना पड़े। डाकघरों में आधार ठीक कराने, बैंकों में पैसा निकालने की लाइन लग रही है। अफसर लोग संक्रमण से बचने के नियमों का पालन नहीं कर रहे हैं। पुलिस की सक्रियता भी नियमपालन कराने को लेकर नहीं दिखाई दे रही है।