साध्वी के फिर विवादित बोल

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लोकसभा में बुधवार को बीजेपी सांसद प्रज्ञा ठाकुर नाथूराम गोडसे की हिमायत करती दिखी। इस पर तीखी प्रतिक्रिया हर तरफ से हुई। बाद में उनके वक्तव्य को कार्यवाही से हटा दिया गया। लेकिन सदन में शायद पहली बार किसी सांसद की तरफ से ऐसा वक्तव्य सामने आया जिस पर तीखा विरोध होना स्वाभाविक ही था और ऐसा हुआ भी। इससे एक बार फिर बीजेपी बैक फुट पर है। कांग्रेस समेत पूरा विपक्ष इस मसले पर सत्तारूढ़ दल को बगशने के मूड में नहीं है। यह यकीनन दुर्भाग्यपूर्ण है, एक तरफ देश राष्ट्रपिता की 150वीं जयंती मना रहा है और बीजेपी सांसद गांधी के हत्यारे का महिमामंडन कर रही है। वैसे प्रज्ञा ठाकुर ने इससे पहले लोक सभा चुनाव के दौरान भी कहा था कि गोडसे एक देशभक्त थे, हैं और रहेंगे। इस पर विवाद के बाद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी गहरी नाराजगी जताते हुए कहा था कि मैं उन्हें कभी मन से माफ नहीं कर पाऊंगा। उसी तरह की बात एक बार फिर उन्होंने लोक सभा में कहीं, जिस पर सियासी हंगामा बरपा हुआ है।

कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी की नजर को तो बीजेपी का असली चेहरा वही है, जो गोडसे का महिमामंडन करता है। बढ़ते विवाद के बीच अब प्रज्ञा ठाकुर को रक्षा संसदीय समिति से बाहर का रास्ता दिखा गया है। वैसे उनको समिति में शामिल किए जाने पर भी सदन में काफी हंगामा हुआ था कि जमानत पर चल रहे किसी शख्स को महत्वपूर्ण समिति का सदस्य क्यों बनाया गया है। तब बात आई-गई हो गई थी। लेकिन सदन में इस आशय का वक्तव्य आने के बाद से बीजेपी पर प्रज्ञा ठाकुरा के खिलाफ कठोर कार्रवाई करने का दबाव बढ़ गया है। जाहिर है, सिर्फ संसदीय समिति से हटाने भर से बात नहीं बनने वाली। पार्टी को उनेस जवाब-तलब करने के बाद कठोर कार्रवाई करनी होगी, जिससे यह संदेश जाए कि वाकई कार्रवाई हुई है। यह सवाल इसलिए कि जब पहली बार प्रज्ञा ठाकुर ने गोडसे पर बयान दिया था तब पार्टी ने उन्हें कारण बताओ नोटिस दिया था और शीघ्र कार्रवाई का भरोसा दिलाया था। लेकिन इस मामले के छह महीने बाद भी कोई कार्रवाई नहीं हुई। उल्टे उन्हें रक्षा संसदीय समिति का सदस्य बना दिया गया।

इसलिए अब पार्टी से सवाल ज्यादा तीखा है। अब तो यह भी कहा जा रहा है कि यदि तब ही उनके प्रति कोई कठोर कार्रवाई हो गई होती तो आज पार्टी को ये दिन ना देखने पड़ते। आजाद भारत के प्रधान शिल्पी के रूप में महात्मा गांधी को देखा और समझा जाता है। यह जरूरी नहीं कि उनके विचारों-सिद्धांतों से किसी की सौ फीसदी सहमति हो लेकिन आधुनिक भारत के संदर्भ में उनकी प्रासंगिकता को खारिज नहीं किया जा सकता। यही वजह है बीजेपी भी सत्तारूढ़ होने के बाद बापू के विचारों को ही आगे बढ़ाने का काम कर रही हैं प्रधानमंत्री पद की कमान संभालने के बाद नरेन्द्र मोदी ने पहला कम कोई किया तो वो स्वच्छता अभियान था और इसके मूल में बापू के विचार थे। ऐसे वक्त में जब देश में और दुनिया के तमाम हिस्सों में भी महात्मा गांधी की 150वीं जयंती को अविस्मरणीय ढंग से मनाने की तैयारी हर तरफ है तब किसी सांसद के अप्रत्याशित बयान अप्रियता की वजह बन जाते हैं, जिससे बचा जाना चाहिए।

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