विपक्ष का हल्ला बोल

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निर्भया के बाद दिशा के मामले ने एक बार फिर स्त्री सुरक्षा के सवाल को केन्द्रीय विमर्श बना दिया। जनाक्रोश चरम पर था ही, हैदराबाद में दरिंदों के एनकाउंटर पर लोगों ने जिस तहर खुशी का इजहार किया, उससे भी कई और सवाल उठ खड़े हुए। इसी अवधि में उन्नाव गैंगरेप पीडि़ता की जलाकर की गयी हत्या ने लोगों ने स्तब्ध कर दिया और यह सवाल भी अहम हो गया कि क्या यूपी में जंगलराज हो गया है? यह सवाल इसलिए कि योगी सरकार का दावा है कि राज्य में संगठित अपराधों पर लगाम लगी है और दूसरी तरह के अपराधों में भी कमी आयी है। इस दावे के बरबक्स उन्नाव में हुई हाल की घटना ने योगी सरकार को निरुत्तर कर दिया है। इस मसले को विपक्ष ने शनिवार को जिस तरह पूरी गंभीरता के साथ उठाया, उससे योगी सरकार के इकबाल पर जरूर असर पड़ा है। ठीक है, बाद में पीडि़त परिवार को 25 लाख का मुआवजा, आवास देने का ऐलान हुआ। पर विपक्ष इस मसले में आरोपियों को राजनीतिक संरक्षण दिये जाने का आरोप लगा रहा है, वह गंभीर बात है। सपा, बसपा और कांग्रेस को इस प्रक रण में तेजी दिखाने से सियासी बढ़त हासिल हुई है।

मायावती का राज्यपाल से मिलकर उन्नाव मामले में हस्तक्षेप करने की मांग करना और अखिलेश यादव का इसी मसले पर विधानसभा के सामने धरने पर बैठना योगी सरकार पर भारी पड़ गया। शायद सरकार में बैठे लोगों को यह उम्मीद ना रही हो कि पूरा विपक्ष लामबंद होकर सरकार को कटघरे में करने की कोशिश करेगा। इस पूरे मामले में कांग्रेस ने तो आक्रामकता भी दिखाई, सडक़ पर उतरे और लाठियां भी खाई। पार्टी महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा ने पीडि़त परिवार के घर पहुंचकर मौके की स्थिति को जाना और सरकार को स्त्री सुरक्षा के सवालों के साथ घेरा भी। यह सही है कि देशभर में स्त्री सुरक्षा की तस्वीर उत्साहजनक नहीं है। सभी राज्यों की कमोवेश एक-सी स्थिति है। पर यूपी को लेकर विपक्ष की आक्रामकता इसलिए भी है कि यहां और केन्द्र में बीजेपी की सरकार है। बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ का नारा इस सरकार का मूल मंत्र है। पर यूपी में ही आये दिन दुष्कर्म के मामले सामने आते हैं, जिसमें सबसे बड़ी शिकायत पुलिस के रवैये को लेकर होती है।

पहले तो ऐसे मामलों में लीपापोती की कोशिश और यदि किसी तरह से मामला दर्ज भी हो गया तो उस पर पुलिस आगे कार्रवाई करती नहीं है। स्थिति यह होती है कि शोहदों का हौसला बढ़ जाता है। ताजा मामला इसी राज्य का है, दो सगी बहनों ने तंग आकर एसपी के सामने कह दिया कि क्या वे खुद को आग लगा लें तब पुलिस चेतेगी? तकरीबन हर जिले में पुलिस से लोगों को यही शिकायत है। यह बात और कि जब इसको लेकर सवाल उठता है तब पुलिस विभाग का मुखिया आंकड़ों के जरिये सुनहरी तस्वीर पेश करने की कोशिश करता है। यह मसला कि तना गंभीर है, इसको आंकड़ों से समझने और समझाने से ज्यादा जरूरत इस बात की है कि पुलिस तंत्र संवेदनशीलता बरते। ऐसी शिकायतों को अनसुनी ना करे, उलटे कार्रवाई करे। साथ ही स्थानीय स्तर पर राजनीतिक संरक्षण देने की बढ़ती प्रवृत्ति पर भी रोक लगे तो शिकायतें अपने आप कम होती जाएंगी।

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