लॉकडाउन 2.0 के बाद क्या ?

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अगर इस बात को मान लिया जाए कि लॉकडाउन कोरोना वायरस से लड़ने का रामबाण इलाज है और भारत सरकार ने समय रहते लॉकडाउन लागू करके कोरोना का प्रसार रोक दिया, जिसकी कथित तौर पर दुनिया भर में तारीफ हो रही है तब भी यह सवाल उठेगा कि उसके बाद क्या? लॉकडाउन के पहले चरण को सफल मान लें और यह भी मान लें कि लॉकडाउन 2.0 जब तीन मई को खत्म होगा तो भारत में कोरोना का दम टूटा हुआ होगा और देश इसके खिलाफ जंग जीत चुका होगा, तब भी यह पूछना लाजिमी है कि उसके बाद क्या होगा? क्या उसके बाद सब कुछ सामान्य हो जाएगा? आम लोगों का जीवन पूरी तरह से पटरी पर आ जाएगा? अर्थव्यवस्था फिर से संभल कर आगे बढ़ने लगेगी? जिन लोगों के स्व-रोजगार खत्म हुए हैं, जिन लोगों की नौकरियां गई हैं, जिन कारोबारियों का बिजनेस ठप्प हुआ है, जिन फैक्टरियों में उत्पादन बंद हुआ है या कम हुआ है या वे सब फिर से पहले की तरह चलने लगेंगी? कम से कम अभी तो ऐसा नहीं लग रहा है कि सरकार ने लॉकडाउन 2.0 की घोषणा करते हुए उसके बारे में विचार किया है क्योंकि कोई आर्थिक प्लान फिलहाल नहीं दिख रहा है।

राज्य सरकारें जरूर इसे लेकर चिंतित हैं और अपने यहां आर्थिक गतिविधियां शुरू करना चाहती है। केंद्र सरकार को भी इसकी चिंता होगी पर अभी तक उसके किसी कदम से जाहिर नहीं हुआ है कि वह क्या करने जा रही है। सोचें, दुनिया में कोरोना वायरस के आए हुए पांच महीने हो गए और भारत में भी इसके प्रवेश के ढाई महीने हो गए हैं। फिर भी इसके बाद का कोई आर्थिक प्लान नहीं दिख रहा है। दुनिया हमारी चिंता में है पर हम आश्वस्त हैं कि ‘सब चंगा सी’। दुनिया कैसे हमारी चिंता में है, इसके लिए दुनिया भर की संस्थाओं की हाल की टिप्पणियों को देखने की जरूरत है। सबसे पहले विश्व बैंक ने भारत की आर्थिकी को लेकर चिंता जताई। विश्व बैंक ने कहा कि भारत की विकास दर नए वित्त वर्ष 1.5 से लेकर 2.8 फीसदी के बीच रहेगी। पिछले वित्त वर्ष का वास्तविक आंकड़ा अभी आया नहीं है पर यह तय है कि वह पांच फीसदी के आसपास रहने वाला है। यानी अगर भारत की अर्थव्यवस्था तीन फीसदी से नीचे आती है तो यह कंगाली में आटा गीला होने जैसा होगा। बहरहाल, अब विश्व स्वास्थ्य संगठन, आईएमएफ ने कहा है कि भारत की अर्थव्यवस्था 1.9 फीसदी की दर से बढ़ेगी।

इससे भी चिंता की बात दुनिया की मशहूर वित्तीय एजेंसी बार्कलेज ने कही है। बार्कलेज ने कहा है कि भारत की विकास दर शून्य रह सकती है। यानी गाड़ी जहां है वहीं खड़ी रह सकती है। पहले बार्कलेज ने ढाई फीसदी की दर से अर्थव्यवस्था के बढ़ने का अनुमान जाहिर किया था। अब उसका अनुमान शून्य का है। एक दूसरी एजेंसी इकरा ने कहा है कि विकास दर निगेटिव भी हो सकती है। दुनिया की दूसरी एजेंसियों फिच, मूडीज, एसएंडपी आदि का आकलन भी अर्थव्यवस्था में बड़ी गिरावट का ही है। सोचें क्या भारत जैसा विकासशील देश शून्य या निगेटिव विकास दर की मार झेल सकता है? लोग कोरोना वायरस की मार तो जैसे-तैसे झेल लेंगे पर उसके बाद जो आर्थिक मार पड़ने वाली है उसके लिए कोई तैयार नहीं है। यहां मामला सिर्फ विकास दर घटने का नहीं है। अगर कोई आर्थिक मंदी होती, जैसे 2008 में थी और विकास दर गिर रही होती तो देश और इसके लोग इससे पार पा सकते थे। पर मुश्किल यह है कि एक तरफ जीडीपी नहीं बढ़ेगी और दूसरी ओर अपने लोगों को बचाए रखने के लिए देश की जीडीपी के दस फीसदी तक रकम सरकार को खर्च करनी होगी।

देश की जीडीपी के दस फीसदी का मतलब है 15 लाख करोड़ रुपए से ऊपर की रकम सरकार को खर्च करनी होगी। अभी तक तो सरकार इस भरोसे में है कि उसने 15-15 हजार करोड़ रुपए स्वास्थ्य सेवाओं के लिए दे दिए और एक लाख 70 हजार करोड़ रुपए का एक पैकेज घोषित कर दिया, जिसमें बड़ी होशियारी से पुरानी योजनाओं के लिए आवंटित पैसे को भी शामिल कर दिया है और जरूरी हुआ तो एक कोई और पैकेज घोषित कर देंगे, इस बीच कोरोना वायरस खत्म हो जाएगा। पर यह सरकार की सदिच्छा है। उसने जितने पैसे स्वास्थ्य सेवाओं के लिए दिया है या जितने पैसे का राहत पैकेज घोषित किया है वह ऊंट के मुंह में जीरा की तरह है। यह बात सरकार को जितनी जल्दी समझ में आ जाए उतना अच्छा है। वह जितनी जल्दी अपने मुगालतों में से बाहर निकल कर लॉकडाउन के बाद के हालात पर काम करना शुरू करे उतना अच्छा होगा।

लॉकडाउन के बाद के हालात का मतलब है कि सरकार अभी से लोगों को आर्थिक रूप से सक्षम बनाने का काम शुरू करे। उनके लिए पैसे का बंदोबस्त करे और साथ साथ कंपनियों के लिए भी राहत पैकेज की घोषणा करे। किसी तरह से फैक्टरियों की चिमनियों से धुआं निकलते रहना चाहिए, नहीं तो दो-चार महीने बाद जब देश कोरोना के संकट से बाहर निकलेगा तो एक बड़े संकट में फंसा हुआ होगा। आसमान से गिर कर खजूर में अटका हुआ होगा। करोड़ों लोग गरीबी के दुष्चक्र में होंगे। करोड़ों लोग बेरोजगार घूम रहे होंगे। जिस तरह सरकार के लिए यह जरूरी है कि वह कोरोना वायरस का प्रोजेक्शन बनवाए और समय रहते यह अनुमान लगाए कि भारत का पीक कब आएगा और कहां, कितने केसेज होंगे, उसी तरह आर्थिकी का प्रोजेक्शन बनवाना भी जरूरी है ताकि यह पता चले कि अर्थव्यवस्था को कितना बड़ा झटका लगने वाला है और उससे कैसे निपटा जाएगा।

अजीत दि्वेदी
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं ये उनके निजी विचार हैं)

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