रोजमर्रा की जिंदगी से बोरियत

0
146

अपनी नियमित गतिविधियों की फ़ेहरिस्त हर कोई बता सकता है – सीरियल देख लिए, वेब सीरीज़ देख लीं, पेपर पढ़ लिया, सोशल मीडिया छान लिया, फोन पर बेमतलब गुफ़्तगू कर ली, नेट सर्फिंग कर ली, सारा काम ख़त्म हो गया पर समझ में नहीं आ रहा कि यह ऊब मिटती क्यों नहीं? बोरियत को विदा करने से पहले, एक बार उसे समझ लें।

बोरियत क्यों?

जीवन में जब एकरसता आने लगती है तब हमें बोरियत महसूस होती है। मोबाइल व इंटरनेट ने कायापलट कर दी है। ज्ञान, संगीत, मनोरंजन से लेकर हर सुविधा हमारी पहुंच में होने के बावजूद बोरियत से परेशान हैं। वास्तव में, भटकता मन ऊब बढ़ाता है। यदि हम किसी साधन से संतुष्ट या ख़ुश नहीं हैं तो ये ढेर सारे विकल्प भी हमें भ्रमित करते हैं। जहां मनमाफ़िक काम न करना ऊब को बढ़ाता है वहीं ज़िंदगी का कोई स्पष्ट लक्ष्य न होना भी बोरियत अनुभव कराता है।

कोई भी ऊबना नहीं चाहता, लेकिन यह एक सामान्य भाव है। बोरियत हो रही है, ऐसा कहने या सोचने का सीधा मतलब यह है कि व्यक्ति अपनी वर्तमान स्थिति या काम से ख़ुश नहीं है। आज स्मार्ट फोन हर हाथ में है। सफ़र या किसी के इंतज़ार में जब भी हम अकेले होते हैं, ख़ुद-ब-ख़ुद हमारी उंगलियां मोबाइल पर स्वाइप करने लगती हैं। सोशल मीडिया पर आप कुछ नया देखने के लिए एक के बाद दूसरी और फिर अनगिनत पोस्ट देखते चले जाते हैं और अंत में उससे भी ऊबने लगते है। किसी वस्तु की अधिकता या आसान उपलब्धता बोरियत बढ़ाती है।

बोर होते बच्चे

लगातार घरों में रहने से बच्चे बोर हो गए हैं। बच्चों का विकास दोस्तों संग खेलने व स्कूल जाने से होता है। स्कूल जाना-आना, वहां का वातावरण, पढ़ाई, शिक्षकों से रूबरू पढ़ना, दोस्त, सहपाठी – ढेर सारे बदलाव और रोचक गतिविधियां चंद घंटों में होती रहती हैं, जिससे ऊब नहीं आ सकती। कोविड के कारण बच्चे इससे महरूम रहे। बच्चों के स्क्रीन टाइम पर शोध करने वाली टेरेसा बेल्टन कहती हैं कि आधुनिक संचार माध्यम बोरियत को दूर करने की जगह समस्या और बढ़ाते हैं। बच्चे उस विषय से जल्दी बोर हो जाते हैं, जो उन्हें पसंद नहीं या जिसमें वे कमज़ोर हैं क्योंकि इससे संघर्ष करने के लिए उनके पास कोई सीधी मदद नहीं है।

ऑनलाइन क्लासेस का क्रेज़ ख़त्म हो चला है और वह बच्चों को अब बोझ-सी लगने लगी है। ऑनलाइन क्लासेस व इंडोर गेम से ऊबे बच्चे नेट पर अनावश्यक सर्फिंग व पैसों से ऑनलाइन गेम खेलने लगे हैं। नेट का ऐसा बेजा प्रयोग उनमें चिड़चिड़ाहट के साथ हताशा (फ्रस्ट्रेशन) बढ़ा रहा है।

नए की तलाश

बोरियत अक्सर उनमें भी देखी जाती है जो निरंतर कुछ नया करने की तलाश में रहते हैं। कनाडा की यॉर्क यूनिवर्सिटी के मनोवैज्ञानिक जॉन ईस्टवुड कहते हैं, ‘यह वह अवस्था है जब आप कोई काम कर रहे होते हैं और आपको लगता है कि यह बेकार है।’ ऐसे लोगों के लिए कोरोना काल नई चुनौतियां लेकर आया है।

बोरियत का प्रभाव

मनोविज्ञान के अनुसार बोरियत से ये सीधे-सीधे जुड़े हैं- अकेलापन, क्रोध, दुःख और चिंता। लगातार बोर रहने वाले व्यक्ति ज़्यादा खाते हैं। मादक पदार्थों के सेवन सहित धूम्रपान तथा अपराध जैसे दुर्गुणों के बढ़ने की आशंका भी रहती है।
चंडीगढ़ की मनोवैज्ञानिक व बाल मनोपरामर्शदात्री अनिंदिता राय का कहना है कि कई बार ऐसा होता है कि जब हम बहुत ज़्यादा तनाव में होते हैं तो कामों को टालते रहते हैं। लगातार एक जैसा काम करने पर एक स्थिति यह आती है कि हम अपना काम कर ही नहीं पाते और इसके कारण अन्य कामों में मन नहीं लगता, तब ऊब होने लगती है। कहने का तात्पर्य यह है कि कई बार जो ऊब जैसा लगता है वह वास्तव में उस कार्य से बचने का बहाना होता है जिसे आप करना ही नहीं चाहते। ‘बोरडम-अ लाइवली हिस्ट्री’ के लेखक टूही पीटर कहते हैं, ‘बोरियत से उसी प्रकार की मानसिक थकान होती है जैसे निरंतर एकाग्रता

वाले कामों में होती है।’
कभी-कभी बोरियत होना स्वाभाविक है, लेकिन जब यह स्थायी मनोदशा बन जाए तो चिंताजनक है। बोरियत नकारात्मक विचारों की जड़ है। इससे व्यवहार में चिड़चिड़ापन आने लगता है। कार्यक्षमता और रिश्तों पर इसका नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। इसकी वजह से व्यक्ति डिप्रेशन में भी जा सकता है।

अच्छी है थोड़ी बोरियत

बोर होना अच्छा है… यह सच है। बोरियत या ऊब जाने का एक दूसरा अच्छा पहलू भी है। बोरियत इंसान को कुछ नया सोचने और सृजन के लिए प्रेरित करती है। ऊब हमें नए कामों को आज़माना और रचनात्मक होना सिखाती है। बोर होते ही अगर उससे निपटने के तरीक़ों के बारे में सोचने लगें, तो यह तो ख़ूबी ही हुई।

टेक्सास की शोधकर्ता हीदर लेंच कहती हैं कि बोरियत की मनोदशा हमें पुराने खांचों में पड़े रहने से रोकती है। इससे व्यक्ति की कल्पनाशक्ति और रचनात्मकता में वृद्धि होती है। हीदर का मानना है कि जब बोरियत अपरिहार्य हो तो इससे चिढ़ने के बजाय इसका आनंद उठाना चाहिए। मिसाल के तौर पर जब ट्रेन लेट हो जाए तो सहयात्रियों से बतियाएं।

कैसे हो बचाव

बोरियत असंतुष्टि से उपजी भावना है। इस पर अगर ध्यान केंद्रित करके, लक्ष्य पाने के प्रयास किए जाएं, तो सफलता निश्चित है। प्रसिद्ध अमेरिकी विचारक और लेखक डेल कारनेगी सुझाते हैं- ‘अगर तुम ज़िंदगी से ऊब चुके हो तो फिर ख़ुद को किसी ऐसे काम में झोंक दो जिसमें दिल से यक़ीन रखते हो, उसके लिए जियो, उसको पाने के लिए लड़ो। तब तुम वो ख़ुशी पा लोगे जो तुम्हें लगता था कि तुम्हें नहीं मिल सकेगी।’

उच्च पद पर आसीन, ट्रैकिंग के शौक़ीन और बातचीत करने में माहिर एक मित्र भरपूर समय व पैसा होने के बावजूद कई दिनों से अवसाद में थे। उनका यह अवसाद समय न कटने से उपजी बोरियत के कारण था। उन्हें सुझाव दिया, ‘कोई ऐसा काम जिसे आप बहुत ख़ुशी व दिल से करते थे, वह करना शुरू करें।’ तब उन्होंने अपनी डायरी में लिखे ट्रैकिंग के अनुभवों को ऑनलाइन स्टोरी सेशन में सुनाना प्रारंभ किया। आज अपने ट्रैवल पॉडकास्ट को ट्रेंड करते देख वे बहुत ख़ुश हैं। ऊब रहे हैं तो मन को अच्छे लगने वाले कामों को पहचानें। फ़ुर्सत के पलों में टीवी देखने के बजाय कोई अच्छी किताब पढ़ें, अपने दोस्तों से बातचीत करें, फूलों के पौधे लगाएं व गमलों को पेंट करें, इलस्ट्रेशन बुक में नए रंग भरें। घर की व्यवस्था व सजावट को बदलकर देखें। हर वो काम जो सुखद तब्दीली दिखाए, ऊब से बाहर निकलने में मदद करेगा। फूलों के पौधे भी इसीलिए सुझाए जाते हैं कि जब पौधे पर कलियां आती हैं, फूल खिलते हैं,

तो मन प्रसन्न होता है।
बोरियत से बचाव का एक अचूक तरीक़ा है कि कुछ नया सीखिए और स्वयं को चुनौती दीजिए। मददगार बनें, अनजान लोगों की सहायता करें। बच्चों व वृद्ध लोगों के साथ समय बिताने पर भी ख़ुशी मिलती है। कोई नई भाषा सीखें। आपका कोई भी छुपा हुआ हुनर है, जैसे- नए व्यंजन बनाना, फ़ोटोग्राफी करना, चित्रकारी करना या ग्राफिक डिज़ाइनिंग आदि, तो इंटरनेट और सोशल मीडिया पर इसे प्रोफ़ेशनल रूप में

आज़माइए।
कोई भी ऐसी गतिविधि, जिसमें व्यक्ति की शारीरिक या मानसिक ऊर्जा ख़र्च होती हो, वह बोरियत से बचाती है। ऊब की समस्या उपजने ही ना देने के लिए सहनशीलता की आदत विकसित करना बहुत ज़रूरी है। ख़ास तौर से बच्चों को प्रारंभ से ही धैर्यपूर्वक अपनी बारी का इंतज़ार करना और प्रतिकूल स्थितियों में शांत रहना सिखाना चाहिए।

सुनील अवसरकर
(लेखक हेल्पबास के ब्रैंड एम्बेसेडर हैं, ये उनके निजी विचार हैं)

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here