यूपी में दरिंदगी

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टप्पल कांड से देश शर्मिन्दा है। हालांकि अलीगढ़ में ढाई साल की मासूम से बर्बरता व हत्या के मामले में मुख्य आरोपी की पत्नी और छोटे भाई को भी पकड़ लिया गया है। इससे पहले दोषी पुलिस कर्मियों का निलंबन हो चुका है। मामले की तह तक पहुंचने के लिए स्पेशल इन्वेस्टीगेशन टीम (एसआईटी) भी गठित हो गई है। कानून अपना काम करेगा। लेकिन यह सिलसिला रह-रहकर यूं ही चलता रहे तो सरकारी मशीनरी पर सवाल उठेगा ही। आखिर कब तक हमारी बच्चियां असुरक्षित रहेंगी। ताजा मामला हमीरपुर का है जहां 5वीं की छात्रा को अगवा कर दरिंदों ने दुष्कर्म के बाद गला दबाकर हत्या कर दी। पिछले दिनों बरेली से भी इसी तरह की खबर आई थी। इस तरह की घटना के बाद पुलिस के आला अफसर हरकत में दिखाई देने लगते हैं और ताबड़तोड़ दबिश के बाद आरोपियों की गिफ्तारी भी होती है।

पर कुछ दिनों- महीनों बाद वैसी वैसी तेजी शायद नहीं रहती। इसीलिए आगे चलकर ऐसे मामले अपनी निर्णायक परिणति तक नहीं पहुंच पाते हैं। ऐसे मामलों में प्राय: प्रारंभ से ही आरोपियों की कोशिश होती है कि साक्ष्य सही ढंग से जुटाए न जा सकें, ताकि आगे चलकर फैसले को भी कमजोर किया जा सके। यही वजह होती है कि परिस्थितिजन्य साक्ष्य के अभाव में जज को मजबूरन कहना पड़ता है कि प्रमाण के अभाव में आरोप से मुक्त किया जाता है। अलीगढ़ में हैवानियत की शिकार हुई बच्ची के मामले में भी यही रवैया पुलिस मशीनरी कर रही है। सैंपल जुटाने के बाद भी दो दिन तक उसे जांच के लिए नहीं भेजा गया। मामला तूल पकडऩे पर विशेषज्ञों को जांच के लिए एकत्र साक्ष्य भेजे गए हैं। रिपोर्ट आने पर साफ हो जाएगा कि बच्ची संग दुष्कर्म हुआ था या नहीं। जिन मामलों पर चौतरफा आक्रोश उमड़ता है, उस पर जरूर सिस्टम सक्रिय और ईमानदार दिखता है। अन्यथा वैसे तो इस तरह के मामले सार्वजनिक होने ही नहीं दिए जाते। इससे इतर भी बहुत सी घटनाएं किन्हीं वजहों से चर्चा में नहीं आ पातीं।

इसके बावजूद ये चन्द घटनाएं ही सरकार, सिस्टम और समाज को शर्मसार करने के लिए पर्याप्त हैं। ऐसे मसलों पर सरकार और उसकी मशीनरी पर सवाल उठाना वाजिब है, लेकिन समाज के भीतर भी तो सवाल उठना चाहिए। आखिर ये कैसी मानसिकता है जो मासूम बच्चियों के खिलाफ काम करती है। बेटियों की सुरक्षा और सिस्टम को लेकर ढेर सारी सरकारी-गैर सरकारी कोशिशें चलती रहती हैं। फिर भी सोच के स्तर पर पाशविकता समस्या के रूप में बरकरार है तो उसकी वजह को भी समझना होगा। सिर्फ ट्वीट, कैंडिल मार्च से सूरत बदलनी होती तो बदल गयी होती। निर्णभा कांड पर तो देशभर में हफ्तों कैंडिल मार्च निकले थे। बाद में क्या हुआ। घटनाएं थमीं नहीं, दरअसल जिस तरह पोर्न साइटों से लोग पल-पल बढ़ रहे हैं। उनसे भला और किस चीज की उम्मीद की जा सकती है। लिहाजा बढ़ती हैवानियत पर सर्जिकल स्ट्राइक करना है तो समन्वित प्रयास की जरूरत होगी। सरकारी मशीनरी के साथ ही समाज के स्तर पर मनोकामिक क मजोरियों पर भी काम करने की आवश्यक ता होगी।

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