भारतीय जनता पार्टी ने पिछले छह महीने में पांच मुख्यमंत्री बदले हैं। चुनाव के ठीक बाद असम में बदला गया तो चुनाव से पहले उत्तराखंड और गुजरात में भी बदलाव हुआ। कर्नाटक में दो साल बाद चुनाव हैं लेकिन वहां भी मुख्यमंत्री बदला गया। इन्हीं बदलावों की निरंतरता में यह भी देखने की जरूरत है कि जुलाई में केंद्रीय मंत्रिमंडल में भी बड़ा बदलाव किया गया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने मंत्रिपरिषद को बिल्कुल नया रूप दे दिया। एक दर्जन वरिष्ठ मंत्रियों का उन्होंने इस्तीफा ले लिया और बिल्कुल नए व लगभग अनजान चेहरों को केंद्र सरकार में अहम जिम्मेदारी दी गई। मंत्रिमंडल विस्तार में दलित, आदिवासी, पिछड़ों और महिलाओं को सर्वाधिक प्रतिनिधित्व दिए जाने का जो नैरेटिव बनाया गया, वह अपनी जगह है। इसलिए प्रधानमंत्री ने केंद्र में और राज्यों में पिछले छह महीने में जो बदलाव किए हैं उनको समग्रता में देखने की जरूरत है। केंद्र और राज्यों में जो बदलाव हुए हैं वो शासन और प्रशासन के नजरिए से नहीं किए गए हैं। ऐसा नहीं है कि गवर्नेंस ठीक करने के लिए मुख्यमंत्री या केंद्रीय मंत्री बदले गए हैं। ये बदलाव विशुद्ध रूप से राजनीतिक हैं और इसलिए इनकी गंभीरता को समझने की जरूरत है। असल में पिछले सात साल में पहली बार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रति उनके समर्थक रहे एक बड़े वर्ग में नकारात्मक धारणा बनती दिख रही है।
पिछले महीने अंग्रेजी की एक साप्ताहिक पत्रिका द्वारा कराए गए सर्वेक्षण में पता चला है कि अगस्त 2020 में देश के 66 फीसदी लोग नरेंद्र मोदी को ही फिर से प्रधानमंत्री बनाने के पक्ष में थे। लेकिन अगस्त 2021 में ऐसे लोगों की संख्या घट कर 24 फीसदी रह गई है। यानी एक साल में प्रधानमंत्री की लोकप्रियता में 42 फीसदी की कमी आई है। यह सर्वेक्षण तो अगस्त में आया लेकिन प्रधानमंत्री को अपनी लोकप्रियता के क्षरण का अंदाजा पहले ही होने लगा था। तभी उन्होंने उार प्रदेश में हालात संभालने के प्रयास के तहत अपने करीबी अधिकारी को रिटायरमेंट दिला कर वहां भेजा तो उाराखंड और गुजरात में मुख्यमंत्री बदला और केंद्रीय मंत्रिमंडल में व्यापक फेरबदल किया। यह सब धारणा बदलने का प्रयास है। असल में प्रधानमंत्री ने खुद अपने प्रचार के जरिए यह धारणा बनवाई है कि डबल इंजन की सरकार से देश में अभूतपूर्व विकास होगा। उनके वादे पर भरोसा करके लोगों ने राज्य दर राज्य डबल इंजन की सरकार बनवाई। लेकिन ज्यादातर राज्यों में डबल इंजन वाली सरकार लोगों की उम्मीदों पर खरा नहीं उतर सकीं। प्रादेशिक पार्टियों या कांग्रेस की सरकारों के मुकाबले भाजपा की राज्य सरकारों से लोगों की उम्मीदें ज्यादा थीं, क्योंकि वो डबल इंजन की सरकारें थीं।
हकीकत यह है कि नोटबंदी के बाद से बरबाद हुई अर्थव्यवस्था को डबल इंजन की सरकारें भी नहीं संभाल सकीं। गुजरात से लेकर उार प्रदेश तक डबल इंजन की सरकारों में कोरोना संक्रमण की महामारी से लोग ज्यादा परेशान हुए। डबल इंजन की सरकारों से न कोरोना संभला और न कोरोना की चपेट में आकर बरबाद हुई आर्थिकी संभली। तभी यह पहली बार हुआ कि मोदी पर से लोगों का विश्वास हिला। उनको लगा कि मोदी के होने बावजूद सब कुछ मुमकिन नहीं है। हालांकि इसके लिए मोदी की तारीफ होनी चाहिए कि उन्होंने किसी भी मीडिया हाउस के सर्वेक्षण से पहले इस बात को भांप लिया कि उनका करिश्मा कम हो रहा है और अमित शाह के मास्टर स्ट्रोक भी मनमाफिक नतीजे नहीं दे रहे हैं। इसलिए उन्होंने अपने ही बनाए ढांचे को पूरी तरह से झकझोर कर उसे नया रूप देने का दांव चल दिया। यह मोदी का अपना कामराज प्लान है, जिसके तहत चर्चित मंत्रियों की सरकार से विदाई हुई तो मुयमंत्रियों के भी इस्तीफे लिए गए। उनकी जगह बिल्कुल नए और अनजान चेहरे लाए गए। यह पुरानी स्मृतियों को मिटाने का एक छोटा सा दांव है। पुरानी और बुरी स्मृतियों के बरक्स अच्छी स्मृतियों का डंका बजा कर लोगों के मन-मस्तिष्क में बनी धारणा को बदलने का ही एक प्रयास प्रधानमंत्री मोदी के 71वें जन्मदिन पर आयोजित हो रहे कार्यक्रमों में दिख रहा है।
प्रधानमंत्री का जन्मदिन 17 सितंबर को है। उस दिन से लेकर सात अक्टूबर तक यानी तीन हफ्ते तक देश में सेवा और समर्पण का उत्सव मनाया जाएगा। गरीबों को राशन बांटने के लिए बने 14 करोड़ थैले पर प्रधानमंत्री मोदी की छोटी छपवाई गई है। भाजपा के कार्यकर्ता पांच करोड़ पोस्टकार्ड ईमेल के जरिए प्रधानमंत्री को भेजेंगे, जिन पर ‘थैंक्यू मोदीजी’ लिखा होगा। भाजपा के कार्यकर्ता वैक्सीनेशन सेंटर्स पर जाएंगे और मुक्त वैक्सीन लगवाने वाले लोगों से प्रधानमंत्री को धन्यवाद दिला कर उनकी वीडियो रिकार्ड करेंगे, जिसे अलग अलग प्लेटफॉर्म्स पर प्रसारित कराया जाएगा। प्रधानमंत्री के जीवन और कार्यों पर सेमिनार आयोजित होंगे। कई जगह नदियों की सफाई होगी। एक तरह से पूरा देश प्रधानमंत्री को पूरे तीन हफ्ते तक थैंक्यू बोलेगा। जाहिर है प्रधानमंत्री की रजामंदी से इतने व्यापक पैमाने पर उनके जन्मदिन का कार्यक्रम मनाया जा रहा है। सोचें, केंद्र सरकार में सात साल और साा में बैठने के 20 साल बाद उनको ऐसा करने की क्या जरूरत आन पड़ी? इससे पहले तो कभी इतने बड़े पैमाने पर उनका जन्मदिन नहीं मनाया गया? इस समय भी उनकी लोकप्रियता के मुकाबले दूसरा कोई नेता नहीं टिक पा रहा है। मीडिया में उनके कामकाज पर कोई सवाल नहीं उठाया जा रहा है और न उनकी सर्वोच्च सत्ता के लिए कोई चुनौती बताई जा रही है।
कोरोना महामारी में जब लोग सड़कों पर तड़प कर मर रहे थे या वैक्सीनेशन का अभियान जब पटरी से उतर गया था या जब आजादी के बाद की सबसे बड़ी त्रासदी में लाखों लोग पैदल चल कर शहरों व महानगरों से पलायन कर रहे थे या जब हर महीने लाखों लोगों की नौकरियां जा रही हैं तब भी किसी ने प्रधानमंत्री का नाम लेकर इन सब चीजों के लिए उनको जिमेदार नहीं ठहराया। इसके बावजूद अगर सरकार में इतनी बड़ी फेरबदल हुई है, राज्यों में मुयमंत्री बदले गए हैं और प्रधानमंत्री के जन्मदिन पर उनको थैंक्यू कहने का इतना बड़ा अभियान छिड़ा है तो उसका कारण यह है कि भाजपा और उसकी केंद्र सरकार दोनों मध्यावधि संकट से गुजर रहे हैं। यह इस बात का भी संकेत है कि सात साल में पहली बार प्रधानमंत्री चुनौती महसूस कर रहे हैं। सभी सर्वेक्षणों में देश के बाकी नेताओं के मुकाबले लोकप्रियता में सबसे ऊपर होने के बावजूद कहीं न कहीं उनको महसूस हो रहा है कि जमीनी हालात बदल रहे हैं। हालात पूरी तरह से उनके खिलाफ हो जाएं उससे पहले उन्होंने सुधार का प्रयास शुरू कर दिया है। यह नरेंद्र मोदी और अमित शाह की सबसे बड़ी खासियत है कि वे राजनीतिक मामलों में कुछ भी परिस्थितियों के भरोसे नहीं छोड़ते हैं। अगर परिस्थितियां अनुकूल नहीं हैं तो वे उसे ठीक करने का हरसंभव प्रयास करते हैं। अभी वहीं प्रयास चल रहा है।
अजीत द्विवेदी
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं ये उनके निजी विचार हैं)