माघ माह : स्नान, दान एवं सूर्य अर्घ्य से मिलेगा मनोवांछित फल

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पौष मास की पूर्णिमा से आरभ होकर माघ पूर्णिमा तक चलने वाला माघ स्नान अति पुण्य प्रदान करने वाला माना गया है। प्रयाग में हर वर्ष लगने वाले इस मेले को कल्पवास भी कहा जाता है। माघ स्नान करने वाले मनुष्यों पर भगवान विष्णु प्रसन्न रहते है तथा उन्हें सुख-सौभग्य,धन-संतान और मोक्ष प्रदान करते है । यदि सकामभाव से माघ स्नान किया जाय तो उससे मनोवांछित फल की सिद्धि होती है और निष्काम भाव से स्नान आदि करने पर वह मोक्ष देने वाला होता है ऐसा शास्त्रों में कहा गया है।

बड़ा ही महत्व है इस माह का

महाभारत के अनुशासन पर्व में माघ माह के स्नान,दान,उपवास और माधव पूजा का महत्व बताते हुए कहा गया है कि इन दिनों में प्रयागराज में अनेक तीर्थों का समागम होता है इसलिए जो प्रयाग या अन्य पवित्र नदियों में भी भक्तिभाव से स्नान करते है वह तमाम पापों से मुक्त होकर स्वर्गलोक के अधिकारी हो जाते है । इस माह क महत्व पर तुलसीदासजी ने श्री रामचरित्रमानस के बालखण्ड में लिखा है-‘माघ मकर गति रवि जब होई, तीरथ पतिहिं आव सब कोई॥’ धर्मराज युधिष्ठिर ने महाभारत युद्ध के दौरान मारे गए अपने रिश्तेदारों को सदगति दिलाने हेतु मार्कण्डेय ऋषि के सुझाव पर कल्पवास किया था। गौतमऋषि द्वारा शापित इंद्रदेव को भी माघ स्नान के कारण श्राप से मुक्ति मिली थी ।माघ मास में जो पवित्र नदियों में स्नान करता है उसे एक विशेष ऊर्जा प्राप्त होती है, जिससे उसका शरीर निरोगी और आध्यात्मिक शक्ति से संपन्न हो जाता है । माघ स्नान से शरीर के पाप जलकर भस्म हो जाते है। इस मास में पूजन-अर्चन व स्नान करने से भगवान नारायण को प्राप्त किया जा सकता है।

कब करें स्नान –

माघ मास का स्नान कुछ इलाकों में तो सूर्य के दक्षिणायन से उत्तरायण में आते ही यानि मकर संक्रांति के दिन से शुरू होता है ,लेकिन अधिकतर स्थानों पर इसकी शुरुआत पौषपूर्णिमा के दिन से ही हो जाती है। स्नान का उत्तम समय सूर्योदय से पूर्व माना जाता है ,जब आकाश में तारागण दिखाई दे रहा हो । ब्रह्मा, विष्णु, महेश, आदित्य, मरुदगण तथा अन्य सभी देवी-देवता माघ में संगम स्नान करते है। मान्यता है कि प्रयाग में माघ मास में तीन बार स्नान करने का फल दस हज़ार अश्वमेघ यज्ञ से भी ज्यादा होता है ।

सूर्य को अर्घ्य और दान भी है खास

पदमपुराण के अनुसार पूजा,तपस्या,यज्ञ आदि से भी श्री हरि को उतनी प्रसंनता नहीं होती,जितनी कि माघ महीने में प्रात: स्नान कर जगत को प्रकाश देने वाले भगवान सूर्य को अर्घ्य देने से होती है । इसलिए सभी पापों से मुक्ति और भगवान वासुदेव की प्रीति प्राप्त करने के लिए प्रत्येक मनुष्य को माघ स्नान कर सूर्य मंत्र काा उच्चारण करते हुए सूर्य को अर्घ्य अवश्य प्रदान करना चाहिए । इस मास में तिल,गुड़ और कंबल के दान का विशेष महत्व माना गया है । मत्स्य पुराण का कथन है कि माघ मास में जो व्यक्ति ब्रह्मवैवर्त पुराण का दान करता है उसे ब्रह्म लोक की प्राप्ति होती है ।

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