महामारी मजदूरों पर भारी

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लॉकडाउन में ढील के बावजूद शहरों में कारोबार अभी सामान्य नहीं हुआ है। इसके बावजूद यहां से वापस गए प्रवासी मजदूर यहां लौटने को मजबूर हो रहे हैं। दरअसल, गांवों में सीमित विकल्पों के कारण उन्हें वापस शहर की ओर लौटना पड़ रहा है। जबकि हकीकत यह है कि भारत में कोरोना वायरस का कहर बढ़ता जा रहा है। कोरोना वायरस के प्रसार को रोकने के लिए ही देश में पांच महीने पहले लॉकडाउन लगाया गया था और जरूरी सेवाओं को छोड़कर सब कुछ बंद कर दिया गया था। तब शहर में रहकर काम करने वाले लोगों के सामने जब रोजगार का संकट पैदा हुआ और वे अपने गांव की ओर लौट गए। उनके पैदल और ट्रक में लदकर जाने की तस्वीरों ने सभी का ध्यान खींचा। लेकिन अब प्रवासी कामगार वापस बड़े शहरों की ओर लौट रहे हैं। रिपोर्टों के मुताबिक अनलॉक के बाद रोजगार की आस में प्रवासी मजदूर दिल्ली, मुंबई, चेन्नई और कोलकाता जैसे शहरों में वापस आ रहे हैं। ग्रामीण इलाकों से राजधानी दिल्ली में काम की तलाश में दोबारा लौटने वाले लोग बसों में भरकर पहुंच रहे हैं।

बस अड्डों पर प्रवासियों के पहुंचने के बाद उन्हें लाइन में लगने को कहा जाता है। उसके बाद उनका रैपिड कोविड-19 टेस्ट होता है। जो लोग कोरोना पॉजिटिव पाए जाते हैं, उन्हें क्वारंटीन सेंटर भेज दिया जाता है। गौरतलब है कि अनेक मजदूर सामान के साथ दोबारा रोजगार की तलाश में पहुंचे हैं। क्वारंटीन में भेजने के समय उनका सामान कहां रखा जाए, यह एक बड़ी समस्या देखने में आ रही है। भारत में आज हाल यही है कि संक्रमण से लड़ने के उपायों को लागू करना कठिन हो गया है और संक्रमण की दर बढ़ रही है। गौरतलब है कि 20 लाख से अधिक संक्रमितों की संख्या सिर्फ भारत, ब्राजील और अमेरिका है। भारत तीसरे नंबर पर है, लेकिन यहां संक्रमण बढ़ने की रफ्तार तेज होती गई है। इस बीच टेस्ट की संख्या भी बढ़ी है। सरकार का कहना है कि उसका लक्ष्य दस लाख टेस्ट प्रतिदिन करने का है। हालांकि विशेषज्ञों का कहना है कि 1.3 अरब की आबादी वाले देश के लिए यह भी कम ही है।

इस परिस्थिति में चिंता की बात यह है कि रैपिड एंटीजेन टेस्ट पर निर्भरता बढ़ गई है, जबकि रैपिड एंटीजेन टेस्ट कई बार गलत नतीजे देता है। इन परिस्थितियों में ना सिर्फ प्रवासी मजदूरों, बल्कि दूसरे नागरिकों के लिए स्थिति चिंताजनक हो गई है। लेकिन हकीकत यही है कि मोदी सरकार को ना इसका एहसास है और ना ही वो जनता के दुख दर्द के पास है। सरकार भी जब धींगामश्ती से फैसले राजनीतिक हित के लिए करेगी तो फिर जनता के हित हाशिए पर चले जाते हैं। यही सब देश में 6 साल से हो रहा है। या होगा ये तो वत बताएगा लेकिन इतना तय है कि जब देश की इकोनोमी ही नहीं बचेगी तो फिर मजदूरों को मजदूरी देने वाले ही कब तक खुद को संभाल पाएंगे? दौर निसंदेह बेहद खराब है लेकिन अगर सही समय पर सही फैसले होते या अब हो जाएं तो किसी भी खराब हालत को एक दिन सुधारा जा सकता है लेकिन ऐसी सोच दूर-दूर तक नजर नहीं आती।

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