दिल्ली की पटियाला हाउस कोर्ट ने अलगाववादी नेता यासीन मलिक को 24 मई तक न्यायिक हिरासत भेज दिया है। उनके खराब स्वास्थ्य का हलावा देते हुए जमात-ए-इस्लामी ने रिहा करने की मांग की है। अब इसमें पीडीपी अध्यक्ष महबूबा मुफ्ती का भी नाम जुड़ गया है। कश्मीर की आजादी के लिए मलिक का अब तक का इतिहास सर्वविदित है। ये अलगाववादी नेता एक तरफ तो स्थानीय क श्मीरी युवकों को आजादी के नाम पर बरगलाने का काम क रते हैं तो दूसरी तरफ पाकि स्तान की हुकूमत के इशारे पर भारत विरोधी साजिशों को शह देने की भूमिका निभाते हैं। मोदी सरकार के कड़े रवैये के बाद से क श्मीर की अलगाववादी ताक तों की दिक्क तें बढ़ गई हैं। पर इसके साथ ही जह्यमू-कश्मीर की मुगय धारा की पार्टियां-नेशनल कांफ्रेंस और पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी भी इन्हींअलगाववादी सोच के धड़ों संग सुर मिलाती दिखाई देती है। चाहें फारूक अब्दुल्ला हों या उमर अब्दुल्ला और फिर महबूबा मुफ्ती।
जब ये सरकार में रहते हैं तो सुर अलग-सा होता है और सत्ता से बाहर होते है। तो सुर कुछ और होता है। यह दूसरा सुर खुले तौर पर भारत विरोध का होता है और कहीं ना हीं पाकिस्तान के सोच की संगत क रता दिखाई देता है। इसी नजरिये के चलते महबूबा मुफ्ती ने यासीन मलिक के जल्द रिहाई की पैरवी की है। हालांकि मुद्गती के बयान से चकि त होने जैसा कुछ नहीं है। पर जिस तरह कश्मीर की सत्ता से बाहर होने के बाद पीडीपी अध्यक्ष के बयानों का सिलसिला सामने आया है, उससे यही लगता है कि भाजपा के साथ राज्य में सरकार चलाने के बाद भी पीडीपी के अपने रवैये में कोई परिवर्तन नहीं आया है। वैसे भाजपा के साथ सरकार चलाने के दिनों में भी पीडीपी के जोर देने पर ही हजारों की संगया में पत्थरबाजों को रिहा कर दिया गया था। उस फैसले को लेकर देश भर में बड़ी तीखी प्रतिक्रिया हुई थी। उसके बाद जिस तरह राज्य के स्कूलों में आग लगाई गई उससे अलगाववादी ताक तों के खिलाफ राज्य के भीतर भी एक विरोधी स्वर उठा लेकि न पीडीपी के चलते उस पर ध्यान नहीं दिया गया।
बुरहान वानी के मारे जाने के बाद जिस तरह राज्य की तत्कालीन मुगयमंत्री महबूबा मुफ्ती के टेंसु, बहाए थे, वो भी लोगों के जेहन में भी आज भी मौजूद है। पीडीपी को ले र भाजपा की आलोचना भी खूब हुई। अबए जब भाजपा ने रिश्ता तोड़ दिया है और आतंक वाद के खिलाफ कार्रवाई तेज हो गई है, पत्थरबाजों के हौसले पस्त हो चले है। तब पीडीपी अध्यक्ष के बयान पूरी तरह से गैर जिम्मेदाराना ढंग से सामने आए हैं जिससे एक बात स्पष्ट हो जाती है कि सत्ता के समय भी पीडीपी का साथ कश्मीर को लेकर जाने की चर्चा के बीच महबूबा मुद्गती के बयान सियासी मजबूरी हो, लेकि न देश की अस्मिता को चुनौती देने वाली बातें कि सी भी तरह से सराही नहीं जा सक ती। बीतें 40 वर्षों से क श्मीर आतंक वाद से झुलस रहा है। तमाम शांति वार्ताएं अब तक नाकाम साबित हुई हैं। अब मोदी सरकार ने सगत ख अपनाया है तो कश्मीर की क्षेत्रीय पार्टियों की भूमिका खतरे में पड़ गई है। इसीलिए ये लोग देश विरोधी ताक तों के पक्ष में खुले तौर पर सामने आने लगे हैं।