भ्रष्टों पर फिर वार

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मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल में भ्रष्ट अफसरों के खिलाफ सख्ती का सिलसिला रफ्तार पकड़ रहा है। अभी कुछ दिन पहले आयकर विभाग के भ्रष्ट अफसरों को जबरन रिटायर किया गया था। अब केन्द्रीय प्रत्यक्ष कर एवं सीमा शुल्क बोर्ड के 15 सीनियर अफसरों को तत्काल प्रभाव से रिटायर कर दिया गया है। इन पर भ्रष्टाचार, लापरवाही व लालफीताशाही को बढ़ावा देने जैसे आरोप हैं। यह कार्रवाई कार्मिक एवं प्रशासनिक सुधार विभाग के सिविल सेवा (पेंशन) नियम 1972 के नियम 56 के तहत की गई है। इसमें आरोपी को समय से पहले सेवा से मुक्त करने का प्रावधान है। यह सगती निश्चित रूप से भ्रष्टाचार के खिलाफ केन्द्र सरकार की दृढ़ इच्छाशक्ति की परिचायक है। इस कार्रवाई से बाकी अफ सरशाही को संदेश दिया जा चुका है कि आगे से सुस्त और खराब छवि वाले अफसरों को बगशा नहीं जाएगा।

लेकिन जो सरकारी योजनाओं को जमीन तक पहुंचाने में अपनी प्रतिभा और क्षमता का भरसक प्रयास करते हैं। उन्हें यह सरकार अच्छा अवसर उपलब्ध कराकर पुरस्कृत भी कर रही है। वैसे भी योजना कितनी भी दुरुस्त और तरक्की पसंद हो, यदि नौकरशाही उसको लागू करने में उत्साह नहीं दिखाती और निजी फायदों के लिए रास्ते तलाशती है तो जाहिर है किसी भी सरकार की मंशा कितनी भी जनोन्मुखी हो, अर्थहीन हो जाएगी। ज्यादातर मामलों में यही तो होता आया है। यहां सोचने की बात है कि बरसों-बरस कल्याणकारी योजनाएं चलती हैं, उसके लिए अरबों- खरबों रुपये जुटाए जाते हैं, लेकिन जमीन पर उस लिहाज से सूरत बदलती नहीं दिखती। ऐसा क्यों? यदि योजना लोगों तक पहुंचती है तो उसका असर भी दिखना चाहिए। इसका सीधा अर्थ है कि कहीं कोई अनियमितता है जिसे सुनियोजित लढंग से अंजाम दिया जाता है।

कल्याणकारी योजनाअें की मदों का बंदरबांट दशकों से चल रहा है। खुद तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने भी माना था कि लोगों तक पूरा पैसा नहीं पहुंचता। सरकार का तो हाथ-पांव होती है नौकरशाही। यदि कार्यान्वयन के स्तर पर गड़बड़ी होती है तो तय है कि विकास की तस्वीर आधी-अधूरी होगी। मौजूदा सरकार ने उन भ्रष्ट अफसरों पर नकेल लगाने की शुरुआत की है, जो सरकारी योजनाओं के प्रति खुद को जवाबदेह बनाने के बजाय उसे कुतरने में लग जाते हैं। ऐसी मानसिकता वाले अफसरों के लिए यह कार्रवाई आगाह करने जैसी है। वैसे भी यह भ्रम टूटना ही चाहिए था कि कार्यों में लापरवाही और अरुचि दिखाते रहने के बावजूद सेवा में बने रहेंगे। प्रावधान तो पहले भी था। मौजूदा सरकार ने पहल की है। उम्मीद है, इससे नौकरशाही की छवि में भी गुणात्मक बदलाव आएगा। प्रधानमंत्री ने इसी इरादे से अपने पहले कार्यकाल में भी नौकरशाही पर बड़ा दांव लगाया था। इस बार भी उन्हें बड़ी उम्मीद है। लिहाजा सरकार के इस तंत्र का जनहित में सजग और सक्रिय होना किसी बड़े बदलाव के लिए पहली शर्त है।

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