भारत के पास ये 4 मिलिट्री ऑप्शन

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चीन और भारत के बीच लद्दाख में जो परिस्थितियां हैं उनमें कई उतार चढ़ाव आए हैं। आज चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ जनरल बिपिन रावत ने जो कहा वह जायज है। उन्होंने कहा कि सरकार की कोशिश रही कि घुसपैठ रोकने और मसले को शांति से सुलझा लिया जाए। लेकिन अगर स्थिति पहले जैसे सामान्य नहीं हो पाती है तो हमारी सेनाएं मिलिट्री एक्शन के लिए तैयार हैं।

ये सर्वभौमिक सत्य है। डिफेंस फोर्स का यही काम है कि वह दुश्मन को अपने इलाके से दूर रखने के लिए किसी मिलिट्री एक्शन के लिए तैयार रहे। आखिर सेना की तैयारी तो सिर्फ मिलिट्री ऑप्शन की ही होती है।

तो सवाल यह है कि आखिर क्या ऑप्शन हो सकते है? उड़ी के एवज में सर्जिकल स्ट्राइक और पुलवामा के बदले बालाकोट एयर स्ट्राइक उसी वक्त और उसी जगह पर नहीं किया गया। तो हम तय करेंगे कि जहां फायदेमंद होगा, वहां जवाब दें। जिसके चलते हमारे मिलिट्री ऑप्शन काफी ज्यादा हैं।

मेरे मुताबिक ये हो सकते हैं मिलिट्री ऑप्शन…

पहला
समुद्री आयाम इसमें सबसे असरदार हो सकता है। ग्रेट निकोबार आयलैंड, मलक्का और सुंडा स्ट्रैट्स की ओर जाने वाले सिक्स डिग्री चैनल के लिए बेहद अहम है। चीन का ज्यादातर ईंधन इसी इलाके से जहाजों के जरिए पहुंचाया जाता है। उससे जुड़ा खतरा ही है जिसके चलते चीन ग्वादर पोर्ट के जरिए एक्सेस चाहता है। तो सोचिए कि चीन पर भारत जैसा ही इरादा रखने वाले किसी देश के साथ मिलकर ऐसा करना कितना प्रभावशाली होगा।

दूसरा
एरियल डायमेंशन भी हमारे ही पक्ष में हैं। चीन के पास संख्या भले ज्यादा हों, लेकिन उनके एयरबेस की लोड कैपेसिटी को लेकर हाई एल्टीट्यूड से जुड़ी पाबंदियां हैं। जबकि हमारी हवाई पटि्टयां काफी नजदीक हैं और ज्यादा मजबूत भी। हमारा हाल ही में तैयार हुआ एयर डिफेंस और हवाई ताकत का सामान उनकी फोर्स के साथ मैच करता है।

तीसरा
कुछ देशों के साथ हमारी स्ट्रैटेजिक पार्टनरशिप के जरिए भी हम चीन को जवाब दे सकते हैं। हमारे जैसी सोच वाले देशों के साथ अपनी मिलिट्री ताकत का इस्तेमाल कर भारत चीन के लिए मुश्किल खड़ी कर सकता है। फिर चाहे वो साउथ चाइना हो या यूएस, जापान और ऑस्ट्रेलिया के साथ हमारी पार्टनरशिप।
चौथा
अगर हम न्यू एज वॉरफेयर यानी स्पेस और साइबर वॉरफेयर में अपने साथी देशों के साथ मिलकर काम करें तो हमें जीत मिल सकती है। आज की दुनिया को ये कुबूल नहीं कि किसी एक तरीके की ताकत का अकेले इस्तेमाल किया जाए। आर्थिक तरीके जैसे एफडीआई पाबंदियों की घोषणा पहले ही की जा चुकी है और चीन के ऐप्स पर बैन भी लगा दिया गया है। राजनीतिक और राजनयिक आयामों के जरिए हमारे देश की ताइवान, तिब्बत, हॉन्गकॉन्ग और साउथ चाइना सी को लेकर जो पोजिशन है, उस पर फिर विचार किया जा सकता है।

और आखिर में जहां तक सेना की बात है तो टेक्टिकल डिप्लॉयमेंट की चर्चा करना सही नहीं होगा। भारतीय सेना कॉम्बैट के लिए तैयार सेना है और हमारे पास युद्ध लड़ने का अनुभव है। खासकर हाई एल्टीट्यूड और ग्लेशियर पर, जहां चीन की सेना नहीं लड़ सकती। जहां एक ओर चीन की अर्थव्यवस्था हमसे पांच गुना है और डिफेंस बजट तीन गुना। लेकिन जब बात देश के सम्मान की आती है तो ये दोनों ही अहम नहीं होते।

1979 में जब वियतनाम पर चीन ने हमला किया, तो उसकी हालत काफी कमजोर थी। उनकी आधी सेना कंबोडिया में अटकी थी। बावजूद इसके उन्होंने चीन को अच्छी खासी चोट दी और वियतनाम की शर्तों पर युद्ध विराम हुआ।

रिटायर्ड लेफ्टिनेंट जनरल सतीश दुआ
(रिटायर्ड ले. जनरल सतीश दुआ, कश्मीर के कोर कमांडर रह चुके हैं, इन्ही के कोर कमांडर रहते सेना ने बुरहान वानी का एनकाउंटर किया। जनरल दुआ ने ही सर्जिकल स्ट्राइक की प्लानिंग की और उसे एग्जीक्यूट करवाया था। वे चीफ ऑफ इंटीग्रेटेड डिफेंस स्टाफ के पद से रिटायर हुए हैं।)

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