यदि आपके किसी काम में विलंब हो रहा है तो उसे भगवान की इच्छा मान कर स्वीकार करें। जिस प्रकार हम अपने बच्चों को उत्तम से उत्तम देने का प्रयास करते हैं। उसी प्रकार भगवान भी अपने बच्चों को वही देंगे जो उनके लिए उत्तम होगा। ईमानदारी से अपनी बारी की प्रतीक्षा करें! इस बारे में एक कथा प्रचलित हैं कि एक बार घोषणा हुई कि भगवान प्रसाद बॉटने आ रहे हैं। सभी लोग भगवान के प्रसाद के लिए तैयार हो कर लाइन लगा कर खड़े हो गए। एक छोटी बच्ची बहुत उत्सुक थी क्योंकि वह पहली बार भगवान को देखने जा रही थी। एक बड़े और सुंदर फल के साथ-साथ भगवान के दर्शन की कल्पना से ही खुश थी। अंत में प्रतीक्षा समाप्त हुई। बहुत लंबी कतार में जब उसका नंबर आया तो भगवान ने उसे एक बड़ा और लाल सेब दिया। लेकिन जैसे ही उसने सेब पकड़ कर लाइन से बाहर निकली उसका सेब हाथ से छूट कर कीचड़ में गिर गया। बच्ची उदास हो गई। अब उसे दुबारा से लाइन में लगना पड़ेगा। दूसरी लाइन पहली से भी लंबी थी। लेकिन कोई और रास्ता नहीं था। सब लोग ईमानदारी से अपनी बारी बारी से सेब लेकर जा रहे थे। अन्तत: वह बच्ची फिर से लाइन में लगी और अपनी बारी की प्रतीक्षा करने लगी। आधी क़तार को सेब मिलने के बाद सेब समाप्त होने लगे। अब तो बच्ची बहुत उदास हो गई। उसने सोचा कि उसकी बारी आने तक तो सब सेब खत्म हो जाएंगे। लेकिन वह ये नहीं जानती थी कि भगवान के भंडार कभी रिक्त नही होते। जब तक उसकी बारी आई तो और भी नए सेब आ गए। भगवान तो अन्तर्यामी होते हैं। बच्ची के मन की बात जान गए। उन्होंने इस बार बच्ची को सेब देकर कहा कि पिछली बार वाला सेब एक तरफ से सड़ चुका था। तुहारे लिए सही नहीं था इसलिए मैने ही उसे तुहारे हाथों गिरवा दिया था। दूसरी तरफ लंबी कतार में तुहें इसलिए लगाया क्योंकि नए सेब अभी पेड़ों पर थे। उनके आने में समय बाकी था। इसलिए तुहें अधिक प्रतीक्षा करनी पड़ी। ये सेब अधिक लाल, सुंदर और तुहारे लिए उपयुक्त है। भगवान की बात सुनकर बच्ची संतुष्ट हो कर गई। भगवान के लिए सभी समान हैं, वह प्रत्येक को उसके अनुसार ही फल देते हैं।