प्रश्न काल व शून्य काल बेहद अहम

0
539

संसद का मानसून सत्र आने वाला है। बवाल मचा है प्रश्नकाल व शून्यकाल पर। सरकार कोरोना की वजह से अपने तर्क दे रही है और विपक्ष को लगता है कि उससे सवाल पूछने का अधिकार छीना जा रहा है। लेकिन पाठकों के लिए अहम सवाल है कि आखिर प्रश्नकाल व शून्यकाल होता या है? तो यही जान लीजिए। जहां तक प्रश्नकाल का सवाल है तो ये लोकसभा, राज्यसभा और विधानमंडलों की प्रत्येक बैठक का पहला घंटा होता है जिसमें सदस्य मंत्रियों से उनके मंत्रालय से जुड़े सवाल पूछते हैं और उन्हें जवाब दिया जाता है। भारत ने प्रश्नकाल को इंग्लैंड से अपनाया है। इंग्लैंड में ही सबसे पहले (1721 में) प्रश्नकाल शुरू किया गया था। इससे मंत्रियों की जवाबदेही भी तय होती है। भारत में प्रश्नकाल की शुरुआत भारतीय परिषद अधिनियम, 1892 से हुई। आजादी से पहले ब्रिटिश भारत में सवाल पूछने पर तमाम तरह की पाबंदियां लगी हुई थीं लेकिन स्वतंत्र और लोकतांत्रिक भारत में इन सभी पाबंदियों का अंत कर दिया गया। अब सदस्य लोक-महत्व के किसी भी विषय पर जानकारी पाने के लिए सवाल पूछ सकते हैं।

प्रश्न पूछने को लेकर कुछ सामान्य सी शर्तें भी लगाई गई हैं कि उसमें किसी के चरित्र का हनन न होता हो। संसद की रूलबुक में स्पष्ट किया गया है कि सदस्य किस तरह के सवाल पूछ सकते हैं? सवाल की शद सीमा 150 शद होती है। सवाल सटीक होने चाहिए और बहुत कॉमन नहीं होने चाहिए। सभी सवाल भारत सरकार के अधिकार क्षेत्र से जुड़े होने चाहिए। दोनों सदनों के पीठासीन अधिकारी ही अंतिम फैसला करते हैं कि किसी सदस्य का सवाल सरकार के सामने रखा जाना है या नहीं। प्रश्नकाल दोनों सदनों में सत्र के हर दिन रखा जाता है। मौजूदा लोकसभा की शुरुआत से लेकर अब तक करीब 15,000 सवाल सरकार से पूछे जा चुके हैं। प्रश्नकाल में तीन तरह के प्रश्न होते हैं- तारांकित प्रश्न, अतारांकित प्रश्न और अल्पसूचना प्रश्न। स्टार वेश्चन या तारांकित सवाल वे होते हैं जिसमें सदस्य सदन में मौखिक जवाब चाहता है। अतारांकित या बिना स्टार वाले सवाल वे होते हैं जिनमें सदस्य लिखित उत्तर चाहता है। मौखिक जवाबों में संतुष्ट न होने पर सदस्य काउंटर सवाल कर सकता है लेकिन बिना स्टार वाले सवालों में लिखित जवाब मिलता है और इसमें पूरक सवाल नहीं पूछे जा सकते हैं।

इन दोनों तरह के सवालों के लिए सदस्य को 10 दिन पहले सदन को सूचना देनी पड़ती है। तीसरे तरह के सवाल होते हैं-अल्पसूचना प्रश्न यानी इन्हें 10 दिन से कम की सूचना पर पूछा जा सकता है। अध्यक्ष संबंधित मंत्री से पूछता है कि वह जवाब देने की स्थिति में है या नहीं और अगर है तो किस तारीख को वह इस सवाल का जवाब देगा? जहां प्रश्नकाल या वेश्चन आवर बेहद रेगुलेटेड होता है। वहीं, जीरो आवर भारतीय संसद से ही निकला एक आइडिया है। शून्यकाल का जिक्र संसद कार्रवाई की प्रक्रिया में कहीं नहीं है। जीरो आवर का आइडिया भारतीय संसद के पहले दशक में निकला जब सांसदों को राष्ट्रीय और अपने संसदीय क्षेत्र के अहम मुद्दों को उठाने की जरूरत महसूस हुई। साल 2014 में राज्यसभा चेयरमैन हामिद अंसारी ने प्रश्नकाल की अवधि 11 बजे से 12 बजे कर दी थी ताकि इसमें किसी तरह की रुकावट ना आए। शुरुआत के दिनों में संसद में एक बजे लंच ब्रेक हुआ करता था। ऐसे में, सांसदों को दोपहर 12 बजे बिना किसी पूर्व नोटिस के राष्ट्रीय मुद्दे उठाने का अच्छा मौका मिल जाता था और इस दौरान उन्हें एक घंटे का लंबा वत मिल जाता था। धीरे-धीरे ये घंटा जीरो आवर के तौर पर जाना जाने लगा। महत्ता के कारण ही अब विपक्ष इस पर उबाल खाए हुए है।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here