पंजाब की सियासत में सिद्धू

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पंजाब में जिस तरह से साारुढ़ पार्टी कांग्रेस में सियासी घटनाक्रम चल रहा है उससे आए दिन राजनीति में नया देखने को मिल रहा है। कांग्रेस जिसे पंजाब में भाजपा के मुकाबले अधिक लोकप्रिय है, उसमें ये घटना क्रम देखने मिले तो हैरानी होती है। पंजाब के दो दिग्गज नेता कैप्टन और नवजोत सिद्धू के लिए कद दिखाने का संघर्ष व कैप्टन द्वारा सीएम पद छोडऩे के बाद आला कमान द्वारा सिद्धू के परामर्श पर चरणजीत चन्नी को सीएम बनाने में जहां कांग्रेस आला कमान द्वारा राजनीति अस्थिरता को विराम देना था वहीं सिद्धू पर भरोसा जताकर उनका कद बुलंद करना था। अब उनका इस्तीफा कांग्रेस के लिए चिंतन करने वाला विषय है। सिद्धू ने अध्यक्ष पद से इस्तीफा ऐसी परिस्थिति में दिया है जब विधानसभा चुनाव में बहुत कम समय है और पंजाब में उसको अपने कद का आकलन करना है। लोगों के भरोसे का उार देना है। कांग्रेस आला कमान जो सिद्धू के भरोसे अपनी नैया पार लगाने की जुगत है, सिद्धू का त्याग पत्र पार्टी के लिए कठिन परिस्थिति पैदा करने वाला है। कठिन दौर से गुजर रही कांग्रेस के लिए ऐसे नेता ताकत बनने की बजाय पार्टी को कमजोर ही करेंगे। खुद मुयमंत्री बनने के सपने देख रहे अति महत्वाकांक्षी सिद्धू के लिए कैप्टन अमरिंदर के राह से हटने के बाद भी सबकुछ ठीक नहीं हो सका था।

चरणजीत सिंह चन्नी के सीएम बनने के बाद सिद्ध को अपने आगे की सियासी राह कांटों भरा दिख रहा था। पंजाब में कांग्रेस के लिए सबकुछ ठीक था, कैप्टन अमरिंदर सिंह के नेतृत्व में कांग्रेस सरकार ठीक चल रही थी, पंजाब में विभाजित विपक्ष और किसान आंदोलन के प्रभाव के चलते 2022 में होने वाले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के लिए राह आसान दिख रही थी। लेकिन चुनाव से करीब पांच महीने पहले पंजाब कांग्रेस की अचानक हवा बदली, कैप्टन के न चाहते हुए भी पंजाब कांग्रेस की कमान कांग्रेस में चार साल पहले पार्टी में आए नवजोत सिंह सिद्धू की दी गई। कैप्टन अमरिंदर ने इसे अपना अपमान मानते हुए मुयमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया। कांग्रेस ने अपनी पार्टी के दलित चेहरे चरणजीत सिंह चन्नी को पंजाब का नया सीएम बनाया। उस वक्त माना गया कि 32 फीसदी दलित आबादी वाले पंजाब में पहली बार किसी दलित को सीएम बनाकर कांग्रेस ने मास्टर स्ट्रोक खेला है, शायद कैप्टन अमरिंदर की नाराजगी की भरपाई दलित-सिख कंबिनेशन से हो सकती है। पर अब सिद्ध पर इतना विश्वास करने के कांग्रेस के फैसले को राहुल गांधी के राजनीतिक अपरिपक्कता के तौर पर देखा जाएगा। सिद्ध के इस्तीफे से कांग्रेस को झटका ही लगा है।

कैप्टन अमरिंदर ने अपने अगले कदम के बारे में समय पर पाा खोलने की बात कही थी, पर उनके कदम से पहले ही नवजोत सिंह सिद्धू ने कांग्रेस अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया। यह इस्तीफा ठीक उसी दिन आया, जब युवा राजनीति के दो चेहरे कनवा कुमार व जिग्नेश मेवाणी ने कांग्रेस ज्वाइन की। कांग्रेस को आत्ममंथन करना चाहिए कि पंजाब में कैप्टन अमरिंदर पर सिद्धू को तरजीह देना क्या विधानसभा चुनाव से पहले ही आत्मघाती कदम साबित हुआ? सिद्धू रणछोड़ साबित हुए, केवल 72 दिन ही पद पर रहे। कांग्रेस नेतृत्व ने जिस तरह सिद्धू को पंजाब में पार्टी की कमान देकर पर भी दलित को सीएम बनाकर उन पर नकेल रखी, उससे शायद उन्हें आभास हो गया कि अगले विधानसभा चुनाव में अगर कांग्रेस की वापसी नहीं होती है तो सारा ठीकरा उन्हीं पर फूटेगा, राजनीतिक किरकिरी अलग से होगी। सिद्धू ने बेशक आलाकमान पर दबाव के लिए इस्तीफा दिया हो, पर उनकी राजनीति के लिए उनका यह फैसला नकारात्मक ही साबित होगा। आगे किसी भी शीर्ष नेतृत्व के लिए उनपर भरोसा करना मुश्किल होगा। सिद्धू को समझना होगा कि केवल तात्कालिक फायदे के लिए राजनीति नहीं की जाती है।

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