पूरी दुनिया को प्रभावित करने वाले कोरोना महाकाल ने जहां पूरे विश्व की आर्थिक स्थिति को प्रभावित किया। लोगों को घर पर रहने के लिए विवश किया। वहीं इस महामारी ने पूरी दुनिया को एक सीख दी जिससे लोगों ने वह काम भी किए, जिनकी उसने कभी कल्पना भी नहीं की थी। उदाहरण के तौर पर जब फैक्ट्रियों में तालेबंदी की नौबत आई तो प्रवासी मजदूरों ने अपने घरों का रुख किया। इन मजदूरों के पास इतनी जमा पूंजी भी नहीं थी कि वह दो-चार महीने घर में बैठकर आराम कर सकें। उन्होंने परिवार का पालन पोषण के लिए कृषि को अपनाया। खेतीहर मजदूर बनकर गेहूं कटाई से लेकर खेतों की खुदाई तक के वह सारे कार्य किए जो कृषि से जुड़े हैं। इससे जुड़ा एक किस्सा मुझे याद आ रहा है जो यूं हैं।
एक निजी स्कूल में शिक्षण कार्य करने वाले राम प्रसाद का स्कूल मार्च में बंद हो गया था। उनके स्कूल को कोई सरकारी विाीय सहायता भी नहीं मिल रही थी। उनका गुजारा बच्चों से आने वाली मासिक फीस पर ही होता था। लेकिन कोरोना महामारी के दौरान स्कूल बंद होने से बच्चों पर बकाया फीस की वसूलयाबी भी नहीं हो सकी और आगे भी स्कूल खुलने की उम्मीद नहीं थी। अब उनके सामने घर को चलाने की चुनौती थी। इसलिए उन्होंने अपने एक पेंटर मित्र से पेंटिंग व घरों की पुताई का काम सीख लिया।
चंद दिनों बाद वह घरों की पुताई करने में सक्षम हो गए। अब वह स्कूल से अधिक कमाई कर रहे हैं। राम प्रसाद का कहना है कि शुरू में तो उन्हें शर्म महसूस हुई लेकिन पेट की आग ने शर्म को जलाकर राख कर दिया। आखिर परिश्रम करने में शर्म कैसी। अब राम प्रसाद अपने परिवार का लालन-पालन घरों की पुताई करके कर रहे हैं। यदि राम प्रसाद शर्म करते और मेहनत-मजदूरी न करते तो वह परिवार सहित डिप्रेशन का शिकार होते। राम प्रसाद कहते हैं कि लॉकडाउन में घबराने की बजाय कुछ सीखने व बचाने की जरूरत है पता नहीं भविष्य में कैसी विषम परिस्थिति का सामना करना पड़े।